Monday, November 24, 2025
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संपादकीय: आरएसएस रजिस्टर्ड संस्था क्यों नहीं?

छोटे छोटे ग्रुप में दुर्गा, गणेश मंडल सजाए जाते हैं, जिनका खर्च लोगों द्वारा दिए गए चंदे से चलता है। वे पावती नहीं काट सकते। यदि रजिस्टर्ड नहीं और रसीद पर रजिस्ट्रेशन नंबर नहीं हो, तो कानूनन अपराध माना जाता है। आरएसएस की देश विदेश में हजारों संस्थाएं हैं। अधिवेशन होते हैं। स्वयं सरसंघचालक प्रमुख देश भर में घूम-घूम कर प्रचार और अपनी संस्था की बातें कहते रहते हैं। उन्हें बीजेपी सरकार ने विशेष सुरक्षा मुहैया कराई है। दिल्ली में पांच सितारा मुख्य कार्यालय हजारों करोड़ की बहुमूल्य भूमि पर निर्मित हुआ है। सरकार ने जमीन मुहैया कराई है या स्वयं खरीदी है, निर्माण की लागत कहां से आई? मोहन भागवत कहते हैं, लोगों का समूह है, जिसे रजिस्ट्रेशन कराने की जरूरत ही नहीं है। यही बात तो आतंकी समूहों, नक्सलियों के भी साथ है। कुछ या हजारों का समूह है नक्सली, जिसे रजिस्ट्रेशन की जरूरत नहीं है। व्हाइट कॉलर आतंकी, जिनमें लगभग सभी पेशे से डॉक्टर हैं या मेडिकल की पढ़ाई करते हैं, उनमें कई को एनआईए ने पकड़ा है। दिल्ली लालकिले के सामने उमर नाम के व्यक्ति ने अपनी चलती कार में विस्फोट कराया। दूसरा साथी इनकार कर चुका था क्योंकि उसके अनुसार सुसाइड इस्लाम के खिलाफ है। तो क्या उमर इस्लामिक नहीं रहा? देश में अनेक प्राइवेट सेनाएं हैं, जिनके रजिस्ट्रेशन नहीं हैं। बस अध्यक्ष, उपाध्यक्ष बना लिए हैं। संस्था रजिस्टर होने पर आम चुनाव कराने पड़ते हैं। पदाधिकारियों का चयन किया जाता है, लेकिन आरएसएस में कोई चुनाव नहीं होता। सरसंघचालक ही अपना उत्तराधिकारी चुनते हैं। यानी आरएसएस लोकतांत्रिक संगठन नहीं, तानाशाही संगठन प्रमाणित होता है, जिसमें राजतंत्रीय व्यवस्था है। इसके अनुषांगिक संगठन विश्व भर में हैं, जहां से आदिवासियों, गरीबों जैसे मुद्दे पर चंदा लिए जाते हैं। हां, विदेश में चंदा लेने के लिए वहां रजिस्ट्रेशन अनिवार्य है। आरएसएस प्रमुख के अनुसार आरएसएस ही खर्च करते हैं, लेकिन व्यवहार में देखा जाता है, स्वयंसेवक जनता, दुकानदारों, डॉक्टरों आदि से चंदा लेते देखे जाते हैं, जिनकी कोई रसीद नहीं दी जाती। क्या यह उचित है? किसी से चंदा लें और उसे रसीद नहीं दें? यह तो सीधे-सीधे दादागिरी होगी। आरएसएस में नियम है, जैसा कि मोहन भागवत ने खुद कहा, हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्धों के लिए आरएसएस में कोई जगह नहीं है। केवल भारतीय ही शामिल हो सकते हैं। शामिल होने के लिए, यदि पदाधिकारी बनना है, संघ प्रचारक बनना है, तो अविवाहित रहना अनिवार्य है। ऐसा क्यों है, समझना मुश्किल है। लेकिन बचपन से ही आरएसएस से जुड़ने वाले कंप्यूटर इंजीनियर की आत्महत्या ने शारीरिक शोषण के आरोप लगाए हैं अपने सुसाइड नोट में। उसमें लिखा है कि उस जैसे बहुतेरे आज युवा हैं, जिनका शारीरिक शोषण किया जाता है। यानी शादी मत करो, समलैंगिक संबंध बनाकर सेक्स करो, शारीरिक शोषण करो। भला ऐसा आदर्श मानने वाला कोई भी संगठन देश के लिए आदर्श कैसे बन सकता है, जिसमें शुचिता ही न हो, गैरकानूनी सेक्स संबंध स्थापित किए जाएं?
केरल के युवा की आत्महत्या ने देशवासियों को न सिर्फ झकझोर कर रख दिया है, बल्कि देश में आरएसएस पर बैन लगाने की भी मांग की जाने लगी है। आरएसएस के अंदर ग्राउंड संगठन के कारण ही, उसकी संदिग्ध गतिविधियों के कारण, 27 फरवरी 1948 को भारत सरकार के गृह मंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल ने तात्कालिक प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को पत्र लिखा था। उस पत्र में साफ-साफ लिखा था कि आरएसएस एक प्रकार का गुप्त संगठन है, जिसके पास सदस्यों का कोई रिकॉर्ड नहीं है। न कोई रजिस्टर है, जिसमें आरएसएस के विषय में लिखा मिले। यही नहीं, आरएसएस के रजिस्टर्ड नहीं होने के कारण, पटेल ने कहा था कि जिस कारण साबित करना बहुत कठिन होता है कि कोई व्यक्ति इस संगठन का सक्रिय सदस्य है या नहीं। सरदार पटेल ने आरएसएस पर बैन लगाने के बाद उन सभी लोगों को गिरफ्तार करने की कोशिश की थी, जिन पर आरएसएस में शामिल होने का शक था। यही नहीं, पटेल ने उन सरकारी कर्मचारियों को गिरफ्तार किया था जो आरएसएस से मिले हुए थे।
आरएसएस को देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद उपद्रवी संगठन मानते थे। 14 मई 1948 को उन्होंने गृहमंत्री सरदार पटेल को पत्र लिखकर चिंता जताई थी। उन्होंने कहा था कि दिल्ली की स्थिति बड़ी तेजी से बिगड़ती जा रही है और लोग कहते हैं कि आरएसएस फिर से खुद को संगठित कर रहा है या एक बार फिर खुले में आ गया है। कहा गया कि पाकिस्तान से आए निराश्रित शरणार्थियों में कानाफूसी और अंदर खाने आंदोलन भी चल रहा है। किसी भी समय उपद्रव फूट सकता है। कुछ घटनाएं तो हो भी चुकी हैं। लगातार अफवाहें आ रही हैं कि 15 जून को किसी घटना को नियत किया गया है। लोगों में घबराहट और भय है। उनके पास कुछ ऐसे लोग हैं जो मुसलमानों की पोशाक पहने हैं। ये हिंदुओं पर आक्रमण कर गड़बड़ी पैदा करेंगे और हिंदुओं को भड़काएंगे। कुछ हिंदू भी हैं जो मुसलमानों पर हमला करेंगे, जिससे हालात और उलझ जाएंगे। इंदिरा गांधी द्वारा आपातकाल लगाने का आरएसएस प्रमुख ने पुरजोर समर्थन करते हुए पत्र लिखा था। पत्र तो सरदार पटेल को भी लिखकर अनैतिक गतिविधियां नहीं करने का वचन दिया था। सच तो यह है कि आरएसएस हिटलर की नाज़ीशाही और मुसोलिनी के फासीवाद को अपना आदर्श मानता है। जब आदर्श माना जाएगा, तो निश्चित ही संगठन भी वैसा बनाया जाएगा। आरएसएस से क्षुब्ध होकर निकले लोगों के अनुसार, आरएसएस में हिंदुओं का ब्रेन ड्रेन किया जाता है। मुसलमानों को मुल्क का दुश्मन कहा जाता है। आरएसएस में बम बनाना, उन्हें फिट करना और आग्नेयास्त्र चलाने की ट्रेनिंग दी जाती है, जिनकी सहायता के लिए इज़राइल के तर्ज पर सरकार सेना में चार वर्ष की भर्ती कर अग्निवीर बना रही है, जो चार साल बाद रिटायर होने पर मुसलमानों के खात्मे में सहायक बनें।

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