
मुंबई। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष फील्ड मार्शल आसिम मुनीर के बीच हाल ही में हुई लंच मीटिंग को लेकर भारत की राजनीति में हलचल मच गई है। खासकर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने इस मुलाकात पर गंभीर सवाल उठाते हुए इसे “संयुक्त राज्य अमेरिका की 250 साल की कूटनीतिक परंपरा का उल्लंघन” करार दिया है। चव्हाण ने कहा कि, यह पहली बार है जब अमेरिका के राष्ट्रपति ने किसी ऐसे सैन्य अधिकारी को आधिकारिक तौर पर व्हाइट हाउस में बुलाकर भोज किया है, जो न तो प्रधानमंत्री है, न ही राष्ट्राध्यक्ष। एक पेशेवर आर्मी चीफ को इस प्रकार सम्मान देना असामान्य है और इसके दूरगामी राजनीतिक संदेश हैं। कांग्रेस नेता ने कहा कि इससे पहले केवल तीन पाकिस्तानी सैन्य शासकों– अयूब खान, ज़िया-उल-हक और परवेज़ मुशर्रफ ने अमेरिकी राष्ट्रपतियों से मुलाकात की थी, लेकिन वे सभी तब पाकिस्तान की सत्ता पर काबिज थे। उन्होंने कहा, “आज पाकिस्तान में एक निर्वाचित प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति हैं, बावजूद इसके अमेरिकी राष्ट्रपति ने न तो उनसे मुलाकात की, न ही कोई कूटनीतिक बातचीत की, बल्कि सीधे सेना प्रमुख को बुलाया। यह असामान्य और संकेतात्मक है। पृथ्वीराज चव्हाण का मानना है कि इस मुलाकात से यह स्पष्ट हो गया है कि अमेरिका अब पाकिस्तान में वास्तविक सत्ता फील्ड मार्शल आसिम मुनीर को मान रहा है। उन्होंने कहा कि ट्रंप की यह पहल पाकिस्तान में सत्ता परिवर्तन के संकेत भी हो सकती है।
ईरान-इज़राइल युद्ध और अमेरिकी रणनीति
उन्होंने इस मुद्दे को ईरान-इज़राइल संघर्ष से भी जोड़ते हुए कहा कि अमेरिका पाकिस्तान से सैन्य अड्डे की मांग कर सकता है, जिसके लिए सेना से सीधे संवाद जरूरी है। साथ ही, उन्होंने उस विवादास्पद बयान का हवाला दिया जिसमें एक पाकिस्तानी नेता ने कहा था कि यदि इज़राइल ने ईरान पर परमाणु हमला किया तो पाकिस्तान भी जवाब देगा — बाद में इस बयान का खंडन किया गया था।
“मीडिया इसे सामान्य बता रहा, लेकिन यह असामान्य है”
चव्हाण ने मीडिया पर भी कटाक्ष करते हुए कहा कि कुछ चैनल और पत्रकार इसे सामान्य बता रहे हैं, जबकि यह असाधारण और कूटनीतिक दृष्टि से बहुत बड़ी बात है। उन्होंने चेताया कि भारत को इस घटनाक्रम को हल्के में नहीं लेना चाहिए, क्योंकि यह दक्षिण एशिया की भू-राजनीतिक स्थिति में बड़ा बदलाव ला सकता है। डोनाल्ड ट्रंप और पाकिस्तानी सेना प्रमुख की इस मुलाकात के राजनीतिक और कूटनीतिक निहितार्थ बहुआयामी हैं। एक ओर यह पाकिस्तान की अंदरूनी सत्ता संरचना में सैन्य वर्चस्व की पुष्टि करता है, वहीं दूसरी ओर अमेरिका की बदलती विदेश नीति प्राथमिकताओं की ओर भी संकेत करता है — खासकर पश्चिम एशिया में संभावित संघर्ष और चीन के विरुद्ध रणनीतिक मोर्चाबंदी के संदर्भ में। यह देखना अब महत्वपूर्ण होगा कि भारत इस घटनाक्रम को लेकर अपनी कूटनीतिक प्रतिक्रिया कैसे तैयार करता है, विशेषकर ऐसे समय में जब चीन-पाकिस्तान गठजोड़ पहले से ही भारत के लिए सुरक्षा चुनौती बना हुआ है।