
मुंबई। सार्वजनिक स्वास्थ्य विभाग गिलियन-बैरे सिंड्रोम (जीबीएस) के प्रति नागरिकों में जागरूकता बढ़ाने के लिए व्यापक जन जागरूकता अभियान चला रहा है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार, यह बीमारी कोरोना की तरह संक्रामक नहीं है, बल्कि शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने पर विकसित होती है। लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री प्रकाश अबिटकर ने विधानसभा में एक उल्लेखनीय सुझाव के जवाब में बताया कि जीबीएस से निपटने के लिए राज्य स्तरीय त्वरित प्रतिक्रिया दल का गठन किया गया है और इसके लिए दिशा-निर्देश तैयार किए गए हैं। विधायक अतुल भटखलकर ने इस मुद्दे पर विधानसभा में चर्चा की पहल की, जिसमें भीमराव तापकीर, मनोज जामसुतकर, चेतन तुपे, सिद्धार्थ शिरोले और नाना पटोले ने भी भाग लिया। स्वास्थ्य मंत्री अबिटकर ने जानकारी दी कि राज्य में पहला संदिग्ध जीबीएस मरीज 9 जनवरी 2025 को पुणे जिले में पाया गया था। अब तक 3 मार्च 2025 तक कुल 222 संदिग्ध मामले दर्ज किए गए हैं, जिनमें से 193 मरीजों का निदान हो चुका है। फिलहाल, इस बीमारी के मामलों में कोई विशेष वृद्धि नहीं देखी जा रही है। राज्य सरकार ने जीबीएस के प्रसार को रोकने के लिए विशेष दिशानिर्देश बनाए हैं। इस बीमारी को महात्मा फुले जन आरोग्य योजना के तहत शामिल किया गया है, जिससे जरूरतमंद मरीजों को मुफ्त इलाज की सुविधा दी जा रही है। पुणे में लगातार सर्वेक्षण किया जा रहा है, जिसमें अब तक 89,514 घरों की जांच हो चुकी है। मंत्री अबिटकर ने स्वयं पुणे जिले का दौरा कर हालात का जायजा लिया। प्रभावित क्षेत्रों में जल स्रोतों को कीटाणुरहित किया गया है और पानी को क्लोरीनयुक्त करने के उपाय किए गए हैं। राज्य के विभिन्न संचार माध्यमों के जरिए इस बीमारी की जानकारी दी जा रही है। मंत्री ने नागरिकों से अपील की है कि यदि किसी में जीबीएस के लक्षण दिखते हैं, तो वे तुरंत डॉक्टर से परामर्श लें।