
ट्रंप जैसा अगर मित्र हो तो फिर किसी शत्रु की जरूरत ही नहीं होती। वैसे इतिहास देखें तो अमेरिका ने कभी भी भारत का हित चाहा ही नहीं। भारत को परेशान करने, बेइज्जत करने और भारत के खिलाफ साजिश रचने में अमेरिका हमेशा सबसे आगे रहा है। अमेरिका, भारत के जन्मजात शत्रु पाकिस्तान को न केवल धन और अस्त्र-शस्त्र से, बल्कि नैतिक और राजनीतिक समर्थन भी देता रहा है। लेकिन इतनी कटुता पहले कभी नहीं रही कि वह भारत की अर्थव्यवस्था ही चौपट करने की चाल चले। भले ही भारत सरकार कितनी भी यह कहे कि हम जापान को पछाड़कर विश्व की चौथी अर्थव्यवस्था बन गए हैं, माना कि भारत में तेज़ आर्थिक विकास की शक्ति रही है, पर आज स्थिति बेहद गंभीर हो चुकी है। ट्रंप ने भारतीय निर्यात पर पहले 25 प्रतिशत टैरिफ लगाकर मुश्किलें खड़ी कीं और फिर रूस से कच्चा तेल पूंजीपतियों द्वारा खरीदकर विदेशों में ऊँचे दाम पर बेचने के कारण भारत पर और 25 प्रतिशत टैरिफ बढ़ा दिया। इससे भारतीय निर्यातकों को लगभग एक हज़ार करोड़ का नुकसान हुआ। सरकार ने चंद पूंजीपतियों के 25 लाख करोड़ के बैंक कर्ज माफ करके जनता को मुसीबत में डाल दिया। दूसरी ओर जीएसटी लगाकर आम भारतीयों का खून चूसने का काम किया। देश का 64 प्रतिशत संसाधन मात्र एक प्रतिशत पूंजीपतियों के पास चला गया, जबकि टैक्स केवल 13 प्रतिशत। पूंजीपतियों की आय वृद्धि को भारतीय जनता की आय वृद्धि नहीं माना जा सकता।
विदेशी कर्ज 55 लाख करोड़ से बढ़कर 255 लाख करोड़ हो गया, जिसकी ब्याज अदायगी में जीडीपी का बड़ा हिस्सा चला जाता है। विदेशी कर्ज बढ़ने से रुपया डॉलर के मुकाबले लगातार गिरता जा रहा है। आज रुपया गिरकर एक डॉलर के मुकाबले 88 रुपए से अधिक हो गया है। अगर शतक लगा ले तो आश्चर्य नहीं होगा। बड़ी देर बाद आरबीआई को होश आया कि गिरते रुपए को संभालने के लिए कुछ किया जाए। पूर्व आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन ने पहले ही चेताया था, लेकिन उनकी बात नहीं सुनी गई। जीएसटी कम करने के नाम पर भी सरकार ने खेल किया। पूंजीपतियों ने अपने उत्पादों के मूल्य पहले ही बहुत अधिक कर दिए थे। तैयार माल पर भले दस प्रतिशत जीएसटी कम की गई, लेकिन कच्चे माल पर 40 प्रतिशत जीएसटी थोपकर जनता का लहू निचोड़ा जा रहा है।
सरकार ही नहीं, आरबीआई के भी हाथ-पाँव फूलने लगे। तब आरबीआई ने गिरते रुपए को संभालने के नाम पर 35 टन रिज़र्व सोना बेच दिया, जिससे विदेशी निधि पर विपरीत असर पड़ा और विदेशी मुद्रा भंडार में 14 प्रतिशत से अधिक की कमी आई। यही नहीं, आरबीआई द्वारा सरकार को साठ हज़ार करोड़ रुपए देने की भी खबरें हैं। सवाल उठना स्वाभाविक है कि सरकार को लाखों करोड़ रुपए जीएसटी से मिलते हैं, तो फिर आरबीआई द्वारा सोना बेचकर प्राप्त धन और 60 हजार करोड़ की ज़रूरत क्यों पड़ी? इतने सारे टैक्स का पैसा आखिर जाता कहाँ है? दो सौ लाख करोड़ का विदेशी ऋण लेकर प्राप्त धन कहां और कैसे खर्च किया जा रहा, यह सरकार ने कभी जरूरी नहीं समझा बताना। जनता के श्रम के धन से निर्मित सारे संसाधन पोर्ट, एयरपोर्ट, खदानें और ज़मीन- मुफ्त में दे दिए गए ताकि संचालन के नाम पर दौलत की लूट की जा सके। विश्व के नंबर एक धनी भले बन जाएं, लेकिन उनका कौन-सा उत्पाद बाजार में उतारा गया? बिहार चुनाव में वोट खरीदने के लिए लाखों महिलाओं के खातों में दस-दस हजार रुपए डालने की जगह, उसी धन से बिहार की बंद मिलें चालू की जा सकती थीं, फैक्ट्रियाँ खोलकर बिहारियों को रोजगार दिया जा सकता था। पर कहा गया कि फैक्ट्री गुजरात में खुलेगी, मगर मजदूरी करने बिहार के मजदूर आएंगे। बीस वर्षों से बिहार में भारतीय जनता पार्टी और नीतीश कुमार का शासन है — कितने स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटी खोले गए? विकास केवल नेशनल हाईवे बनाने से नहीं होता, ये तो बिजनेसमैन के सामान ढोने के लिए बनाए जा रहे हैं। आम जनता को क्या लाभ? जनता पर टैक्स पर टैक्स लगाए जा रहे हैं। वाहनों पर रोड टैक्स लेने के बावजूद टोल टैक्स क्यों लिया जा रहा है? 64 प्रतिशत संसाधनों पर कब्जा होने के बावजूद सिर्फ 13 प्रतिशत टैक्स पूंजीपतियों से और बाकी टैक्स गरीबों से क्यों वसूले जाते हैं? किसी देश की जीडीपी वहां के नागरिकों की आर्थिक खुशहाली से मापी जाती है। जिस देश में 80 करोड़ लोगों को पाँच किलो अनाज बाँटना गर्व की बात समझा जाए, वहाँ से आर्थिक उन्नति की आशा बेमानी है। गाँव की सड़कें खस्ताहाल हैं, अस्पतालों में दवाइयाँ नहीं, डॉक्टर नहीं, संसाधन नहीं। कृषक आत्महत्या को मजबूर हैं, छोटे व्यापारी कर्ज के बोझ से दबकर जान दे रहे हैं। ऐसे में पूंजीवादी व्यवस्था बेहद खतरनाक सिद्ध हो रही है। सरकार को पूंजीपतियों की नहीं, आम जनता की आय बढ़ाने के लिए रोजगार देने होंगे। पूंजीपति कितना रोजगार देंगे? जिनका ध्यान राष्ट्र और जनता की उन्नति पर नहीं, केवल अपनी पूंजी बढ़ाने पर है। अभी भी वक्त है। सरकार चेत जाए और आम लोगों की खुशहाली के लिए काम करे। शासन-प्रशासन पूरी तरह भ्रष्ट हो चुका है। खुद प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था। “रुपया उसी देश का गिरता है, जहां की सरकार भ्रष्ट होती है। भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई और जीरो टॉलरेंस का दावा करने वाली सरकार ने विपक्षी भ्रष्टाचारियों को अपने साथ लेकर साबित कर दिया कि भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई केवल एक जुमला थी।




