
पुणे। पुणे के मुंडवा इलाके में हुए बहुचर्चित ज़मीन सौदे को लेकर राज्य सरकार ने बड़ा कदम उठाया है। महाराष्ट्र के उद्योग विभाग ने अमाडिया एलएलपी को 40 एकड़ ज़मीन खरीदने के लिए जारी किया गया लेटर ऑफ़ इंटेंट (LOI) रद्द कर दिया है। उल्लेखनीय है कि इस कंपनी में उपमुख्यमंत्री अजीत पवार के बेटे पार्थ पवार की 99 प्रतिशत हिस्सेदारी है।
यह एलओआई पुणे के डिस्ट्रिक्ट इंडस्ट्रीज़ सेंटर (डीआईसी) द्वारा जारी किया गया था, जिसके आधार पर कंपनी को लगभग 21 करोड़ रुपये की वास्तविक स्टाम्प ड्यूटी के बजाय मात्र 500 रुपये की टोकन स्टाम्प ड्यूटी पर सेल डीड रजिस्टर कराने की अनुमति दी गई थी। इसी छूट को लेकर यह मामला विवादों में घिरा।
शर्तें पूरी न होने पर एलओआई रद्द
सूत्रों के अनुसार, उद्योग विभाग द्वारा जारी कैंसलेशन ऑर्डर में कहा गया है कि अमाडिया एलएलपी तय समय-सीमा के भीतर एलओआई से जुड़ी आवश्यक शर्तों को पूरा करने में विफल रही, जिसके चलते एलओआई स्वतः अमान्य हो गया।
बताया गया है कि यह एलओआई अप्रैल 2026 में जारी किया गया था और इसके बाद मई महीने में पुणे सब-रजिस्ट्रार कार्यालय में ज़मीन का सौदा दर्ज किया गया। यह ज़मीन पुणे के पॉश मुंडवा इलाके में स्थित है, जिसे करीब 300 करोड़ रुपये में खरीदा गया था, जबकि मौजूदा बाज़ार दर के अनुसार इसकी कीमत 2,000 करोड़ रुपये से अधिक आंकी जा रही है।
स्टाम्प ड्यूटी छूट पर उठे सवाल
राज्य सरकार की नीति के मुताबिक, स्टाम्प ड्यूटी में छूट केवल उन्हीं कंपनियों को दी जा सकती है, जो सॉफ्टवेयर पार्क नीति के तहत डेटा सेंटर या उससे जुड़ी गतिविधियों का प्रस्ताव देती हैं और जिन्हें राज्य सरकार की मंजूरी प्राप्त हो।
इस मामले में एलओआई ज़िला स्तर पर जारी किया गया, जबकि ऐसी मंजूरी सामान्यतः राज्य स्तर से दी जाती है। इसी वजह से एलओआई की कानूनी वैधता पर गंभीर सवाल खड़े हुए।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं और सफाई
विवाद सामने आने के बाद राज्य के उद्योग मंत्री उदय सामंत ने इस पूरे मामले में अपने विभाग की किसी भी भूमिका से इनकार किया। वहीं उपमुख्यमंत्री अजीत पवार ने भी सफाई देते हुए कहा कि उनके बेटे पार्थ पवार को इस लेन-देन के संभावित कानूनी परिणामों की जानकारी नहीं थी। बाद में अजीत पवार ने यह भी घोषणा की कि संबंधित ज़मीन सौदे को रद्द कर दिया गया है। इस बीच, पुणे ज़िला कलेक्टर कार्यालय ने भी एक स्थानीय अदालत का रुख किया है और ज़मीन के लेन-देन को रद्द करने की मांग की है। प्रशासन का दावा है कि यह ज़मीन निजी व्यक्तियों की नहीं बल्कि राज्य सरकार की संपत्ति है। यह ज़मीन पहले ‘महार वतन ज़मीन’ के रूप में दर्ज थी, जिसे बाद में राज्य सरकार के अधीन कर लिया गया था।
स्टाम्प ड्यूटी पेनल्टी से बचने की कोशिश
जानकारी के अनुसार, ज़मीन के मूल किरायेदारों ने शीतल तेजवानी को अपना पावर ऑफ अटॉर्नी नियुक्त किया था, जिन्होंने अमाडिया एलएलपी के साथ यह सौदा किया। अब अमाडिया एलएलपी और तेजवानी, दोनों ने सेल डीड रद्द कराने के लिए पुणे की अदालत में याचिका दायर की है। सूत्रों का कहना है कि यह कदम 21 करोड़ रुपये की स्टाम्प ड्यूटी और रजिस्ट्रार कार्यालय के माध्यम से कैंसलेशन होने पर लगने वाली अनिवार्य पेनल्टी से बचने के उद्देश्य से उठाया गया है। हालांकि, पुणे प्रशासन द्वारा नोटिस जारी किए जाने के बावजूद अब तक न तो खरीदार और न ही विक्रेता ने औपचारिक रूप से सब-रजिस्ट्रार कार्यालय में सेल डीड रद्द कराने की प्रक्रिया शुरू की है। इस पूरे मामले पर अब राजनीतिक और कानूनी दोनों स्तरों पर निगाहें टिकी हुई हैं।




