
अमरावती। अमरावती की राजनीति एक बार फिर गरमा गई है। समाज के वंचित तबकों की आवाज़ बनने वाले और प्रहार जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष बच्चू कडू को जिला मध्यवर्ती सहकारी बैंक के संचालक पद से अयोग्य ठहराए जाने का मामला अब तूल पकड़ चुका है। किसानों, खेत मजदूरों और दिव्यांगों के हक़ के लिए सात दिन तक अनशन पर बैठे कडू ने इस फैसले को राजनीतिक षड्यंत्र करार दिया है और सीधे तौर पर भाजपा और कांग्रेस की मिलीभगत का आरोप लगाया है। बच्चू कडू ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “मेरा जुर्म सिर्फ इतना है कि मैंने सत्ता से सवाल किए। जनता के लिए सड़क पर उतरा। और आज यही मेरी सबसे बड़ी सज़ा बन गई।” उन्होंने कहा कि यह फैसला पूरी तरह बदले की भावना से प्रेरित है और जनता के अधिकारों के संघर्ष को कुचलने की साजिश है।
“मुझे मीडिया से पता चला, नोटिस तक नहीं मिला”
कडू ने बताया कि उन्हें अयोग्य ठहराने की सूचना मीडिया से मिली। “आज तक मुझे कोई सरकारी नोटिस नहीं मिला। क्या यही लोकतंत्र है? न्यायालय में मामला लंबित रहते हुए मुझे पद से हटाना संविधान और न्यायालय दोनों का अपमान है। बच्चू कडू ने चौंकाने वाला खुलासा करते हुए बताया कि एक वरिष्ठ अधिकारी ने उन्हें पहले ही आगाह किया था। सरकार के खिलाफ बोलना बंद करो, वरना फंसा दिए जाओगे। कडू ने दावा किया कि उन्हें राजनीतिक रूप से खत्म” करने की तैयारी हो चुकी है, लेकिन उन्होंने दो टूक कहा-मैं डरने वाला नहीं हूं। हम अदालत में जाएंगे और जनता के बीच जाकर सच्चाई रखेंगे।
अमरावती की राजनीति में हलचल
बच्चू कडू के आरोपों के बाद अमरावती की राजनीति में हलचल मच गई है। जहां कडू इसे जनआंदोलन को दबाने की कोशिश बता रहे हैं, वहीं भाजपा के स्थानीय विधायक प्रवीण तायडे ने इससे पल्ला झाड़ते हुए कहा – “यह निर्णय सह-निबंधक ने लिया है, इसका भाजपा से कोई लेना-देना नहीं है। कांग्रेस के कुछ संचालकों ने याचिका दी थी, उसी आधार पर कार्रवाई हुई।”
सवाल उठते हैं: प्रशासनिक फैसला या राजनीतिक साजिश?
अब सवाल यह उठ रहे हैं कि क्या यह वास्तव में एक प्रशासनिक निर्णय है या फिर हालिया आंदोलनों से डरी सत्ताधारी शक्तियों द्वारा रची गई एक रणनीति? बच्चू कडू के लगातार मुखर तेवर, जनहित के मुद्दों पर दबाव और उनकी लोकप्रियता ने उन्हें अक्सर सत्ता के लिए चुनौती बना दिया है। उनकी पार्टी और समर्थक इसे एक लोकतंत्र विरोधी कदम बता रहे हैं। न्यायालय का रुख और जनता की प्रतिक्रिया आने वाले समय में यह तय करेगी कि यह फैसला केवल एक तकनीकी प्रक्रिया थी या फिर किसी बड़ी राजनीतिक पटकथा का हिस्सा। एक बात साफ है-बच्चू कडू फिलहाल झुकने को तैयार नहीं हैं, और अमरावती में राजनीतिक पारा चढ़ता जा रहा है।