
पुलिस चाहे सिविलियन हो या ट्रैफिक पुलिस, मनमाने ढंग से काम करने, पैसे वसूलने के मामले में कुख्यात होती जा रही है। यह हाल किसी खास राज्य का नहीं, समूचे देश का है। कारण है, मंत्रियों को चाहिए दौलत। हर थाने, हर चौकी, हर टोल टैक्स वसूली केंद्र और हर रोड पर। ऐसा नहीं है कि सारे पुलिस वाले ही भ्रष्ट हैं। उनमें कई बेहद संवेदनशील भी हैं जो गरीब खोमचे वालों की सहायता करते हैं। कोई छात्र या छात्रा गलत केंद्र पर पहुँच गई है तो उसे सही केंद्र पर पहुँचने में पीछे हटने वाले नहीं हैं कुछ पुलिस। ऐसा नहीं है कि सारे ट्रैफिक वाले ही घूसखोर हैं। कुछ सहृदय भी होते हैं कि रास्ता भटक गए ट्रक ड्राइवर को सही मार्ग बताते हैं, पानी भी देते हैं पीने के लिए, खाने के लिए भी पूछते हैं। मूल सवाल है- भ्रष्टाचार क्यों है पुलिस विभाग में? मंत्री जी को हर महीने दौलत चाहिए। इसलिए हर थाने पर पोस्टिंग की लिस्ट और कीमत तय कर ली गई है। हर थाने से हफ्ता वसूली का टारगेट भी सुनिश्चित कर दिया गया है। पुलिस जान की परवाह न करके किसी अपराधी, गुंडे, बदमाश को गिरफ्तार करती है, तब मंत्रीजी का तुरंत फोन आ जाता है। वह मेरा खास आदमी है, तुरंत छोड़ दो उसे। अक्सर हर सरकार पुलिस को अपना पालतू बना लेती है। जैसे ही सरकार बदलती है, दूसरी सरकार के खास पुलिस का ट्रांसफर कर दिया जाता है। अपने आदमी को माल मिलने वाले स्थान पर भेज दिया जाता है। इसलिए पुलिस भी लापरवाह होकर पैसा कमाने में लग जाती है। दूसरी सरकार आते ही आईएएस, आईपीएस का ट्रांसफर कर दिया और रिजर्व में बिठा दिया जाना आम बात हो गई है। यह ट्रांसफर–पोस्टिंग का काम पाँच सालों तक चलता रहता है। चुनाव आते ही चुनाव आयोग के नाम पर बड़े अधिकारियों की खास जिले में पोस्टिंग कर दी जाती है ताकि सरकार की पार्टी को फायदा पहुँचाते हुए उसके कैंडिडेट को जीता दे। अक्सर डीएम पर ऐसे आरोप राजनीतिक दल लगाते रहते हैं कि फलां–फलां सीट पर डीएम ने उसके प्रत्याशी को हरा दिया। यह आरोप प्रायः हर पार्टी लगाती रहती है क्योंकि उनको अपने प्रत्याशी जिताने का अनुभव रहता है। इसलिए सरकार अपने लोगों को अपने हिसाब से फायदे के लिए पोस्टिंग और ट्रांसफर करती है। इसलिए पुलिस भी जनता के प्रति उदासीन हो जाती है। किसी की लड़की का भले अपहरण कर लिया गया हो, एफआईआर लिखाने गए पिता–माता, भाई–बहनों से पुलिस प्रायः एक ही बात कहती है। किसी यार के साथ भाग गई होगी। ऐसा ही एक शिक्षिका के मामले में हुआ, जिसका अपहरण कर सामूहिक रेप और फिर हत्या कर दी गई। यदि पुलिस सूचक मिलते ही ऐक्शन में आती तो संभव है उक्त शिक्षिका को बचाया जा सकता था। वैसे तो अपने थाने क्षेत्र में कम अपराध दिखाने की होड़ में साधारण लोगों की एफआईआर तक नहीं लिखी जाती, लेकिन जैसे ही किसी प्रभावशाली, धनवान या नेता का मामला होता है, वही पुलिस तुरंत ऐक्शन में आ जाती है। ज़्यादातर पुलिस बाइक, ट्रक वालों से ही नहीं, ऑटो चलाने वालों से भी पैसे वसूलती रहती है। जैसे ही कोई नया–नया आईजी बनता है तो वह प्रेस कांफ्रेंस बुलाकर अमन कायम करने, पुलिस की कार्यशैली में बदलाव लाने की बात कहता है। लेकिन बाद में वह भी सरकार का खास बनकर रह जाता है। सवाल यह है कि पुलिस की कार्यशैली में बदलाव आता क्यों नहीं? पुलिस बेलगाम क्यों हो जाती है? पहली बात- मंत्री जी को हफ्ता देना। दूसरी है अंग्रेजों द्वारा बनाए गए नियम–कानून का अभी तक लागू रहना। अंग्रेज यहाँ शासन करने आए थे तो जनता को कैसे लूटा और अंकुश में रखा जाए, कानून और नियम बनाए थे ताकि क्रांतिकारियों और आंदोलनकारियों पर अंकुश लगाया जा सके। यही काम आज की सरकारें करती हैं। उनका पुलिस पर अप्रत्यक्ष रूप से अंकुश रहता है। अपने विरोधियों को मात देने के लिए पुलिस का दुरुपयोग किया जाता है। लेकिन लखनऊ में कॉलेज फीस बढ़ाए जाने पर जब खुद बीजेपी की स्टूडेंट इकाई वाले छात्रों पर लाठीचार्ज कर दिया गया तो सरकार तुरंत ऐक्शन में आ गई। यही अगर विपक्ष के छात्र संगठन के ऊपर पुलिस लाठीचार्ज करती तो सरकार कदापि ऐक्शन नहीं लेती। सरकार अपनी छात्र संघ, अपना तो ऐक्शन लिया ही जाएगा। एसएससी परीक्षा को लेकर जब छात्रों के साथ शिक्षक भी सड़क पर उतरे तो उनके साथ पुलिस ने जो दुर्व्यवहार किया उसकी चर्चा ही व्यर्थ होगी। क्योंकि जब जिस सरकार में छात्रों की समस्याएँ नहीं सुनी जाएँगी, शिक्षक उनके समर्थन में सड़क पर आएँगे तो निश्चित ही उनके साथ भी पुलिसिया दुर्व्यवहार होगा। अब आते हैं ट्रैफिक पुलिस पर। किसी भी राज्य के बॉर्डर और टोल टैक्स वसूली केंद्र के आस–पास ट्रैफिक पुलिस वाले अक्सर ट्रक ड्राइवरों से पाँच–दस हजार घूस की माँग करते दिख जाएँगे। कभी–कभी तो अंदर लोड गाड़ी होने के बावजूद ओवरलोड बताकर लाखों रुपए के चार्ज लगा दिए जाते हैं। ट्रैफिक पुलिस अकेले में जा रहे ट्रक के पीछे हाथ धोकर इसलिए पड़ जाती है कि उसके साथ सफेद वर्दी का रौब झाड़कर वसूली करना आसान होता है। अकेला ड्राइवर कितना विरोध करेगा? सारे कागजात पूरे हों, अंदर वेट हो ट्रक, फिर भी ड्राइवर पर बदसलूकी करने, सरकारी काम में बाधा डालने जैसे बेबुनियाद झूठे आरोप लगा दिए जाते हैं। कभी–कभी तो बीस हजार से लेकर पचास हजार ही नहीं, दस–बीस लाख का जुर्माना लगा दिया जाता है। आरटीओ के घर छापा पड़ने के बाद करोड़ों की संपत्ति मिलना क्या ईमानदारी की कमाई से संभव है? बिना गलत तरीके से कमाई किए कोई आरटीओ करोड़पति कैसे बन सकता है? कभी–कभी तो सौ–पचास रुपए के लिए ट्रैफिक पुलिस ड्राइवर के बगल का गेट खोलकर चाभी निकाल लेते हैं। डंडे से मारते हैं और खींचकर जबरदस्ती नीचे उतार लेते हैं जिससे ढेर सारी वसूली की जा सके। कभी–कभी ट्रैफिक पुलिस के बेलगाम होने के सबूत भी मिले हैं। जब ट्रैफिक पुलिस हफ्ता लेने ड्राइवर साइड से ऊपर चढ़ जाता है, तब ड्राइवर का गुस्सा होना स्वाभाविक ही है। वह ट्रक चला देता है जिससे ट्रैफिक पुलिस नीचे उतर नहीं पाता, तो ड्राइवर लटकते पुलिस को दस–बीस किलोमीटर तक ले जाकर उतार देता है। जब बहुत सारे ड्राइवर एक साथ होते हैं और ट्रैफिक पुलिस मनमानी पर उतर आती है तो ड्राइवरों और पुलिस के बीच मारपीट होने लगती है। ऐसी अप्रिय घटनाएँ ट्रैफिक पुलिस की मनमानी के कारण ही देखने को मिलती हैं। पुलिस चाहे सिविलियन हो या ट्रैफिक, नेता भी अपात्र होते हैं तो ऐसी घटनाएँ सामान्य हो जाती हैं। अगर पुलिस–ट्रैफिक वाले ऐसी ही मनमानी करते रहे तो वह दिन दूर नहीं जब देश में क्रांति हो जाएगी। समझदारी सरकार चलाने वालों में होनी अपरिहार्य है। सत्पात्र नेता होते तो पुलिस को भी सत्पात्र नियुक्त करते। अपात्र नेतृत्व ही सारी समस्याओं की जड़ है।