Wednesday, March 12, 2025
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मानवतावादी मनस्वी चिंतक गुरू रविदास जी

मनमोहन सिंह
शोषण और सामाजिक बुराईयों के विरुद्ध पथ प्रदर्शन करने के लिए गुरू रविदास जी जैसे महापुरुषों का जन्म होता रहा है। ऊंच-नीच, द्वेष और शोषण को दूर करने के लिए ही गुरु रविदास जी ने संपूर्ण जीवन लगाया। उन्होंने अन्याय व शोषण के विरुद्ध महान संघर्ष किया। उनकी वाणी में शोषित वर्गों की मुक्ति के लिए संघर्ष का ओजस्वी स्वर था।
बाल्यकाल से ही रविदास जी का स्वभाव गंभीर व शांत था। प्राय: वह ईश्वर भक्ति में मग्न रहते थे। वे अपनी मेहनत की कमाई का ज्यादा हिस्सा साधु-सन्तों पर व्यय कर देते थे, जिसके कारण उनके पिता परेशान हो गये। उन्होंने रविदास जी को पैतृक व्यवसाय में रुचि लेने के लिए विवश किया लेकिन इनकी भक्ति कम न हुई। इसके पश्चात पिता ने इनका विवाह कर दिया। लेकिन यह सभी बातें उनके प्रभु भजन तथा भक्ति में बाधक न बन सकी। रविदास जी का कथन था कि ज्ञान के द्वारा मनुष्य चिन्तन एवं मनन कर सकता है। मननशील होने के कारण ही वह पशु से भिन्न है। उन्होंने बताया कि भजन व राम नाम जपने से ही मानव का कल्याण हो सकेगा। गुरु रविदास जी ने अपने समय में धर्म के माध्यम से समाज सुधार का महत्वपूर्ण कार्य किया। उन्होंने भारतीय समाज के समक्ष सामाजिक समता तथा धर्म व भक्ति के क्षेत्र में प्रत्येक व्यक्ति के समान अधिकार की बात कह कर नये चिन्तन का सूत्रपात किया।
गुरू रविदास जी ऐसे प्रगतिशील साधक और क्रांतिकारी व्यक्ति थे, जिन्होंने मोक्ष के लिए गुफा में समाधि नहीं लगाई अपितु, एक अच्छे संत की तरह ऋग्वेद के अनुसार ‘हे मानव तू मानव बन, तू केवल स्वयं आदर्श मानव मत बन, बल्कि अपनी संतान को भी इन गुणों से युक्त बना, इस उक्ति को चरितार्थ करने के लिए गुरु रविदास जी ने मानव कल्याण के लिए कार्य किया।
वे मानवतावादी मनस्वी चिंतक गुरू थे। उनके मतानुसार मानव मात्र को दया, ममता, करूणा, सहानुभूति, प्रेम आदि गुणों से भरपूर होना चाहिए। ये गुण ही मानवता की महत्वपूर्ण धरोहर है। उन्होंने अपनी वाणी में मानव के नाते महत्व दिया है, न कि धन, पद, मर्यादा, कुल आदि के कारण। उन्होंने अपनी वाणी में मानव एकता पर बल दिया।
कर्मयोगी गुरू रविदास जी ने कर्म साधना, श्रम साधना और भक्ति भाव से जहां पद्दलित जनता को शक्ति प्रदान की वहीं धार्मिक क्षेत्र में उच्च कोटि के लोगों के मुंह भी बन्द किए जो कहते थे कि भक्ति तथा धर्म की बात सिर्फ विशेष वर्ग के लोग ही कर सकते हैं। गुरु रविदास जी ने कर्म, श्रम और परिश्रम से यह सिद्ध कर दिया कि भक्ति किसी जाति में जन्मलेकर प्राप्त नहीं होती बल्कि भक्ति दार्शनिक गुणों निजी साधनों, ऊंचे चरित्र सच्चे कर्म करने से प्राप्त होती है।
साम्प्रदायिक सद्भाव जिसकी आज बहुत जरूरत है के लिए गुरु रविदास जी का भातृभाव का सन्देश बहुत उपयोगी है। उनकी दृष्टि में सभी मानव एक समान है, वह अलग-अलग नहीं हो सकते। तत्कालीन समाज के सांस्कृतिक संघर्ष व सामाजिक तनाव को दूर करने के लिए उन्होंने धर्म व इष्ट की मूलभूत एकता पर ही सभी धर्मों को पारस्परिक सौहार्द का सन्देश दिया। उन्होंने समर्पण पर विशेष बल दिया है। परहितरत जीवन बिताना ही उनका उपदेश था। यदि हमारा समर्पण तन-मन-धन से नहीं होगा तब तक हम समाज का हित नहीं कर सकते। जिस निष्ठा और भक्ति के साथ ईश्वर की पूजा की जाती है, यदि उसी तरह परिश्रम को भी ईश्वर पूजा समझ कर किया जाए तो ऐसे परिश्रमी पुरुष को संसार में सदा सुख और शांति मिलती है और परिश्रमी मनुष्य सदा सुखमय तथा शांतिमय जीवन व्यतीत करता है। यही नहीं गुरु रविदासजी ने वर्ग विहीन समाज की परिकल्पना करते हुए प्रभु से मानव मात्र की आर्थिक चिन्ता से मुक्ति की कामना की हैं और ऐसे राज्य की कामना की जहां सभी छोटे-बड़े के भेद-भाव के बिना जीवन व्यतीत कर सकें। सच तो यह है गुरू रविदास जी मानवता के पोषक थे। उनका उपदेश मानवीय हितों का उपदेश है। उनकी वाणी में मानवीय संवेदना का स्वयं कूट-कूट कर भरा हुआ है। उन्होंने मानव सेवा को सबसे बड़ा धन माना है। गुरु जी की वाणी के आलोक में ही हम अपनी बहुविध समस्याओं से छुटकारा पा कर सच्चे अर्थों में जीवित रह कर शांतिमय जीवन व्यतीत कर सकते हैं। संत रविदास ने आध्यात्मिक होने के साथ-साथ समाज को बदलने का भी संदेश दिया। इतना ही नहीं उन्होंने अपने पवित्र आचरण और साधना से अपने युग में सामाजिक क्रांति का सूत्रपात किया तथा परंपरागत रूढि़वादिता से ऊपर उठकर कार्य किया। उन्होंने धर्म के वाह्य आडंबर, अंधविश्वास, पुरोहितवाद तथा वर्ण व्यवस्था के नाम पर समाज में व्याप्त सामाजिक अन्याय विषमता एवं शोषण के विरुद्ध संघर्ष का सही अर्थों में सूत्रपात किया साथ ही साथ पारस्परिक प्रेम और विश्वबंधुत्व का अमर संदेश देकर हीन भावना को समाप्त किया। उनके जीवन से संबंधित अनेक लोक प्रचलित गाथाएं हैं जिनके माध्यम से उन्होंने जाति-पाति, भेद-भाव, ऊंच-नीच का खुलकर विरोध किया है।

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