
मुंबई। महाराष्ट्र की पर्यावरण मंत्री पंकजा मुंडे ने सोमवार को कहा कि राज्य सरकार नदियों और झीलों को सीवेज से दूषित होने से बचाने के लिए एक व्यापक योजना विकसित करने जा रही है, साथ ही प्रदूषित पानी के पुनः उपयोग को बढ़ावा देगी। इसके तहत नवीन तकनीकों को लागू करने के लिए एक तकनीकी सेल की स्थापना की जाएगी। वह पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग, महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एमपीसीबी) और आईआईटी पवई द्वारा आयोजित “नगरीय अपशिष्ट जल प्रबंधन: अंतराल, स्थिरता और आगे का रास्ता” विषय पर सम्मेलन में बोल रही थीं। उन्होंने कहा कि नगरपालिका और महानगरीय क्षेत्रों से बड़ी मात्रा में अनुपचारित सीवेज नदियों में बहा दिया जाता है, जिससे गंभीर पर्यावरणीय और स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। इस समस्या से निपटने के लिए सरकार रिवर और लेक कंजर्वेशन प्रोग्राम, तकनीकी सेल की स्थापना और कृषि में कीटनाशकों से जल प्रदूषण रोकने के लिए सख्त उपाय करेगी। राज्य के शहरी विकास विभाग के प्रमुख सचिव के.एच. गोविंदराव ने कहा कि अनुपचारित सीवेज पेयजल स्रोतों को दूषित कर सकता है, और अगर इसे ट्रीट करके पुनः उपयोग किया जाए तो जल प्रदूषण को काफी हद तक रोका जा सकता है। उन्होंने इसके लिए अपशिष्ट जल उपचार संयंत्रों (STP) की स्थापना, जन जागरूकता अभियानों और सरकारी विभागों के बीच समन्वय की आवश्यकता पर जोर दिया। एमपीसीबी के सदस्य सचिव डॉ. अविनाश ढाकने ने नगरपालिका क्षेत्रों में जल प्रदूषण की मौजूदा स्थिति का विस्तृत आकलन प्रस्तुत किया, जबकि इंदौर के डॉ. राकेश कुमार और आईआईटी बॉम्बे के प्रो. अनिल कुमार ने प्राकृतिक जल शोधन विधियों पर चर्चा की। नवी मुंबई नगर निगम आयुक्त डॉ. कैलास शिंदे ने “स्वच्छ जल के लिए सतत समाधान” विषय पर प्रस्तुति दी। महाराष्ट्र सरकार जल प्रदूषण को रोकने के लिए नदियों और झीलों की सफाई, सीवेज उपचार और पुनः उपयोग को प्राथमिकता देने जा रही है। इस दिशा में तकनीकी नवाचारों, सरकारी योजनाओं और नागरिकों की भागीदारी से एक स्वच्छ और सतत जल प्रबंधन प्रणाली स्थापित करने का लक्ष्य है।
