
बांग्लादेश की अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना भारत में शरण ली हैं, जिनके विरुद्ध छात्रों ने आंदोलन किया, जिसे अमेरिका ने डॉलर्स और पाकिस्तान ने समर्थन ही नहीं, पूरा छात्र आंदोलन हाइजैक कर रक्तरंजित बना डाला आंदोलन। बांग्लादेश के आर्मी चीफ ने चंद दिनों पूर्व नेताओं को कठोर संदेश देकर राष्ट्रीय एकता, अखंडता के लिए काम करने की चेतावनी दी थी। उसके बाद चुनाव आयोग ने निष्पक्ष, पारदर्शी चुनाव करने के लिए मतदाताओं को आगाह किया कि वे बिना किसी दबाव के मतदान करें। उन्होंने नेताओं के बीच आम सहमति नहीं होने को रेखांकित किया और चुनावी गड़बड़ी करने से दूर रहने की चेतावनी देते हुए, अपदस्थ और निर्वासित जीवन बिता रही पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को भी आड़े हाथों लिया, जिन्होंने विपक्षी पार्टियों के चुनाव का बहिष्कार करने के बावजूद बूथ कैप्चर कराकर चुनाव जीता और चौथी बार बांग्लादेश की प्रधानमंत्री बनी थीं। बांग्लादेश के चुनाव आयुक्त के पास इतना नैतिक पॉवर है, जो देश के राजनेताओं को फटकार लगा रहा है। जनता को अपने संवैधानिक अधिकार, मतदान का सही उपयोग करने का आह्वान किया।
क्या भारत में पारदर्शी और निष्पक्ष चुनाव कराने का साहस दिखा सकता है भारतीय चुनाव आयोग? क्या सत्ता के लिए हर तरह की अलोकतांत्रिक गतिविधियां कर जनता का विश्वास खो चुका चुनाव आयोग, लोकतंत्र की भी हत्या कर चुका है? उसके पक्षपाती रवैए, जिसमें ईवीएम हैक करने, वोट प्रतिशत गलत तरीके से वोटर लिस्ट में वोटर्स बढ़ाने जैसा घिनौना सच दुनिया के सामने आ चुका है। ईवीएम की विश्वसनीयता बताने के लिए आयोग को जनता में प्रचार करने की जरूरत ही क्या थी? इसके पूर्व तो कभी चुनाव आयोग को ईवीएम के सही होने का विज्ञापन देने की जरूरत ही नहीं पड़ी थी। भारतीय चुनाव आयोग लाखों गायब ईवीएम का कोई माकूल जवाब नहीं दे पा रहा। देश की बहुसंख्य जनता ईवीएम के स्थान पर बैलेट पेपर से चुनाव कराने की मांग खुलेआम सड़क पर उतर कर मांग कर रही है कि बैलेट पेपर से चुनाव कराओ। भारत के बहुसंख्य लोकतांत्रिक लोग भारतीय संविधान और लोकतंत्र की हत्या करने वाले चुनाव आयोग के कृत्यों की गूंज अमेरिका तक सात समुद्र पार सुनाई दे रही है। जैसे बांग्लादेश में सत्ता के मद में चूर शेख हसीना ने बेइमानी से पिछला चुनाव जीता था, इसीलिए अमेरिका ने यूएसएआईडी के माध्यम से छात्र आंदोलन के माध्यम से शेख हसीना को गद्दी छोड़ने को मजबूर कर दिया। क्या वैसे हालात भारत में नहीं दिख पड़ते? यहां तक कि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप को हमारे प्रधानमंत्री के सामने ही लोकतंत्र बचाने के लिए बैलेट पेपर से चुनाव कराए जाने की बात करनी पड़ी। जब बांग्लादेश का चुनाव आयोग हिम्मत कर सकता है कि वह सत्तारूढ़ दल के दबाव से मुक्त होकर, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टी एन शेषन की तरह राजनीतिक दलों और नेताओं को दिखा सके कि चुनाव आयोग निष्पक्ष है, जो सत्ता की धौंस नहीं मानेगा और देश में बैलेट पेपर से निष्पक्ष, पारदर्शी चुनाव करा सकेगा। पिछले दस वर्षों में चुनाव आयुक्तों की अलोकतांत्रिक गतिविधियां बता रही हैं कि चुनाव आयुक्तों का जमीर मर चुका है, जिसका एकमात्र लक्ष्य सत्तारूढ़ दल की चाकरी करना ही है। नैतिकता खत्म हो चुकी है। कितनी शर्म की बात है कि न्यायालय के आदेश और डांट खाने के बावजूद सुधारने का नाम नहीं ले रहा चुनाव आयोग। मृत हो चुका है। लोकतंत्र की हत्या बड़ी बेशर्मी से करता जा रहा चुनाव दर चुनाव। अगर तनिक भी शर्म शेष हो, तो चुनाव आयोग ईवीएम के स्थान पर बैलेट पेपर अथवा डिजिटल वोटिंग और काउंटिंग कराकर खुद को ईमानदार प्रमाणित करे, अन्यथा भारत के इतिहास में लिखा जाएगा कि यह चुनाव आयोग इतने अधिक भ्रष्ट और अनैतिक रहा है, जिसने समूची दुनिया में अपनी पक्षपाती अनीति के चलते नाक कटवाई है। गलतियां मनुष्य से ही होती हैं। देश में कहावत है कि सुबह का भूला शाम को यदि घर लौट आए, तो उसे भूला नहीं कहते। देश, संविधान और लोकतंत्र का तकाजा है कि चुनाव आयोग पड़ोसी बांग्लादेश के चुनाव आयोग से प्रेरणा लेकर निष्पक्ष, पारदर्शी चुनाव करने हेतु कटिबद्ध होते हुए बैलेट पेपर से चुनाव कराने की घोषणा कर दे और अभी भी समय है कि खुद को चुनाव आयोग लोकतांत्रिक बनाए।