
मुंबई। बॉम्बे हाईकोर्ट ने बुधवार को जैन त्योहार पर्यूषण पर्व के दौरान बूचड़खानों को बंद रखने की मांग वाली याचिकाओं पर कोई अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया। दिगंबर समुदाय 20 से 27 अगस्त तक और श्वेतांबर समुदाय 21 से 28 अगस्त तक यह पर्व मनाएगा। मुख्य न्यायाधीश आलोक अराधे और न्यायमूर्ति संदीप मार्ने की खंडपीठ ने कहा कि बिना सभी पक्षों को सुने आदेश पारित नहीं किया जा सकता। अदालत ने बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) को नोटिस जारी करते हुए मामले को दो सप्ताह बाद सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया। मामला बीएमसी आयुक्त द्वारा 14 अगस्त को जारी आदेश से जुड़ा है, जिसमें याचिकाकर्ताओं द्वारा पर्यूषण के पूरे नौ दिनों तक बूचड़खानों को बंद रखने की मांग को आंशिक रूप से स्वीकार किया गया था और आयुक्त ने केवल एक दिन के लिए बूचड़खाने बंद करने का आदेश दिया था। इस निर्णय को जैन समुदाय ने चुनौती दी और तर्क दिया कि पर्व के दौरान पशु वध की अनुमति देना उनकी धार्मिक भावनाओं का उल्लंघन है। बीएमसी की ओर से अधिवक्ता ने अदालत को बताया कि आयुक्त ने अभ्यावेदन पर विचार कर 24 और 27 अगस्त को दो दिनों के लिए बूचड़खानों को बंद रखने का निर्णय लिया है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि देवनार बूचड़खाना सिर्फ मुंबई ही नहीं बल्कि पूरे मुंबई महानगर क्षेत्र के लिए पशु वध की सुविधा प्रदान करता है। याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता प्रसाद ढकेपालकर ने दलील दी कि बीएमसी का निर्णय नीतिगत जरूर है, लेकिन मनमाना नहीं हो सकता। उन्होंने ऐतिहासिक संदर्भ देते हुए कहा कि सम्राट अकबर ने भी पर्यूषण के दौरान जैन समुदाय की भावनाओं का सम्मान करते हुए अहमदाबाद में छह महीने तक बूचड़खानों पर रोक लगाई थी। उन्होंने हल्के अंदाज में टिप्पणी की, “सम्राट अकबर को मनाना आसान था, लेकिन राज्य सरकार और बीएमसी को मनाना कठिन साबित हो रहा है। अदालत ने स्पष्ट किया कि जैन समुदाय की भावनाओं का सम्मान किया जाएगा, लेकिन फिलहाल स्थगन आदेश जारी नहीं किया जा सकता। इस मामले पर अगली सुनवाई दो सप्ताह बाद होगी।