Wednesday, October 29, 2025
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दिवाली बाद पहली कैबिनेट बैठक में हंगामा, किसानों की मदद पर मंत्रियों ने अधिकारियों को घेरा

मुंबई। दिवाली के बाद महायुति सरकार की पहली महत्वपूर्ण कैबिनेट बैठक मंगलवार को मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की अध्यक्षता में आयोजित की गई। बैठक के दौरान राज्य में बाढ़ और अतिवृष्टि से प्रभावित किसानों को राहत न मिलने का मुद्दा प्रमुख रहा। सहायता वितरण में लापरवाही के आरोपों पर मंत्रियों और प्रशासनिक अधिकारियों के बीच तीखी नोकझोंक हुई, जिससे बैठक का माहौल कुछ समय के लिए तनावपूर्ण बन गया। मुख्यमंत्री फडणवीस के हस्तक्षेप के बाद स्थिति सामान्य हो सकी। मानसून के दौरान विशेष रूप से अगस्त और सितंबर में महाराष्ट्र के कई जिलों में भारी बारिश और बाढ़ से भारी नुकसान हुआ। मराठवाड़ा के बीड, धाराशिव, जालना, लातूर और नांदेड़ जिले सबसे अधिक प्रभावित रहे। पश्चिम महाराष्ट्र के अहिल्यानगर, सोलापुर, पुणे तथा उत्तर महाराष्ट्र के नासिक और जलगांव में भी बाढ़ की स्थिति ने किसानों और नागरिकों को संकट में डाल दिया। फसलें, मवेशी, मकान और खेतों की उर्वर मिट्टी तक नष्ट हो गई। राज्य सरकार ने इस आपदा से जूझ रहे किसानों के लिए 32,000 करोड़ रुपये के राहत पैकेज की घोषणा की थी और आश्वासन दिया गया था कि दिवाली से पूर्व सहायता राशि सीधे किसानों के खातों में जमा कर दी जाएगी। हालांकि विपक्ष के साथ-साथ सत्ता पक्ष के कुछ मंत्रियों ने भी दावा किया कि किसानों तक मदद नहीं पहुंची और कई प्रभावित परिवारों ने बिना सरकारी सहायता के दिवाली मनाई। कैबिनेट बैठक में राहत एवं पुनर्वास मंत्री मकरंद आबा पाटिल ने प्रभावित क्षेत्रों में सहायता के वितरण की धीमी गति को लेकर अधिकारियों पर सीधे सवाल खड़े किए। इसी दौरान कई तकनीकी और प्रशासनिक खामियों को लेकर विवाद बढ़ा। मुख्यमंत्री ने मामले को सुलझाते हुए अधिकारियों को राहत वितरण का विस्तृत ब्योरा प्रस्तुत करने का निर्देश दिया। बैठक के बाद मुख्यमंत्री फडणवीस ने बताया कि अब तक राज्य में बारिश से प्रभावित 40 लाख किसानों को 8,000 करोड़ रुपये की सहायता वितरित की जा चुकी है। उन्होंने यह भी कहा कि विशेष एजेंडा के रूप में 11,000 करोड़ रुपये के अतिरिक्त वितरण को मंजूरी दे दी गई है, जिसे अगले 15 दिनों के भीतर लाभार्थियों के खातों में जमा कर दिया जाएगा। फडणवीस ने स्पष्ट किया कि राहत कार्यों के लिए धन की किसी प्रकार की कमी नहीं आने दी जाएगी। किसानों की सहायता में देरी और सरकारी दावों के बीच यह टकराव आगामी राजनीतिक विमर्श को और तीखा बना सकता है।

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