Thursday, November 21, 2024
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संपादकीय:- अभाव में जीते हैं देश के गांव!

भारत कृषि प्रधान देश है। देश की 60 प्रतिशत जनता गांव की कृषि पर निर्भर रहती है। किसान खेती में अपना श्रम सीकर बहाता है।उन्हीं पसीने से फसलें लहलहाती है। गांव की लाशों पर शहर बसाए जाते हैं। कोई भी सरकार हो वह नगरों महानगरों में सारी सुविधाएं उच्च स्तर पर मुहैय्या कराती है। चौड़ी चौड़ी चमचमाती सड़कें, फुटपाथ जल निकासी के उत्तम साधन। वाहनों की सुविधा में ऑटो रिक्शा, टैक्सियां, लोकल ट्रेनें और अब मेट्रो। बसों का अंबार वह भी ए सी।बड़े बड़े अस्पताल, पार्क, मनोरंजन के साधन, विद्यालय कॉलेज उच्च स्तरीय शिक्षा व्यवस्था रहती है।
इसके विपरित गांव में टूटे फूटे मार्ग,पिच ऐसी बनती है जो तीन महीने में उखड़ जाती है। यातायात के संसाधनों का अकाल,झोपड़ियां मुंह चिढ़ाती रहती हैं। न पीने का साफ शुद्ध पानी, न बिजली, मनोरंजन के साधन तो स्वप्न से लगते हैं। जिधर देखो दरिद्रता के दर्शन।मैले कुचैले फटे पुराने कपड़े पहने बचपन, असमय कृष काय होते नौजवान, बेरोजगारी और धन का अभाव।भूखमरी,कुपोषण और गरीबी का नग्न तांडव। सारा विकास दिल्ली से या प्रांतीय राजधानी से चलाकर सरकारी अफसरों कर्मियों की जेब में फंसकर रह जाता है। बिजली की आंख मिचौनी। सरकार खुद ग्राम्य क्षेत्रों के प्रति उदासीन। उपेक्षित गांवों के उपेक्षित किसान। बिजली जाने की गारंटी रहती है आने की नहीं। पूस की ठंड हड्डियां कंपाती हुई, अंधेरी रात में ठंड से सिकुड़ता किसान अपने खेत में उगी फसलों की सिंचाई करने को बाध्य। सांप काटने से मरती महिलाएं बच्चे और जर्जर शरीर मर्द। किसानों को अपनी फसल का लागत भी नहीं मिलता। नासिक की ही बात करें प्याज की बंपर पैदावार होती है लेकिन व्यापारी चार आना किलो मूल्य देने को तैयार नहीं। यही प्याज व्यापारी सौ रुपए किलो बेचता है। उद्योग धंधों के प्रोडक्ट्स या दवाएं और अन्य उत्पाद मालिक खुद मूल्य तय करता है।अधिकतम मूल्य छपा जाता है जो बिकने वाले मूल्य से कई गुना ज्यादा होता है तो किसानों की फसलों का एम एस पी रेट क्यों नहीं लगाया जाता? क्यों देश का पेट भरने वाले किसान को बार बार धरना देना पड़ता है? क्यों आत्महत्या करनी पड़ती है? क्यों उन्हें दिल्ली आने से रोकने के लिए सरकारें अमानवीय कदम उठाती हैं? खाद बीज पेस्टिसाइज के मूल्य इतने अधिक क्यों? 2014 में 450 रुपए में पचास किलो यूरिया की बोरी बेची जाती थी लेकिन आज 35 किलो वाली यूरिया की बोरी 1200 रूपये के ऊपर क्यों बेचती है सरकार? भारी भरकम टैक्स क्यों है? क्यों नहीं एमएसपी के साथ उसका खुदरा मूल्य भी निर्धारित करती सरकार?सरकार विदेश से महंगे रेट पर कृषि उपज आयात कर लेगी लेकिन किसानों को एमएसपी नहीं देगी। धन्नासेठों के दस वर्ष में 25 लाख करोड़ कर्ज माफ कर लेती है सरकार लेकिन किसानों को कर्जमाफी क्यों नहीं दी जाती? सवाल है कब तक गांव का युवा शहरों की तरफ पलायित होता रहेगा ? काश देश के कर्णधारों को सद्बुद्धि आती कि वे जिस तरह शहरों के विकास को तरजीह देती है गांव के विकास को क्यों नहीं देती? पंचायत स्तर पर काम बहुत पहले शुरू हुआ। पंच वर्षीय योजनाएं चली लेकिन गांव का विकास नहीं किया गया। हर ग्रामसभा में छोटे छोटे विभिन्न उद्योग स्थापित किए जाते तो गांव से नगर की ओर पलायन रुक जाता। विकसित राष्ट्र बनाने के लिए गांव को आत्मनिर्भर बनाने होंगे।सड़कें पक्की और मजबूत। यातायात के साधन और चौबीस घंटे बिजली, पेयजल, सिंचाई के साधन बढ़ाने होंगे।भारत सोने की चिड़िया तब था जब हर गांव हर घर में छोटे मोटे उद्योग थे। गांवों का विकास लिए बिना राष्ट्र विकसित नहीं होगा। विश्वगुरू बनने का स्वप्न दिखाना बंद हो और जमीन पर काम हो तो दिखाने लगेगा। विज्ञापन नहीं देना होगा।

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