
वरिष्ठ लेखक- जीतेंद्र पांडेय
चेतनात्मक क्षमता युक्त कोई भी व्यक्ति ब्राह्मण है। जो सत्यनिष्ठ, सत्यानुशासित, न्यायपरायण, त्यागी, अपरिग्रही, शिक्षक, गुरु बनकर दुनिया क्या, सृष्टि का उद्धारकर्ता रहा है। मनुस्मृति ने ब्राह्मण को पाँच घर भिक्षा माँगकर परिवार का भरण-पोषण करने को विवश किया। यदि पाँच घरों से भिक्षा नहीं मिली, तो सपरिवार भूखे रहने को विवश किया गया। अपने सहपाठी मित्र द्रुपद के यहाँ एक गौ माँगने जाने पर उसे दुत्कार मिली, जबकि द्रुपद ने कहा था, आधा राज्य तुम्हें दूँगा राजा बनने पर। विवाद होने पर द्रोणाचार्य को प्रण करना पड़ा कि आज से केवल राजपुत्रों को ही शिक्षा दूँगा और पारिश्रमिक लेकर परिवार का पेट पालूँगा। आचार्य द्रोण, जिनका पुत्र अश्वत्थामा जब पैदा हुआ, तो माँ के स्तनों से दूध नहीं निकलने पर वह मरने की कगार पर पहुँच गया था। इतनी विवशता समाज में किसी की नहीं रही। परशुराम के पिता के साथ छल कर क्षत्रिय राजपुत्री को ब्राह्मण बनाकर विवाह कराया गया। उनके पिता की हैहय क्षत्रियों ने हत्या कर दी, इसलिए परशुराम बनना पड़ा। परशु लेकर इक्कीस बार हैहय क्षत्रियों का विनाश किया, परंतु स्त्रियों, बच्चों, बुजुर्गों पर कभी भी हाथ नहीं उठाया। जब वे बच्चे बड़े हुए, तब-तब उनका संहार किया। पिता की हत्या ने उन्हें ऐसा करने पर विवश कर दिया। राम जब बालुका लिंग की पूजा करना चाहते थे ताकि शंकर का आशीर्वाद लेकर रावण का विनाश कर सकें, तो उनके पुरोहित बनने का आमंत्रण दिया गया। पूजन का हर सामान और सीता को पुष्पक में बिठाकर लाया गया। राम ने संकल्प लेते समय रावण वध का लक्ष्य बताने पर, पुरोहित धर्म निर्वहन करते हुए रावण ने तथास्तु कहकर आशीर्वाद दिया। अपनी ही मृत्यु का संकल्प लिए व्यक्ति को आशीर्वाद देना, अर्थात अपनी मृत्यु सुनिश्चित करने का साहस, सिर्फ ब्राह्मण ही कर सकता था, अन्य वर्ण नहीं। यहाँ तक स्वयं राम भी नहीं कर सकते थे। आचार्य चाणक्य ने जब मगध साम्राज्य के सम्राट से शरण माँगी, तो उन्हें अपमानित ही नहीं, लातों से मारा गया और जमीन पर गिरा दिया गया। उनकी शिखा खुल गई, तब प्रतिज्ञा की कि जब तक इस राजवंश का सर्वनाश नहीं कर लूँगा, तब तक शिखा नहीं बाँधूँगा। शूद्र चंद्रगुप्त, जो पशु चराता था, उसे शिक्षित-प्रशिक्षित कर मगध के राजसिंहासन पर बिठा दिया और उसका गुरु और पुरोहित बनना स्वीकार कर लिया। उनमें इतना साहस था कि वे चंद्रगुप्त को राजसुख भोगने से रोक सके और राजा का कर्तव्य जनता की सेवा का बोध करा सके।
रामचरित मानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है:
“सचिव, वैद्य, गुरु तीन जो प्रिय बोलहिं भय आस।
राज, धर्म, तन तीन को होइहि बगाहि नाश।।
मनुपुत्र इक्ष्वाकु के राजवंश के कुलगुरु वशिष्ठ ने राजपुत्र त्रिशंकु को उसकी उद्दंडता के लिए दंडित करने का साहस दिखाया और उसे राज्य से निष्कासित करने का आदेश दिया। यशस्वी सम्राट रघु को भी फटकारने का साहस वशिष्ठ ने किया था। जब तक वशिष्ठ रघुवंश के कुलगुरु बने रहे, तब तक सूर्यकुल की पताका व्योम में धर्मध्वजा बनकर गर्व से फहराती रही। लेकिन जब विश्वामित्र ने वशिष्ठ का स्थान लिया, तब से यह यशस्वी वंश क्रमशः मद्यपान और व्यसन में लिप्त होता गया, और अंततः पतन के कगार पर पहुँच गया।
अंततः कन्नौज के शासक द्वारा अयोध्या पर आक्रमण करने के कारण व्यसन युक्त राजपरिवार पराजित होकर काशी नरेश की शरण में आया। काशी नरेश ने राजपुत्री का विवाह कर उन्हें अपने ही राज्य का एक भाग—डोभी, जो जौनपुर जिले के डोभी कटेहर क्षेत्र का इक्कीस वर्ग मील जमीन है—दहेज में दे दिया। तभी से रघुवंशी क्षत्रिय डोभी में निवास करते आ रहे हैं। सारा यश-वैभव मिट्टी में मिल गया।
जब सिकंदर का सेनापति डेमेट्रियस भारत पर आक्रमण कर पश्चिमी क्षेत्रों को अपने अधीन कर चुका था और अयोध्या-काशी क्षेत्र पर अधिकार जमा लिया था, तब मगध सम्राट राग-रंग में लिप्त था और बौद्ध श्रमणों के अधीन हो चुका था। डेमेट्रियस द्वारा कत्लेआम की सूचना मिलने पर सम्राट के सलाहकार ने उससे निवेदन किया कि सेना भेजकर मगध साम्राज्य को बचाया जाए।
लेकिन बौद्ध श्रमणों के कहने पर कि “हमारा कोई शत्रु नहीं, हम अपने ही शत्रु हैं,” सम्राट ने अपने सभी मंत्रियों को कारागार में डाल दिया। जब पतंजलि के शिष्य पुष्यमित्र ने नई सेना तैयार कर सम्राट को युद्ध करने का आदेश देने को कहा, तो सम्राट ने उसे भी बंदी बनाने का आदेश दिया। पुराने और नए सैनिकों के बीच युद्ध हुआ, जिसमें सम्राट वृहद्रथ, जो बौद्ध श्रमणों के अधीन होकर राजधर्म भूल चुका था, उसी संघर्ष में मारा गया।
इसके बाद पुष्यमित्र शुंग ने अपनी सेना संगठित कर डेमेट्रियस को खदेड़ा और महर्षि पतंजलि के आदेश पर मगध की राजगद्दी संभाली। मनुस्मृति में ब्राह्मण कन्याओं को शिक्षा से वंचित रखा गया, वर्ण व्यवस्था भी मनु से आई, लेकिन मूर्ख लोग ब्राह्मण और ब्राह्मणवाद का विरोध करते हैं। किस ब्राह्मण ने व्यवस्था दी? मनुस्मृति की व्यवस्था क्षत्रियों ने दी। संविधान ने ब्राह्मणों को बचा लिया, उनकी उन्नति के मार्ग खोल दिए। ब्राह्मण लड़कियाँ भी शिक्षा प्राप्त करने लगीं। शूद्र और शूद्रत्व के विरोधी न गौतम बुद्ध को पढ़े हैं, न संविधान और न ही बाबा साहेब आंबेडकर को।
गौतम बुद्ध और आंबेडकर ने कभी ब्राह्मणों के विरोध में एक शब्द तक नहीं लिखा। ब्राह्मण शस्त्र और शास्त्र में पारंगत होते थे, वे वशिष्ठ बनकर सूर्यवंशीय राजाओं को अनैतिक कार्यों से रोकते थे।
ब्राह्मण विरोधी यह बताएँ कि गौतम बुद्ध की जन्म कुंडली बनाने वाले कौन थे? डॉ. बाबा साहेब को “आंबेडकर” टाइटल देने वाला कौन था? भारतीय संविधान की रूपरेखा तैयार करने वाले जवाहरलाल नेहरू भी ब्राह्मण ही थे। गणित, भूगोल, अंतरिक्ष ज्ञान, विमान निर्माण, चंद्र-सूर्य की दूरी का आकलन करने वाले सभी ब्राह्मण ही थे। ब्राह्मण विरोध फैलाने वाले अंग्रेज यह जानते थे कि यदि भारत पर शासन करना है, तो समाज में ब्राह्मण विरोध फैलाना होगा। जब-जब ब्राह्मणों को कमजोर किया गया, तब-तब भारत गुलाम हुआ। छत्रपति शिवाजी महाराज के गुरु कौन थे? आरक्षण की बैसाखी छोड़कर अपने बल पर आगे बढ़ो।