
नई दिल्ली। तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी से जुड़े 2015 के चर्चित कैश-फॉर-वोट मामले में बुधवार को सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई हुई। इस दौरान रेड्डी के वकील मुकुल रोहतगी ने तर्क दिया कि भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) द्वारा रचा गया जाल पूरी तरह अवैध था और उनके मुवक्किल पर दर्ज मामला कानूनी रूप से टिकाऊ नहीं है। जे. के. माहेश्वरी की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष पेश हुए रोहतगी ने कहा कि सीआरपीसी के प्रावधानों के तहत एफआईआर दर्ज किए बिना कोई जांच शुरू नहीं की जा सकती, जबकि इस मामले में न तो कोई प्रारंभिक डायरी प्रविष्टि दर्ज की गई और न ही एफआईआर दर्ज हुई। उन्होंने दलील दी कि यह पूरा ऑपरेशन कानून की प्रक्रिया का उल्लंघन था। मुकुल रोहतगी ने यह भी तर्क दिया कि एसीबी द्वारा लगाए गए आरोप भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 12 के तहत आते हैं, जो केवल रिश्वत लेने वाले सरकारी कर्मचारियों पर लागू होती है, न कि रिश्वत देने वालों पर। उन्होंने कहा कि रिश्वत देने वालों को कानून के दायरे में 2018 के संशोधन के बाद ही शामिल किया गया था, जबकि यह मामला 2015 का है। गौरतलब है कि 31 मई 2015 को रेवंत रेड्डी, जो उस समय तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) के नेता थे, को एसीबी ने गिरफ्तार किया था। उन पर आरोप था कि उन्होंने विधान परिषद चुनावों में टीडीपी उम्मीदवार वेम नरेंद्र रेड्डी के समर्थन के लिए निर्दलीय विधायक एल्विस स्टीफेंसन को 50 लाख रुपये की रिश्वत देने की कोशिश की थी।
एसीबी ने रेवंत रेड्डी और अन्य आरोपियों के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम तथा भारतीय दंड संहिता की धारा 120बी (आपराधिक षड्यंत्र) के तहत आरोप पत्र दायर किया था। बाद में सभी आरोपियों को जमानत मिल गई थी। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर अब गुरुवार को भी बहस जारी रहेगी।




