
मुंबई। गुरु तेग बहादुर की 350वीं शहादत वर्षगांठ को लेकर महाराष्ट्र सरकार व्यापक राज्यस्तरीय आयोजन करेगी। इस सिलसिले में शुक्रवार को मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने सिख समुदाय के प्रतिनिधियों से मुलाकात कर कार्यक्रमों की रूपरेखा पर चर्चा की। उन्होंने इस अवसर को धार्मिक सहिष्णुता, राष्ट्रीय चेतना और सांस्कृतिक एकता के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत करने पर बल दिया। बैठक में सिख धर्म की सर्वोच्च पीठों में से एक, नांदेड़ गुरुद्वारे के कलेक्टर सहित विभिन्न वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे। सिख प्रतिनिधियों में संत समाज के प्रधान संत ज्ञानी हरनाम सिंह खालसा भी मौजूद थे। उन्होंने कहा कि यह आयोजन केवल सिख समुदाय के लिए नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए एक प्रेरक क्षण है, जो धार्मिक विविधता और बलिदान की भावना को उजागर करता है।
तीन शहरों में होंगे मुख्य समागम
बैठक में मुख्यमंत्री फडणवीस ने नांदेड़, नागपुर और मुंबई महानगर क्षेत्र में तीन प्रमुख समागम आयोजित करने की योजना रखी। उन्होंने प्रस्ताव रखा कि इन कार्यक्रमों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की उपस्थिति सुनिश्चित की जाए, ताकि राष्ट्रव्यापी महत्व सुनिश्चित किया जा सके। मुख्यमंत्री ने बताया कि महाराष्ट्र में वर्ष भर अलग-अलग स्थानों पर विविध आयोजन किए जाएंगे, जिनका उद्देश्य गुरु तेग बहादुर के जीवन, शिक्षाओं और बलिदान को नई पीढ़ी तक पहुँचाना होगा। इस संदर्भ में हिंदी, पंजाबी और मराठी में एक विशेष पुस्तिका प्रकाशित की जाएगी, जिसमें गुरु तेग बहादुर के जीवन मूल्य, मानवता के लिए उनका योगदान और धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा हेतु उनके बलिदान की गाथा होगी।
प्रशासनिक और धार्मिक समन्वय
बैठक में महाराष्ट्र के मुख्य सचिव, अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह और वित्त), अल्पसंख्यक मामलों के विभाग के सचिव, मुंबई नगर आयुक्त और नांदेड़ के पुलिस आयुक्त समेत शीर्ष स्तर के प्रशासनिक अधिकारी उपस्थित रहे। समन्वय के लिए महाराष्ट्र सिख एसोसिएशन और राज्य स्तरीय आयोजन समिति का गठन किया गया है। बाल मलकीत सिंह, आयोजन समिति के निदेशक और संयोजक, ने कहा, “यह आयोजन न केवल श्रद्धांजलि है, बल्कि महाराष्ट्र को सांस्कृतिक चेतना, धार्मिक सहिष्णुता और राष्ट्रीय एकता के प्रतीक के रूप में स्थापित करने की दिशा में एक ऐतिहासिक पहल भी है। गुरु तेग बहादुर की 350वीं शहादत वर्षगांठ को लेकर महाराष्ट्र सरकार द्वारा लिया गया यह निर्णय न केवल एक धार्मिक आयोजन है, बल्कि यह सांप्रदायिक सौहार्द, देशभक्ति और ऐतिहासिक स्मृति को पुनर्जीवित करने का एक प्रयास भी है। यह पहल महाराष्ट्र को विविधता में एकता का उदाहरण बनाकर देशभर में एक सकारात्मक संदेश दे सकती है।