
रचनाकार- एड रामकृष्ण मिश्र
माता पार्वती अपनी इच्छा बताते हुए शिव जी से बोली ‘काश मेरी कोई ननद होती’, आपकी लंबी साधनाओं और ध्यान के दौरान जिससे मेरा मन लगा रहता। ये सुनते ही भगवान शिव ने उनसे पूछ लिया कि क्या आप ननद के साथ रिश्ता निभा पाओगी? ये सुनते ही माता पार्वती ने तनिक भी समय व्यतीत न करते हुए कहा ‘ननद से मेरी क्यों नहीं बनेगी’।
भगवान शिव ने उनसे कहा, ‘ठीक है, मैं तुम्हें एक ननद लाकर देता हूं’। भोलेनाथ ने अपनी माया से एक स्त्री को उत्पन्न किया। वह स्त्री बहुत मोटी और भद्दी थी, उसके पैर भी फटे हुए थे।
भगवान शिव ने देवी पार्वती से कहा, ‘ये लो देवी, आ गई तुम्हारी ननद, इनका नाम असावरी देवी है’। ननद की खुशी में माता पार्वती उनकी खातिरदारी में जुट गई और उनके लिए जल्दी-जल्दी भोजन का प्रबंध करने लगीं। असावरी देवी ने स्नान के पश्चात भोजन की मांग की तो देवी पार्वती ने स्वादिष्ट भोजन उनके सामने परोस दिया। असावरी देवी सारा भोजन चट कर गईं और सारा अन्न भी खा गईं। इस बीच असावरी देवी को शरारत सूझी, उन्होंने देवी पार्वती को अपने फटे पांव की दरारों में छिपा लिया, जहां उनका दम घुटने लगा।असावरी देवी मुस्कुराने लगीं और पार्वतीजी को अपने पैरों की दरारों से आजाद किया। ननद की ऐसी अठखेलियों से माता पार्वती जल्द ही परेशान हो चुकी थीं। आजाद होते ही पार्वती माता ने कहा, ‘प्रभु, कृपा कर ननद को अपने ससुराल भेज दें, अब और धैर्य नहीं रखा जाता। भगवान शिव ने जल्द ही असावरी देवी को कैलाश पर्वत से विदा किया। इस घटना के बाद से सी ननद-भाभी के बीच छोटी-छोटी तकरार और नोंक-झोंक का सिलसिला प्रारंभ हुआ।