
उत्तर प्रदेश समस्याओं का गढ़ बन गया है। शिक्षक भर्ती को लेकर युवा सड़कों पर पुलिस की लाठियां खा रहे हैं। विकास के सारे दावे फेल दिखते हैं। विधायकों की अपनी अलग शिकायतें हैं। विधानसभा के विधायकों की अलग तो विधान परिषद उच्च सदन के विधायकों को विधायक कहकर संबोधित नहीं किए जाने की शिकायत है। विधायकों की कितनी सुनते हैं उच्चाधिकारी, डीएम और एसपी, इस पर तमाम विधायकों की अलग-अलग राय है। पूर्व सरकार में सांसदों की भी शिकायत रही कि अधिकारी उन्हें कोई तवज्जो ही नहीं देते। एक बड़े पेपर घराने ने इस संदर्भ में जब विधायकों से बात करनी चाही तो कुछ ने खुलकर बात की, कुछ ने दबी जुबान में बताया तो कुछ ऐसे हैं जिनके फोन ही स्विच ऑफ मिले। कुछ के पीएस ने बात की। चंद दिनों पूर्व एक महिला मंत्री को धरने पर बैठने को मजबूर होना पड़ा। उनकी शिकायत थी, अफसर सुनते नहीं और मंत्री कोई कार्रवाई ही नहीं करते। कुछ मंत्री ऐसे भी हैं जिनकी भी अफसर नहीं सुनते। राजभर के सभी विधायकों ने बात करने से मना कर दिया। इसके पूर्व पार्टी प्रमुख ने अपने विधायकों को निर्देश दिया था कि अकेले मत जाएं, अपने कंधे पर पीला गमछा जरूर लेते जाएं, लेकिन ग्रुप में जाएं तो मेरी हनक तुम लोगों में दिखेगी तो अधिकारी मना नहीं कर पाएंगे। सुसंभपा अध्यक्ष ने अपने विधायकों को हिदायत दी है। कुछ विधायकों ने विधानसभा में ही धरना इसी बात को लेकर दिया था। कुछ का कहना है कि टोल टैक्स वाले मानने को तैयार नहीं होते कि मैं विधायक हूं। वह तो गनर हमारे साथ रहते हैं इसलिए टोल वाले समझ जाते हैं कि हम विधायक हैं। लगभग आधे बीजेपी विधायक अपने मुख्यमंत्री की कार्यशैली से नाराज हैं, क्योंकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को अपने विधायकों, मंत्रियों पर विश्वास नहीं है। वे प्रशासकों पर ज्यादा विश्वास करते हैं। उन्हें प्रशासकों पर विश्वास इसलिए करना पड़ता है कि योगी जी बीजेपी संगठन से नहीं जुड़े हैं। केंद्र के प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री उनके दूर विरोधी माने जाते हैं। इसी लिए उन पर अंकुश रखने के लिए दो-दो उपमुख्यमंत्री थोप दिए हैं। पार्टी संगठन में योगी का एक भी व्यक्ति नहीं है, क्योंकि उनकी नियुक्ति सीधे बीजेपी अध्यक्ष नड्डा ने की है और जे. पी. नड्डा अमित शाह के आदमी हैं। हां, प्रभारी मंत्री की जरूर सुनी जाती है। कुछ विधायकों का कहना है कि विधायकों का जिस अधिकारी के साथ जैसा व्यवहार, भाषा होती है, अधिकारी वैसा ही आचरण करते हैं। योगी शासन में तमाम सांसदों की शिकायत थी कि अधिकारी उनकी सुनते नहीं। उनकी दो हिस्से में दिल्ली में मीटिंग बड़े नेताओं के साथ हुई थी, तब सांसदों ने गुहार लगाई थी। उनमें कई नकारा थे। एक जिले के सभागार में जिले के सारे उच्च अधिकारी और विधायक उपस्थित हुए। कुछ देर बाद एक सांसद आए। उनको कोई अधिकारी और विधायक पहचान ही नहीं पाए। तब उन्हें अपना परिचय देना पड़ा, तब लोग जान पाए। दरअसल अपने क्षेत्र की समस्या के संदर्भ में कोई विधायक और सांसद जिले के अधिकारियों से मिलता-जुलता है तो उसे अधिकारी जानते और पहचानते हैं। एक पूर्व विधायक हैं, जो अभी भी अधिकारियों से वैसे ही मिलते-जुलते हैं जैसे पहले मिला करते थे। सवाल यह है कि जब आप क्षेत्र में जनता के संपर्क में नहीं रहेंगे, उनकी समस्या सुनकर समाधान की कोशिश नहीं करेंगे तो आपके प्रोटोकॉल का कोई अर्थ ही नहीं। अभी भी पूर्व विधायक वैसे ही सक्रिय रहते हैं, तो उन्हें किसी को परिचय कराने की जरूरत ही नहीं होती। उनको देखा गया था कि क्षेत्र के हर व्यक्ति के दुख-सुख में शामिल होते रहे हैं। आज भी इनकी सक्रियता देखी जाती है। प्रभारी मंत्री ने आश्वस्त किया कि हर विधायक के प्रोटोकॉल का अधिकारी ख्याल रखेंगे। दिवंगत विधायक अंसारी अपने चुनाव क्षेत्र मऊ में बड़े लोकप्रिय ही नहीं, जनप्रिय थे। किसी भी जाति धर्म का कोई गरीब उन्हें बिटिया की शादी में निमंत्रण दे देता था, तब सबसे पहले वह उस व्यक्ति की आर्थिक स्थिति की जानकारी लेते थे। गरीब होने पर शादी का खर्च पूरा वहन करते रहे थे। उनके जीवित रहते मऊ के किसी विभाग का कोई कर्मचारी जनता से घूस मांगने की हिम्मत नहीं कर सकता था, क्योंकि हर अधिकारी जानता था कि किसी से घूस मांग लिया तो सूचना मिलते ही विधायक छाती पर सवार हो जाएंगे। वैसे बेहद कम विधायक हैं, जिनका दरवाजा सबके लिए खुला रहता था। पंडित कमला पति त्रिपाठी ऐसे महान नेता थे, जिनके आवास पर कोई भी गया होगा तो निराश नहीं होना पड़ा होगा। वे पार्टी नहीं, व्यक्ति और उसकी दशा देखते रहे। इसलिए आज भी याद किए जाते हैं। यही हाल अंसारी का भी था