
देश की सारी जनता भले नहीं जानती हो लेकिन हर शिक्षित जानता है कि हमारे देश के सांसदों और विधायकों को कभी भी अपना वेतन भत्ता और मुफ़्त लाभ लेने के लिए आंदोलन नहीं करना पड़ा है। बस सरकार समय समय पर इनकी सुविधा के लिए प्रस्ताव सदन में रखवा देती है और बिना किसी बहस के मेजें थपथपाकर बिल पास कर दिया जाता है सिर्फ दो मिनट में। सदन में सत्तारूढ़ और विपक्ष की शानदार एकता दिखती है अपने लाभ के लिए अन्यथा हंगामें दर हंगामें होते रहते हैं। सत्ता, विपक्ष की कटुता दूरी और कुछ हद तक जनता को दिखाए जाने वाले तेवर गायब हो जाते हैं लेकिन जब जनता, किसान, मजदूर, महिला, युवा, बेरोजगारी, एमएसपी की बात आती है तो हंगामा, पेपर फाड़ने, चीखने, चिल्लाने, बेल में पहुंच जाने और सदन से बहिर्गमन तक की घटनाएं और बाहर आरोप प्रत्यारोप की झाड़ियां लग जाती हैं। महिला आरक्षण बिल कई दशकों से अटकाया गया था क्योंकि पुरुष समाज का अहम, महिलाओं को बराबरी का हिस्सा देने को प्रस्तुत ही नहीं। हां ऐसे बिल सरकारें अवश्य पास कराती हैं जिनसे उनका वोट बैंक साधता हो। वहीं किसानों को वर्षों धरना प्रदर्शन करने को बाध्य होना पड़ता है लेकिन सरकार उनकी जायज मांगें सुनना ही नहीं चाहती। उसी तरह सरकारी कर्मचारी जब अपने हक के लिए सड़क पर उतरते हैं तो उनके वेतन काटने की धमकी दी जाती है। निषेधाज्ञा लागू कर बैरिकेटिंग कर दी जाती है। उन पर अश्रुगैस के गोले दागे जाते हैं। पानी की तेज बौछार की जाती है।लाठी चार्ज और रबर बुलेट के अलावा कभी कभी वास्तविक बुलेट भी चला दी जाती है। आखिर राज्य और केंद्र के मुखिया और अन्य मंत्री तक जाने नहीं दिया जाता। अरे भाई, वे भी तो जनता के प्रतिनिधि हैं। उनसे मिलने का जनता को अधिकार है। वे अपनी मांग अपने देश की सरकार में बैठे लोगों से नहीं करेंगे तो किससे करेंगे? यह वीआईपी कल्चर जनता और प्रतिनिधियों के बीच दीवार क्यों बनाने के लिए लागू किया गया है?
जिस तरह सरकारें अपने सांसदों विधायकों के लिए संवेदनशील होती हैं किसानों मजदूरों युवाओं किसानों बेरोजगारों के प्रति एकाएक असंवेदनशील हो जाती हैं। ऐसा क्यों है? सच तो यह है कि हमारे सांसद विधायक मंत्री आई क्यू वाले होते हैं। आईक्यू वाले निहित स्वार्थ के रत रहते हैं। दूसरों के दुख पीड़ा कष्ट तकलीफ, परेशानी की उन्हें अनुभूति ही नहीं होती। सच कहा जाय तो नेतृत्व कर्म हेतु केवल एस क्यू अर्थात चेतनात्मक क्षमता वान व्यक्ति ही पात्र होते हैं जिन्हें न्याय करना पसंद होता है। ऐसे व्यक्ति निहित स्वार्थ से बहुत ऊपर उठे होते हैं। जिस दिन सरकारो में चेतनात्म क्षमता के लोग बैठने लगेंगे उसी दिन से किसी को रैली अनशन भूख हड़ताल करने के लिए सड़क पर उतरने की कोई आवश्यकता ही नहीं होगी और सरकारें स्वयं ही उनकी समस्याओं के निवारण हेतु तत्पर हो जाएंगी। संवेदनशील हो जाएंगी।