
मुंबई। बॉम्बे हाईकोर्ट ने गुरुवार को मालाबार हिल स्थित ऐतिहासिक बाणगंगा तालाब में छह फीट से कम ऊँची पर्यावरण-अनुकूल गणपति प्रतिमाओं के विसर्जन की अनुमति देने से इनकार कर दिया। अदालत ने स्पष्ट किया कि व्यक्तिगत अधिकार सामुदायिक अधिकारों पर हावी नहीं हो सकते और स्वच्छ हवा व पानी का अधिकार हर नागरिक का मौलिक अधिकार है। मुख्य न्यायाधीश श्री चंद्रशेखर और न्यायमूर्ति आरती साठे की पीठ ने मालाबार हिल निवासी संजय शिर्के की याचिका को खारिज किया, जिसमें बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) और महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एमपीसीबी) द्वारा लगाए गए प्रतिबंध को चुनौती दी गई थी। यह तालाब प्राचीन स्मारक और पुरातात्विक स्थल एवं अवशेष अधिनियम, 1958 के तहत एक संरक्षित विरासत संरचना है। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया था कि पिछले दो दशकों से बाणगंगा तालाब में पर्यावरण-अनुकूल मूर्तियों का विसर्जन होता रहा है और इस बार त्योहार से एक दिन पहले अचानक प्रतिबंध लगा दिया गया। उन्होंने आग्रह किया कि छोटी मूर्तियों से जल को कोई नुकसान नहीं होगा और एक विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट आने तक छूट दी जानी चाहिए। राज्य के महाधिवक्ता बीरेंद्र सराफ और सरकारी वकील ज्योति चव्हाण ने कोर्ट में कहा कि बाणगंगा में मूर्तियों का विसर्जन कोई मौलिक अधिकार नहीं है और यह क्षेत्र संरक्षित स्मारक है। उन्होंने बताया कि समीप ही कृत्रिम तालाब और चौपाटी बीच जैसे विकल्प उपलब्ध हैं। अदालत ने कहा कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) और महाराष्ट्र सरकार के हालिया दिशानिर्देश सार्वजनिक हित में हैं। पीठ ने टिप्पणी की, जब व्यक्तिगत अधिकारों और सामुदायिक अधिकारों के बीच संतुलन का प्रश्न आता है, तो सामुदायिक हित सर्वोपरि होता है। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि वैधानिक प्राधिकरण को हर दिशा-निर्देश के लिए अलग से कारण बताने का कानूनी दायित्व नहीं है। इस फैसले के बाद बाणगंगा तालाब में केवल ऊँची मूर्तियों के लिए निर्धारित दिशा-निर्देश लागू रहेंगे और छोटी पर्यावरण-अनुकूल मूर्तियों का विसर्जन भी कृत्रिम तालाबों में ही किया जाएगा।