Wednesday, March 12, 2025
Google search engine
HomeUncategorizedमुंबई उच्च न्यायालय ने बीसीआई के आपराधिक रिकॉर्ड खुलासे के निर्देश को...

मुंबई उच्च न्यायालय ने बीसीआई के आपराधिक रिकॉर्ड खुलासे के निर्देश को सही ठहराया

मुंबई। बंबई उच्च न्यायालय ने सोमवार को बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) के उस निर्देश को वैध करार दिया, जिसमें विधि छात्रों को अपने आपराधिक इतिहास का खुलासा करने के लिए कहा गया है। अदालत ने स्पष्ट किया कि इस निर्देश में कुछ भी अवैध नहीं है और यह कानूनी पेशे में नैतिक मानकों को बनाए रखने के लिए आवश्यक है। मुख्य न्यायाधीश आलोक अराधे और न्यायमूर्ति भारती डांगरे की खंडपीठ ने अधिवक्ता अशोक येंडे द्वारा दायर जनहित याचिका (पीआईएल) को खारिज कर दिया। याचिका में बीसीआई के सितंबर 2024 के परिपत्र और मुंबई विश्वविद्यालय द्वारा जारी इसी तरह के निर्देश को चुनौती दी गई थी। न्यायालय ने कहा कि याचिका किसी पीड़ित छात्र द्वारा दायर नहीं की गई थी और इसमें कानूनी अधिकारों का कोई उल्लंघन नहीं पाया गया।
बीसीआई का परिपत्र और उसकी शर्तें
बीसीआई सर्कुलर में विधि छात्रों के लिए आपराधिक पृष्ठभूमि की जांच अनिवार्य की गई है। इसमें उन्हें अपनी अंतिम मार्कशीट और डिग्री प्राप्त करने से पहले किसी भी चल रही एफआईआर, आपराधिक मामलों, दोषसिद्धि या बरी होने की घोषणा करनी होगी। अगर छात्र यह जानकारी छुपाते हैं, तो उनके शैक्षणिक प्रमाण-पत्र रोके जा सकते हैं और उन पर अनुशासनात्मक कार्रवाई हो सकती है। इस परिपत्र में अन्य शर्तों को भी लागू किया गया है, जिनमें बिना पूर्वानुमति के अन्य शैक्षणिक कार्यक्रमों या रोजगार में एक साथ नामांकन की घोषणा, अनिवार्य बायोमेट्रिक उपस्थिति और कक्षाओं में सीसीटीवी कैमरे लगाने जैसी व्यवस्थाएँ शामिल हैं। बीसीआई ने इन उपायों को कानूनी शिक्षा और पेशे की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए आवश्यक बताया है।
अदालत की प्रतिक्रिया
न्यायालय ने इस परिपत्र को अवैध मानने से इनकार कर दिया और कहा कि यह केवल जानकारी मांगता है, न कि आपराधिक रिकॉर्ड वाले छात्रों को स्वतः अयोग्य ठहराता है। मुख्य न्यायाधीश आलोक अराधे ने कहा, “बार काउंसिल ऑफ इंडिया को किसी छात्र के आपराधिक इतिहास की जांच क्यों नहीं करनी चाहिए? इसमें क्या अवैध है? किस कानून का उल्लंघन किया गया है? हमारे अनुसार, परिपत्र में कुछ भी अवैध नहीं है। अदालत ने इस प्रकार की पहल का स्वागत करने की बात कही और याचिकाकर्ता को न्यायिक समय बर्बाद न करने की चेतावनी दी। इसके बाद येंडे ने अपनी याचिका वापस ले ली।
याचिकाकर्ता के तर्क
40 वर्षों से अधिक अनुभव रखने वाले कानूनी शिक्षाविद् एडवोकेट अशोक येंडे ने तर्क दिया कि बीसीआई ने अधिवक्ता अधिनियम, 1961 के तहत अपने अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण किया है, जो कानूनी पेशे को नियंत्रित करता है लेकिन छात्र प्रवेश को नहीं। उन्होंने यह भी कहा कि यह निर्देश संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 21 (निजता का अधिकार) का उल्लंघन करता है। याचिका में यह भी कहा गया कि यह उन छात्रों के साथ संभावित भेदभाव कर सकता है जिन्हें गलत तरीके से फंसाया गया हो सकता है।
सुप्रीम कोर्ट में लंबित मामला
बीसीआई के इस परिपत्र को चुनौती देने वाली एक समान याचिका सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, जहां बीसीआई से जवाब मांगा गया है। हालांकि, बॉम्बे हाई कोर्ट ने निर्देश को सही ठहराया है, लेकिन अंतिम निर्णय सुप्रीम कोर्ट द्वारा लिया जा सकता है।

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -
Google search engine

Most Popular

Recent Comments