
सुप्रीमकोर्ट के सीजेआई गवई ने वह कर दिखाया जो अब तक किसी भी सीजेआई ने नहीं किया। मद्रास हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के उस निर्णय को पलट दिया जिसमें कहा गया था कि चुनाव आयोग द्वारा चुनाव की घोषणा के बाद कोई भी न्यायालय, यहां तक कि सुप्रीमकोर्ट भी किसी प्रकार की दखल नहीं दे सकता। उत्तराखंड के एक स्थानीय चुनाव में कांग्रेस समर्थित प्रत्याशी का नामांकन ही रद्द कर दिया गया था। उसने हाईकोर्ट में अपील की तो हाईकोर्ट ने भी मद्रास हाईकोर्ट और उसके बाद सुप्रीमकोर्ट के फैसले को आधार मानकर अपील ही खारिज करते हुए कहा, चुनाव की अधिसूचना जारी होने के बाद हाईकोर्ट नैनीताल इसकी सुनवाई ही नहीं कर सकता। मामला उस प्रत्याशी महिला ने सुप्रीम कोर्ट में दायर किया। उस केस को माननीय सी जे आई ने अपनी बेंच में अटैच कर सुनवाई पूरी की और सुप्रीमकोर्ट के पिछले फैसले को पलटते हुए कहा, न्यायालय लोकतंत्र का गला घोटा जाना मूक दर्शक बनकर नहीं देख सकता। यानी सुप्रीमकोर्ट लोकतंत्र की हत्या रोकने को तैयार हो चुका है। अब सी जे आई का फैसला नजीर बन चुका है ताकि चुनाव आयोग के पक्षपात, बेइमानी पर अंकुश लगाया जा सके। सच में सी जे आई गवई के साहस की दाद देनी होगी। अभी-अभी खजुराहो मंदिर में टूटी मूर्ति के संबंध में दायर मुकदमे में उन्हें कुछ हिंदुओं का कोप भाजन बनाना पड़ा था। खजुराहो वास्तव में पुरातत्व के अधीन है। कोई भी निर्णय पुरातत्व विभाग ही ले सकता है, लेकिन सी जे आई की टिप्पणी थी कि भगवान विष्णु में आपकी आस्था है तो उनसे ही पूछ लीजिए। हर मामले में सुप्रीमकोर्ट को घसीटकर समय बर्बाद करना उचित नहीं है। जिस सुप्रीमकोर्ट के पूर्व सी जे आई आस्था के नाम पर निर्णय लिखकर संविधान का गला घोट चुके थे, ऐसे में सी जे आई का यह फैसला उनकी निष्पक्षता और संवैधानिक दायित्व निर्वहन के रूप में देखा जाना चाहिए। जिसके खिलाफ मीडिया में सी जे आई द्वारा धर्म पर हमला बताया जा रहा है। क्या गलत कहा सी जे आई ने? आस्था न्यायालय का विषय कभी भी नहीं हो सकता। संविधान की शपथ लेने वाला न्यायाधीश आस्था पर कैसेनिर्णय लिख सकता है? पटना हाईकोर्ट में एक ए आई जनरेटेड वीडियो, जिसमें पीएम मोदी की मां सपने में आकर कुछ सवाल करती हुई नजर आती हैं, को लेकर बीजेपी की तरफ से केस दायर किया गया है, जिसमें राहुल गांधी को नोटिस भेजा है जबकि वह वीडियो जारी करने में राहुल गांधी का हाथ नहीं है। जबकि ऐसा ही वीडियो बीजेपी आई टी सेल ने सोशल मीडिया में जारी किया है, जिसमें राहुल गांधी और तेजस्वी यादव को प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री बनने के लिए हाथापाई करते दिखाया गया है। दूसरी तरफ असम में मुख्यमंत्री द्वारा असम के भवनों, चाय बगान और हर कहीं मुस्लिम टोपी और बुर्का पहनी मुस्लिम महिला को दिखाकर बताया जा रहा है कि अगर असम में बीजेपी नहीं होगी तो क्या होगा। उसमें खुद मुख्यमंत्री टिप्पणी कर मुसलमानों का डर हिंदुओं को दिखा रहे हैं। ये मुख्यमंत्री जब कांग्रेस शासन में मंत्री बने थे तब क्या असम में हिंदू नहीं थे या मुस्लिम नहीं थे? वोट लेने के लिए राजनीति का स्तर गिराने में बीजेपी के तमाम मुख्यमंत्री, मंत्री, खुद पीएम और दूसरे नेताओं का हाथ रहता है। पीएम मोदी ने खुद मांगतीका और भैंस हिंदुओं से छीनकर कांग्रेस उनको देगी जिनके अधिक बच्चे होते हैं। माना कि मोदी जी की मां को सपने में आकर उनसे सवाल करना गलत और अपमान है, मा का तो कांग्रेस की विधवा बार डांसर और पचास करोड़ की गर्ल फ्रेंड कहना सार्वजनिक रूप से किसी मां का अपमान क्यों नहीं हो सकता? चुनाव आयोग बार-बार राहुल गांधी द्वारा सप्रमाण वोट चोरी के आरोप लगाने पर, यहां तक कि सुप्रीमकोर्ट पर उन जीवित लोगों को हाजिर किया गया जिन्हें चुनाव आयोग ने मृत बताकर मताधिकार छीन लिया है। महाराष्ट्र में चार महीनों में एक करोड़ मतदाता बढ़ाए जाने का मामला हो या कर्नाटक के एक विधानसभा क्षेत्र में एक लाख वोटर्स बढ़ाने जैसे मामले हों, सबमें चुनाव आयोग द्वारा राहुल गांधी को टारगेट कर एफिडेविट मांगा जाता रहा है, जबकि खुद चुनाव आयोग को एफिडेविट देकर सुप्रीमकोर्ट में कहना चाहिए कि उसने वोट चोरी नहीं की। यही नहीं, सोशल मीडिया में महात्मा गांधी के हत्यारे नाथुराम गोडसे की तरह दूसरे गोडसे बनने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है, यानी मूल बाधा बन चुके राहुल गांधी की हत्या करने को प्रेरित किया जा रहा है। बिहार में न्याय यात्रा के समय राहुल गांधी के ऊपर हमला किया जा चुका है। राहुल गांधी मोदी के ऊपर खुला आरोप वोट चोरी के द्वारा चुनाव जीतने का लगाते हैं। आज नहीं तो कल वाराणसी लोकसभा चुनाव का कालचित्ता देश के समक्ष रखा जाएगा। यही नहीं, सुरक्षा एजेंसी द्वारा कांग्रेस अध्यक्ष को लिखे पत्र में राहुल गांधी द्वारा प्रोटोकॉल तोड़ने की बात से सुरक्षा में कमी होने की बात लिखी जानी महज इत्तफाक है या और कुछ यह तो आने वाला समय ही बताएगा। लेकिन इतना सत्य है कि धमकियों से राहुल गांधी को सच कहने, लोकतंत्र की हत्या में बाधा बनने से रोका नहीं जा सकता। राहुल गांधी उस बलिदानी परिवार के हैं जिनकी दो पीढ़ियों ने अपने प्राण न्योछावर किए हैं। सी ई सी द्वारा महज 45 दिनों में चुनाव के सारे सीसीटीवी फुटेज मिटा देना कुछ और ही संकेत देते हैं। राहुल गांधी की हत्या की भी साजिश रची जा रही हो, संभव है। इसलिए सुप्रीमकोर्ट के सीजेआई ही एकमात्र अवलंब दिख पड़ते हैं जो वोट चोरी की पड़ताल करा कर वोट चोरी रोक सकते हैं। कर्नाटक में जांच कर रही सी आई डी को जांच करने से रोक दिया जाना शुभ संकेत नहीं है। आखिर चुनाव आयोग और बीजेपी में इतना डर क्यों है, अगर ईमानदारी से चुनाव जीत रही और चुनाव आयोग बिना किसी भेदभाव के निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव कराने का दंभ भरता हो तो। लोकतंत्र और संविधान के रक्षक होने के नाते सी जे आई ही एकमात्र आशा हैं जो दूध का दूध, पानी का पानी करने की क्षमता रखते हैं। अगर उन्होंने संविधान और लोकतंत्र की रक्षा के लिए कठोर कदम उठा लिए तो निश्चित ही चुनाव फेयर होंगे, ईमानदार होंगे।