
नई दिल्ली। संसद के शीतकालीन सत्र में मंगलवार को उस वक्त तीखा हंगामा देखने को मिला, जब केंद्र सरकार ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) को बदलकर नई योजना ‘विकसित भारत गारंटी फॉर रोजगार एंड आजीविका मिशन (ग्रामीण)’ यानी वीबी-जी राम जी बिल पेश किया। विपक्षी दलों ने इसे महात्मा गांधी की विरासत पर सीधा हमला बताते हुए जोरदार विरोध दर्ज कराया। कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस सहित कई दलों ने सरकार पर नाम बदलने की राजनीति करने और राज्यों पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ डालने का आरोप लगाया। समाजवादी पार्टी के सांसद धर्मेंद्र यादव ने कहा कि जब तक सरकार इस योजना को पुराने नाम से नहीं लाती, तब तक सपा इसका विरोध करती रहेगी। उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी का नाम हटाना उनके अपमान के समान है। कांग्रेस के वरिष्ठ सांसद प्रमोद तिवारी ने भी बिल का कड़ा विरोध करते हुए कहा कि बीजेपी को नाम बदलने के सिवा कुछ नहीं आता और गांधी का नाम हटाकर वह क्या साबित करना चाहती है। उन्होंने इसे भाजपा की साजिश करार देते हुए कहा कि नए बिल के कुछ प्रावधान ऐसे हैं, जो राज्यों पर अतिरिक्त वित्तीय भार डालेंगे, इसलिए कांग्रेस को इसके नाम और प्रावधान—दोनों पर आपत्ति है। वहीं तृणमूल कांग्रेस के सांसदों ने मनरेगा की बकाया राशि और नए बिल के विरोध में संसद परिसर में प्रदर्शन किया। टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने सवाल उठाया कि भाजपा आखिर हर चीज़ का नाम बदलकर क्या हासिल करना चाहती है, और पार्टी ने इसे मतदाताओं के अधिकारों पर हमला बताया। दूसरी ओर सरकार का कहना है कि यह नया बिल दो दशक पुराने मनरेगा की जगह लेने के उद्देश्य से लाया गया है। सरकार के मुताबिक, नई योजना के तहत हर ग्रामीण परिवार को 125 दिन की मजदूरी वाली नौकरी की गारंटी दी जाएगी, जो मौजूदा 100 दिनों से अधिक है, और यह बिना कौशल वाले काम के लिए तैयार वयस्क सदस्यों पर लागू होगी। सरकार का दावा है कि इसका उद्देश्य एक ओर आय सुरक्षा प्रदान करना है, तो दूसरी ओर राष्ट्रीय स्तर पर समन्वित विकास रणनीति के तहत टिकाऊ और उत्पादक ग्रामीण परिसंपत्तियों का निर्माण करना है।




