वरिष्ठ लेखक- जितेंद्र पांडेय
पहले डॉक्टर को धरती का भगवान कहा जाता था और चिकित्सा व्यापार नहीं सेवा हुआ करती थी परंतु करोड़ों रुपए व्यय कर सर्टिफिकेट खरीदने वाले, जी अवश्य वे डॉक्टर नहीं है जो करोड़ों खर्च कर मेडिकल की डिग्रियां लेते हैं। करोड़ों व्यय कर अस्पताल खोलते हैं और मुर्दों का इलाज कर लाखों रुपए चूसते हैं।अक्सर सुना जाता है रोगी की मृत्यु के बाद भी डॉक्टर आईसीयू में रखकर बताते हैं हम कोशिश कर रहे बचाने की। दो शॉर्ट फिल्म इसी को आधार बनाकर बनी हैं एक बॉलीवुड की तो दूसरी साउथ की जो बताती हैं कि डॉक्टर काली कमाई के लिए मुर्दे का जिसकी मृत्यु का सर्टिफिकेट बन चुका है,का इलाज के नाम पर लाखों रूपए लूटकर अंत में कहते हैं सॉरी हमने बड़ी कोशिश की लेकिन पेशेंट को बचा नहीं पाए। चंद डॉक्टर ऐसे हैं जिन्हें मेरा प्रणाम जो वास्तव में धरती के भगवान है। जैसे बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी से रिटायर हो चुके हैं डॉक्टर लाहिड़ी जो अभी भी बी एच यू में मात्र एक रुपए वेतन लेकर रोगी का इलाज कराते हैं। अच्छे डॉक्टर वे हैं जो सस्ती किंतु अच्छी परखी हुई दवाएं लिखते हैं। कुछ सर्जन मेरी जिंदगी में आए। हर्निया का ऑपरेशन था। कई बड़े डॉक्टर से कंसल्ट किया। लगभग सभी ने कहा, ऑपरेशन जरूरी है लेकिन किडनी डैमेज हो सकती है। मैं उनकी टेक्निक समझ गया। साइंस का स्कॉलर होने के नाते इतना तो पता ही था कि हर्निया और किडनी के बीच लगभग छः इंच का फैसला होता है तो ऑपरेशन हर्निया का किडनी कैसे डैमेज होगी? यही नहीं डॉक्टर पहले ही दस से पचास हजार का टेस्ट कराते हैं। वे जिस पर्ची पर जांच लिखते हैं उसपर पैथलोजी का पूरा पता ही नहीं मार्ग भी बना होता है। डॉक्टर वही से जांच कराने को कहता है। एक पैथालोजी वाले मित्र ने गोपनीयता बरतने की शर्त पर बताया कि जांच कराने में जितना खर्च होता है उसमें डॉक्टर का पच्चास प्रतिशत कमीशन होता है। दूसरी बात डॉक्टर किसी खास ब्रांडेड कंपनी की ही दवा लिखते हैं। उसमें भी कमीशन मिलता है।तीसरी बात फर्मासितिकल कंपनिया नामी गिरामी डॉक्टरों को फाइव या सेवन स्टार होटल में डिनर देती हैं। डिनर के साथ हो मोटी रकम रिश्वत में देती हैं। ताकि डॉक्टर उनकी कंपनी की ही दवा लिखें। कुछ डॉक्टर ऐसी दवा लिखते हैं जो ब्रांडेड नहीं होती लेकिन वे दवाएं उस डॉक्टर की ही मेडिकल दुकान पर उपलब्ध होती हैं। हां चंद डॉक्टर ऐसे भी हैं जो ब्रांडेड दवाएं लिखते हैं जो पूरे देश में कहीं भी उपलब्ध रहती है। हां तो मैं अन्य नगर पहुंचा। सर्जन ने कुछ टेस्ट लिखा और कहा कहीं से भी आप टेस्ट करा लीजिए जहां आप को सस्ता पड़े। कहना न होगा कि उक्त सर्जन ने सर्जरी की। दूसरी सुबह जब विजिट पर आए तो डॉक्टर से पूछा, डॉक्टर कहीं किडनी तो डैमेज नहीं हुई। उनका जवाब था ऑपरेशन हर्निया का किया तो किडनी डैमेज क्यों होगी? जब मैंने कहा कि हमारे यहां के डॉक्टर कह रहे थे। तब डॉक्टर ने मुस्कुराते हुए कहा, आप के वहां सारे डॉक्टर्स वही कहते हैं। अब आते हैं फर्मासियिकल कंपनियों की ओर। सर्वप्रथम बात यह कि यूरोप में टेंथ जनरेशन की दवाएं रोगियों को लिख रहे हैं जबकि अपने देश में अभी भी थर्ड जनरेशन की ही दवा लिखी जाती है।फर्मासितिकल्ल कंपनिया जो अधिकतर विदेश की हैं वे अभी भी थर्ड जनरेशन की ही दवाएं बनाते और बेचते हैं। पांच रुपयों की दवा चार गुनी अधिक एसआरपी पर बेची जातें हैं। डॉक्टर सोचता है लोग बीमार होते रहें ताकि उसकी लूट की दुकान चलती रहे। फर्मासिटिकल कंपनिया सोचती हैं उनका घटिया प्रोडक्ट्स बिकता रहे। मेडिसिन का दुकानदार चाहता है लोग बीमार रहेंगे तो दवाइयां बिकती रहेंगी मोटा मुनाफा होता रहेगा और विदेशी इन्वेस्टर्स भारत स्थिति दवा निर्माता कंपनियों में पैसे इसलिए लगाते हैं कि भारत के लोग एडवांस बन रहे। रेहड़ी पटरी पर बिकते खाद्य पदार्थ खाते रहें बीमार पड़ते रहें। कम असरकारक या बिलकुल असर न करने वाली दवाई बनाकर पांच रुपए व्यय करके एमआरपी दस गुना छपकर दौलत कमाते रहें। इन तीनों ने भारत की सेहत खराब करने, उन्हें बीमारी से छुटकारा नहीं दिलाने के लिए गठजोड़ कर देश की जनता को लूट रहे। आप को सिर दर्द होता है या हाइपर टेंशन हुआ डॉक्टर के पास पहुंचे वह दवा की पर्ची अपनी फीस लेकर पकड़ा देगा। हाई बीपी है। डॉक्टर के कहने पर आप दवा रोज खाते हुए निश्चिंत हो जाते हैं कि अब चिंता की बात कोई नहीं है। पर आपको यह पता ही नहीं चलने देंगे कि आप जो दवा खा रहे उससे आपको कोई फायदा नहीं होगा। उलटे आप कभी भी गंभीर रूप से बीमार पड़कर डॉक्टर और लुटेरे अस्पताल में भर्ती होने के लिए बाध्य हो जायेंगे। चंदा दो धंधा लो के बाद तो दवाओं के मूल्य में लगभग दोगुनी बढ़त हो गई है कुछ महीने पूर्व ड्रग्स रेज्युलेटरी बॉडी यानी CDSCO ने दवाओं की जांच की है जिसमे 53 दवाएं बुरी तरह से फेल हो चुकी हैं। जिसका अर्थ है आप जिस मर्ज की दवा ले रहे हैं, वह दवा उस बीमारी में कारगर ही नहीं है। साइड इफेक्ट अलग से। इसलिए ऐसी दवाएं खाना अपनी सेहत से खिलवाड़ करना है। रेज्युलेटारी बॉडी ने अगस्त महीने में 48 तो ऐसी हैं जो टेस्ट में फेल हो चुकी है जबकि 5 दवाएं ऐसी हैं जिन्हें दवा निर्माता कंपनियां अपनी मानने की तैयार ही नहीं हैं। ये नकली दवाएं नामचीन कम्पनियों के नाम से बाजार में बेची जा रही हैं। फेल होने वाली दवाओं की निर्माता कंपनियां हेटेरो ड्रग्स, अल्केम लैबोटारिज, हिंदुस्तान एंटीबायोटिक्स लिमिटेड, कर्नाटक एंटीबायोटिक एंड फारमास्युतिकल लिमिटेड जैसी नामी गिरामी कंपनिया शामिल हैं।इसलिए हम डॉक्टरों और फार्मा कंपनियों पर भरोसा कर ही नहीं सकते। हमें सोचना होगा कि हमारी वे कौन सी आदतें हैं जिनके कारण हम बीमार पड़ते हैं। हमें अपनी सेहत का खुद ख्याल रखना होगा। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के सर्वे में बताया गया है कि भारत में 45 प्रतिशत डॉक्टर गलत दवाएं लिख रहे हैं। ये वही डॉक्टर्स हैं जिन्हें दवा बनाने वाली कंपनियां मोटी रकम बतौर तोहफा दिया है। उन्हें अपने ग्राहक की जिंदगी से कोई सरोकार ही नहीं है। बस पैसा बनाना कमीशन खाना उनका पेशा है। ऐसे डॉक्टर्स बेवजह पैंतोप्राजोल, रेबेप्राजोल, डॉम्परिडोन और एंजाइम ड्रग्स धड़ल्ले से लिखते हैं जो किसी काम की नहीं है। कैल्सियम, विटामिन डी के लिए बच्चो को दी जाने वाली दवा जो टोरेंटो फारमास्युतिकल कंपनी बनाती है टेस्ट में बुरी तरह फेल हो गई। बच्चो के दांत निकलने ,बडोंकी हड्डियों की समस्या, ऑस्टियोपोरोसिस से बचाने की दवा फेल हो गई। हम जो दवाएं खाते हैं और टेस्ट में फेल हो गई हैं वे एंटीबायोटिक ड्रग्स, एंटीबैटीरियल ड्रग्स, एंटी फंगल ड्रग्स, बुखार, दर्द निवारक, डाईबितीज, गैस, हाई ब्लडप्रेशर, मल्टीबिटामिन, कैल्सियम, विटमिन डी 3, बिटमिन बी कॉम्प्लेक्स सप्लीमेंट आदि बेहद खतरनाक दवाएं हैं। इंडिया ब्रांड इक्विटी फाउंडेशन ने बताया कि फार्मा इंड्रस्ट्री बीते सालों में 37 प्रतिशत का कंपाउंड ग्रोथ कर चुकी हैं। इस वर्ष भी 11प्रतिशत ग्रोथ का अनुमान लगाया है। ये कंपनियां सेवाभाव से नहीं दौलत बनाने के उद्देश्य से चल रहीं। बेहतर होगा कि हम इन लुटेरी कमोनियो और डॉक्टर के भरोसे नहीं अपने कंट्रोल में रहें। यहां तक कि पैरासिटा मॉल भी फेल है जो अक्सर सभी लोग खुद खरीदकर उपयोग करते हैं। डॉक्टर लिखते हैं।ड्रजिस्ट्र भी मांगने पर देते हैं।
आप कैसे अपनी सेहत अपने हाथों में रख सकते है। आइए जानते हैं। सुबह जल्दी उठें। उम्र के हिसाब से आधे से दो घंटे व्यायाम करें। योग और मेडिटेशन करें। आधा घंटा सुबह धूप में बैठे।सुबह की सैर पर निकले। पैदल चलें या सायकिल चलाए। सुबह नाश्ते में ताजे फल का सेवन करें।दलिया खाएं। दिन भर में आठ गिलास पानी पिएं। ऑफिस का काम ऑफिस में निबटा लें। घर टेंशन लेकर न आएं। दोस्तों परिजनों। के साथ गपशप करें। टीवी ज्यादा देर न देखें। सोने के दो घंटे पूर्व भोजन करे। सोने से एक घंटे पूर्व अपनी मोबाइल लैपटॉप बंद कर लें। रात देर तक न जागे। आठ घंटे की भरपूर नींद लें। सुबह गुनगुना पानी पेट भर जरूर पिएं।