
मुंबई। बॉम्बे हाई कोर्ट ने सोमवार को कांजुरमार्ग डंपिंग ग्राउंड को लेकर राज्य सरकार और बृहन्मुंबई महानगर पालिका (बीएमसी) पर कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि इस मामले में बीएमसी आयुक्त गंभीर नजर नहीं आ रहे हैं और प्रशासन को जनता को हल्के में नहीं लेना चाहिए। अदालत ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि स्वच्छ और स्वस्थ वातावरण में सांस लेना नागरिकों का मौलिक अधिकार है, जिसे किसी भी कीमत पर नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। हाई कोर्ट ने कहा कि डंपिंग ग्राउंड से फैलने वाली दुर्गंध का असर छोटे बच्चों और बुजुर्गों तक पर पड़ रहा है, जो बेहद चिंताजनक है। अदालत ने निर्देश दिया कि इस समस्या से जुड़ी शिकायतों के समाधान के लिए 24×7 हेल्पलाइन शुरू करना कॉन्ट्रैक्टर और प्रशासन की जिम्मेदारी है। कोर्ट ने चेतावनी दी कि यदि समय रहते प्रभावी कदम नहीं उठाए गए, तो अदालत को सख्त निर्देश जारी करने पड़ेंगे। सुनवाई के दौरान जस्टिस गिरीश कुलकर्णी और आरती साठे की खंडपीठ ने राज्य सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि डंपिंग ग्राउंड की एक तय क्षमता होती है, लेकिन वहां डाले जा रहे कचरे की मात्रा कई गुना बढ़ चुकी है। बेंच ने तीखा सवाल किया- क्या आप इस इलाके से उठने वाली बदबू के मुंबई एयरपोर्ट तक पहुंचने का इंतजार कर रहे हैं? अदालत ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि कांजुरमार्ग डंपिंग ग्राउंड से जुड़ी शिकायतों के लिए तुरंत 24 घंटे की हेल्पलाइन और ई-मेल आधारित शिकायत प्रणाली शुरू की जाए। साथ ही, यह भी आदेश दिया गया कि हर शिकायत का एक घंटे के भीतर जवाब देना अनिवार्य होगा। कोर्ट ने कहा कि यदि ऐसा नहीं किया गया, तो कॉन्ट्रैक्टर की निगरानी के लिए नया कॉन्ट्रैक्ट जारी करने पर विचार किया जाएगा। इस मामले में डिप्टी चीफ मिनिस्टर एकनाथ शिंदे की देखरेख में गठित एक समिति ने याचिकाकर्ताओं से बैठक कर उनकी चिंताएं सुनी हैं। याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट को बताया कि राज्य सरकार ने इस मुद्दे के समाधान के लिए मुख्य सचिव सहित पांच सदस्यों की एक समिति बनाई है। हालांकि, हाई कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि एक बैठक के अलावा अब तक कोई ठोस प्रगति नहीं हुई है। राज्य सरकार की ओर से अदालत को यह भी बताया गया कि कांजुरमार्ग डंपिंग ग्राउंड के प्रभाव को लेकर आईआईटी बॉम्बे से चर्चा चल रही है, ताकि वैज्ञानिक और दीर्घकालिक समाधान निकाला जा सके। उल्लेखनीय है कि हाई कोर्ट ने पहले ही शहरी विकास विभाग के तहत इस समस्या का अध्ययन करने के लिए समिति गठित करने का आदेश दिया था। पिछली सुनवाई का हवाला देते हुए याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट को बताया कि जब प्रशासन से सवाल किए जाते हैं, तो गोलमोल जवाब दिए जाते हैं। यह जनहित याचिका पर्यावरण कार्यकर्ता दयानंद स्टैलियन के एनजीओ वनशक्ति द्वारा दायर की गई है। याचिका में कहा गया है कि राज्य सरकार की कमजोर योजना और कुप्रबंधन के कारण कांजुरमार्ग डंपिंग ग्राउंड से फैलने वाली बदबू ने आसपास के इलाकों के लोगों का जीवन मुश्किल कर दिया है। याचिका में बताया गया कि मुंबई महानगर क्षेत्र में रोज़ाना लगभग 6,500 मीट्रिक टन ठोस कचरा उत्पन्न होता है, जिसमें से करीब 90 प्रतिशत कचरा कांजुरमार्ग लैंडफिल में डंप किया जाता है। मुंबई की चार लैंडफिल साइट्स में से गोराई (बोरीवली) लैंडफिल 2017 से बंद है, जबकि मुलुंड लैंडफिल को बंद करने की प्रक्रिया चल रही है। ऐसे में शहर का अधिकांश कचरा देवनार और कांजुरमार्ग भेजा जा रहा है। स्थिति और भी गंभीर इसलिए हो गई है क्योंकि देवनार लैंडफिल की जमीन धारावी पुनर्विकास परियोजना को दी जा चुकी है। यदि देवनार लैंडफिल भी बंद करना पड़ा, तो बीएमसी के पास मुंबई के ठोस कचरे के निपटान के लिए कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं होगी। हाई कोर्ट ने इसी बिंदु पर प्रशासन की योजना और दूरदर्शिता पर सवाल खड़े किए हैं। अब इस मामले की अगली सुनवाई बुधवार को होगी, जिसमें कोर्ट ने राज्य सरकार को विस्तृत और ठोस जवाब देने का निर्देश दिया है।



