Tuesday, June 3, 2025
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बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोशल मीडिया दुरुपयोग पर शिवसेना विधायक की याचिका खारिज की, कहा – मौजूदा कानून हैं पर्याप्त

मुंबई। बॉम्बे हाईकोर्ट ने बुधवार को शिवसेना (एकनाथ शिंदे गुट) विधायक किरण सामंत द्वारा दायर एक जनहित याचिका (पीआईएल) को खारिज कर दिया, जिसमें प्रभावशाली लोगों, सामग्री निर्माताओं और हास्य कलाकारों द्वारा सोशल मीडिया के कथित दुरुपयोग पर चिंता जताई गई थी।याचिका में प्रभावशाली व्यक्तियों, कंटेंट क्रिएटर्स और कॉमेडियन्स पर भ्रामक सूचनाएं फैलाने और लोकतांत्रिक संस्थाओं पर हमला करने का आरोप लगाया गया था। मुख्य न्यायाधीश आलोक अराधे और न्यायमूर्ति एम.एस.कार्णिक की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि सामंत द्वारा मांगी गई राहतें सामान्य और व्यापक प्रकृति की हैं, और उन्हें पहले आईटी अधिनियम के तहत उपलब्ध प्रभावी वैधानिक उपायों का सहारा लेना चाहिए था।पीठ ने कहा कि सोशल मीडिया सामग्री पर आपत्ति होने पर नोडल अधिकारियों के पास शिकायत दर्ज करने और आईटी नियमों के तहत सामग्री हटवाने की प्रक्रिया पहले से मौजूद है। याचिकाकर्ता जो सोशल मीडिया पोस्ट को दुरुपयोग मानते हैं, वही दूसरे व्यक्ति के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हो सकती है। इसका निर्धारण याचिकाकर्ता स्वयं नहीं कर सकते।”
कुणाल कामरा का हवाला, पर कोर्ट का संतुलित रुख
सामंत की याचिका में कॉमेडियन कुणाल कामरा का भी हवाला दिया गया था, जिनके खिलाफ हाल ही में महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे पर की गई एक कथित आपत्तिजनक टिप्पणी को लेकर एफआईआर दर्ज की गई थी। कामरा की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता डेरियस खंबाटा ने दलील दी कि कानून में पहले से पर्याप्त प्रावधान हैं।
नीति निर्माण का मामला, न्यायपालिका नहीं दे सकती निर्देश
सामंत की सोशल मीडिया की निगरानी के लिए एक “सेंसरशिप समिति” बनाने की मांग को खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि यह एक नीतिगत निर्णय है, जिसे सरकार द्वारा तय किया जाना चाहिए, न कि न्यायपालिका द्वारा।
आईटी नियमों का हवाला
कोर्ट ने आईटी अधिनियम 2000 और 2009 के अवरोधन नियमों सहित 2021 के नियमों का भी उल्लेख किया, जिनमें सामग्री को हटाने की प्रक्रिया का स्पष्ट उल्लेख है। अदालत ने यह भी याद दिलाया कि 2021 के संशोधित नियमों का एक प्रावधान (फैक्ट चेक यूनिट वाला) पहले ही कोर्ट द्वारा रद्द किया जा चुका है और मामला अब सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। अदालत ने सामंत को सुझाव दिया कि वे यदि चाहें, तो उचित प्राधिकरण से शिकायत कर सकते हैं और यदि कोई कार्रवाई नहीं होती, तभी वे आगे न्यायिक उपाय खोजें।

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