
भारतीय राजनीति में कब और क्या हो जाए सुनिश्चित नहीं है। हर दल का नेता कब अपनों का साथ छोड़ते हैं यह ज्ञात नहीं रहता।भारतीय राजनेताओं का एक मात्र सिद्धांत है अपने स्वार्थ की सिद्धि। बड़ी लंबी फेहरिस्त है ऐसे नेताओं की जिन्होंने गठबंधन से नाता तोड दूसरे गठबंधन में चले गए। कश्मीर के फारूक अब्दुल्ला यूपीए और एनडीए दोनों में समय समय पर शामिल होते रहे हैं। बिहार के ही एक दिवंगत नेता केंद्र में किसी भी गठबंधन की सरकार रही हो,उसमें मंत्री हुआ करते थे।पासवान संगठन बदलने में ख्याति प्राप्त नेता थे। बीजेपी के खिलाफ गठबंधन के लिए नीतीश कुमार उत्तर से दक्षिण तक तमाम दलों के नेताओं से मिलकर एक संगठन बनाने की कोशिश सबसे पहले की थी। तमाम दल आए भी। गठबंधन हुआ और उसका नामकरण इंडिया हुआ। देश के प्रायः सभी छोटे बड़े दलों ने गठबंधन में शामिल होना स्वीकार भी किया। इसी बीच पांच राज्यों विशेषकर छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और राजस्थान चुनाव में कांग्रेस की व्यस्तता ने इंडिया में उंगली उठाना चालू किया। दुर्भाग्यवश कांग्रेस तीनों बड़े राज्यों में हार गई। क्यों कैसे यह अलग बात है लेकिन इंडिया गठबंधन में कांग्रेस उस स्थिति में नहीं रह गई जो सारे विपक्षी दल कांग्रेस की छतरी के नीचे रह सकते। वैसे कांग्रेसी नेता राहुल गांधी ने पहले ही कहा था कि वे कोई भी त्याग करने को तैयार हैं।नीतीश कुमार को संयोजक बनाने की बात आई तो ममता बनर्जी विरोधी हो गई। ममता बनर्जी अब एकला चलो का नारा देकर अकेले वेस्ट बंगाल में चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुकी हैं। उनकी मजबूरी है उनके भतीजे और पार्टी के मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के खिलाफ छापे ई डी के।अमित शाह ने उन्हें आश्वासन दे दिया है कि इंडिया गठबंधन से अलग हो जाओ।तुम्हारे लोगों के खिलाफ ई डी कार्रवाई बंद कर देगी। इतना महंगा सौदा? इंडिया गठबंधन को तोड़ने की शुरुआत कर दी। मात्र एक वर्ष पहले ही बिहार के मुख्यमंत्री ने कहा था, बीजेपी के साथ जाने से अच्छा होगा उनका मर जाना। अब उनकी पार्टी के महामंत्री त्यागी और बीजेपी के बिहार अध्यक्ष एक साथ एक ही प्लेन में दिल्ली पहुंचे। निश्चित ही शाह के बुलावे पर गए। शाह से बात चीत हुई। बाहर निकलने पर पार्टी अध्यक्ष ने पत्रकारों से लोकसभा चुनाव पर केंद्रित बातें हुई लेकिन उन्होंने बिना कहे नीतीश का नाम ले लिया। राजनीतिक हलकों में चर्चा गर्म है कि नीतीश एक बार फिर पाला बदलने वाले हैं। वे भाजपा के साथ जाएंगे। सवाल यह है कि क्या कोई सम्मानजनक पद पर नीतीश को बिठाने का निर्णय लिया गया है? वैसे राजनीति के जानकार बताते हैं कि बीजेपी ने उनकी पार्टी में अपने लोगों को शामिल कर लिया है जो कभी भी इस्तीफा देकर नीतीश सरकार को गिरा देंगे। अब नीतीश कुमार के सामने कोई दूसरा विकल्प ही शेष नहीं है अपना पद, पार्टी बचाने का। जैसी आशंका की जा रही थी कि ममता बनर्जी और नीतीश पाला बदल सकते हैं। शायद इसीलिए नीतीश कुमार ने इंडिया गठबंधन का संयोजक बनना स्वीकार कर दिया था। बहरहाल ममता बनर्जी और नीतीश कुमार दोनों का संगठन बदलने का ट्रेक रिकार्ड ही रहा है।डर है कि नीतीश कुमार ने जो हाल पासवान का किया था वही हश्र उनका भी हो जाए।