
स्मरण है, बेबाक नेता और प्रधानमंत्री रहे चंद्रशेखर सिंह से पत्रकार ने जब पूछा कि देश में तमाम समस्याएं हैं, आप की सरकार उनका समाधान क्यों नहीं करती? जवाब में जो कुछ कहा गया, उससे राजनेताओं की राजनीतिक महत्वाकांक्षा बिल्कुल स्पष्ट हो जाती है। देश में गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले 80 करोड़ जनता को पाँच किलो राशन मुफ्त देने का एहसान जताया जाता है, जबकि वह अनाज जनता के ही पैसे से खरीदा जाता है। कोई सरकार अपनी जेब या पार्टी का पैसा नहीं लगाती। किसानों की फसल के मूल्य सरकार द्वारा निर्धारित करने के प्रश्न पर चंद्रशेखर ने कहा- अगर किसान स्वावलंबी हो गए, धन आने से संपन्न हो गए, तो हमारी बराबरी में आ जाने पर हमारा झंडा नहीं उठाएंगे, दरी नहीं बिछाएंगे, हमारी जय-जयकार कौन लगाएगा? गरीब हैं तो हमारे द्वारा फेंके गए खैरात को कुत्तों की तरह लेने में छीना-झपटी करेंगे, आपस में लड़ते रहेंगे। बेरोजगार युवा हमारे लिए गांव-गांव, गली-गली जाकर प्रचार करेगा। एक झूठा आसरा पकड़ा दो, तो युवा उसका गुणगान करता रहेगा। जैसे आज बेरोजगारों के द्वारा “हिंदी, हिंदुत्व” के नाम पर मानसिक गुलाम बनाकर, मुसलमानों का डर दिखाया जाता है कि “गजवा-ए-हिंद होने लगेगा, तुम्हारे घर में घुसकर नमाज़ पढ़ने लगेंगे, तुम्हारी बहू-बेटियों को उठा ले जाएंगे। शिक्षा को लेकर चंद्रशेखर ने कहा था। जितनी अधिक जनता अशिक्षित रहेगी, भूखमरी रहेगी, कुपोषण रहेगा, सड़कों का अभाव रहेगा, महंगाई रहेगी, तो जनता हमारी ओर टकटकी लगाकर देखती रहेगी कि थोड़ी महंगाई हम कम करें। सच कहने के लिए गजभर की छाती चाहिए, जो चंद्रशेखर सिंह के पास थी। वैसे भी “युवा तुर्क” के नाम से विख्यात रहे चंद्रशेखर जब सत्ता में नहीं रहे, तो बोड़सी आश्रम जो बाहर से झोपड़ा लगता था, भीतर इंटरनेट और अन्य आधुनिक सुविधाओं से लैस था। यही नहीं, सत्ता में न रहते हुए भी देश के लगभग सभी पूंजीपति, उद्योगपति, बड़े व्यापारी अपनी महंगी कारों में वहां दर्शन को आते थे। उतनी भीड़ तो सत्ताधारी दल के प्रधानमंत्री के दरवाजे पर नहीं लगती थी। राजनीति में व्यक्तित्व प्रमुख होता है। जितनी सच्चाई और स्पष्टवादिता चंद्रशेखर सिंह में थी, उतनी ही अटलजी में भी रही
वे भी अपनी कमजोरी और दूसरों के एहसान को खुलकर जताते थे। चाहे राजीव गांधी हों या इंदिरा गांधी अच्छे कार्य के लिए उनकी प्रशंसा करने में पीछे नहीं रहते थे। वही अटलजी, नेहरू और इंदिरा गांधी से लेकर सत्ताधारी प्रधानमंत्रियों को अपनी वाक्पटुता से निरुत्तर कर देते थे। उनका ओजस्वी पहला भाषण संसद में जनसंघ से चुनकर जाने के बाद इतना प्रभावशाली था कि तात्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू खुद अपनी कुर्सी छोड़कर उनके पास आए और पीठ थपथपाते हुए बोले- बहुत अच्छा भाषण देते हो। फिर सदन को संबोधित करते हुए नेहरू ने कहा- यह लड़का एक दिन भारत का प्रधानमंत्री बनेगा। नेहरू की भविष्यवाणी सच साबित हुई। अटलजी दो बार भारत के प्रधानमंत्री बने। ग्यारह वर्ष पूर्व तक राजनीति में सौम्यता और सौहार्द बना रहा। किसी व्यक्ति पर कोई भी चाहे सत्ता पक्ष हो या विपक्ष- कभी भी व्यक्तिगत टिप्पणी नहीं करता था। संसद में हर मुद्दे पर गंभीर चिंतन और बहस होती रहती थी। सत्ता विपक्ष का और विपक्ष सत्ता का सम्मान करता था। कभी भी दुर्भावना वश किसी नेता ने भद्दी टिप्पणी नहीं की थी। हर सरकार में सदन की मर्यादा बनाए रखना पक्ष और विपक्ष की सामूहिक जिम्मेदारी ही नहीं, बल्कि जवाबदेही भी थी। राजनीति भी उच्च स्तर की होती थी। लेकिन आज सदन की मर्यादा- स्पीकर, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और मंत्री सभी भूल गए हैं। सदन में ही गैर-संस्कारी भाषाओं का प्रयोग, गाली-गलौज आम बात हो गई है। सांसद और मंत्री अपने पद की गरिमा गिरा चुके हैं। विपक्ष को नीचा दिखाने की प्रवृत्ति सत्ता में पिछले 11 वर्षों में क्रमशः कटु होती चली गई है। सदन की मर्यादा का चीरहरण किया जा रहा है। देशज भाषा में कहा जाए तो आज सत्ता पक्ष “थेथरई” पर उतर आया है। चुनाव प्रचार का स्तर निम्नता से भी कई गुना नीचे गिर चुका है। प्रधानमंत्री मोदी सोनिया गांधी को क्या-क्या नहीं बोल गए। अपने ही व्यक्ति से अपनी ही मां को गाली दिलाकर, उस गाली देने वाले को बिहार विधानसभा से पार्टी टिकट देकर बीजेपी ने प्रमाणित कर दिया कि सत्ता के लिए उसके गिरने की कोई सीमा नहीं रह गई है। विपक्ष जब ईवीएम पर सवाल उठाता है तो प्रधानमंत्री क्या-क्या नहीं कहते। उन्हें याद ही नहीं रहता कि गुजरात में मुख्यमंत्री रहते उन्होंने ईवीएम के बारे में क्या कहा था। ईवीएम हैक की जा सकती है- यह बात दुनिया भर में कही और बताई जाती है। खुद मोदी के बेस्ट फ्रेंड ट्रंप ने उनके सामने ही ईवीएम की जगह बैलेट पेपर से चुनाव कराने और वोटिंग प्रतिशत बढ़ाने के लिए अमेरिकी डॉलर देने की बात कही थी। यही नहीं, 53 बार वे दोहरा चुके हैं कि भारत और पाकिस्तान के बीच परमाणु युद्ध रुकवाने के लिए उन्होंने टैरिफ बढ़ाने की धमकी दी थी। अब मोदी के बेस्ट फ्रेंड ट्रंप कहते हैं- कुछ और नहीं बोलूंगा, वरना मोदी का करियर खत्म हो जाएगा। रूस से भारत ने तेल खरीदना बंद कर दिया मेरी धमकी के बाद। आखिर ट्रंप बार-बार भारत का अपमान क्यों कर रहे हैं? सवाल उठना स्वाभाविक है कि आखिर ट्रंप के पास मोदी का कौन-सा गोपनीय तथ्य है, जिसके कारण हमारे प्रधानमंत्री ट्रंप को जवाब नहीं देते? कहीं डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी की बात सही तो नहीं कि “मोदी के गुनाहों की फाइलें ट्रंप के पास हैं? अगर जवाब दिया तो ट्रंप फांसी पर चढ़ा देगा? देश जानना चाहेगा कि आखिर मोदी, स्वतंत्र राष्ट्र भारत के लोकतांत्रिक प्रधानमंत्री होते हुए भी ट्रंप की अनर्गल बातों और धमकियों पर चुप क्यों रहते हैं? संसद में “56 इंच का सीना” बताते हुए मोदी कहते हैं।एक अकेला सब पर भारी। तो ट्रंप को जवाब देने के लिए कब 56 इंच का सीना दिखाएंगे? भले ही राहुल गांधी और निष्पक्ष देशी-विदेशी पत्रकार बिहार में SIR का सच हजारों बार दिखा चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट में भी जीवित लोग उपस्थित हो चुके हैं, फिर भी चुनाव आयोग थेथरई पर अड़ा हुआ है। सवाल चुनाव आयोग से पूछा जाता है तो दर्द बीजेपी को क्यों होता है? बीजेपी जवाब देने हमेशा सामने क्यों आती है? अब यह बात प्रमाणित हो चुकी है कि बिहार की “वितरलिस्ट” फर्जी थी, तो चुने गए 40 सांसदों की सरकार भी फर्जी प्रमाणित हो चुकी है। तारीफ दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता के साहस की जरूर होनी चाहिए। उन्होंने कहा था, “ईवीएम चोरी कर एक बार हम दिल्ली जीत गए।