
हैदराबाद। तेलंगाना विधानसभा के स्पीकर गद्दाम प्रसाद कुमार ने बुधवार को दल-बदल विवाद से जुड़े एक अहम फैसले में भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) के पांच विधायकों के खिलाफ दायर अयोग्यता याचिकाओं को खारिज कर दिया। स्पीकर ने अपने आदेश में कहा कि याचिकाकर्ता यह साबित करने में असफल रहे कि संबंधित विधायकों ने कांग्रेस पार्टी की औपचारिक सदस्यता ग्रहण की है। उन्होंने स्पष्ट किया कि विधायक कानूनी रूप से अब भी बीआरएस के सदस्य हैं, इसलिए उन्हें अयोग्य ठहराने का कोई आधार नहीं बनता। स्पीकर के इस फैसले के तहत जिन विधायकों को राहत मिली है, उनमें सेरिलिंगमपल्ली से अरिकेपुडी गांधी, पटनचेरू से जी. महिपाल रेड्डी, भद्राचलम से तेलम वेंकट राव, गडवाल से बंदला कृष्णमोहन रेड्डी और राजेंद्रनगर से टी. प्रकाश गौड़ शामिल हैं। इन सभी के खिलाफ बीआरएस नेताओं ने दल-बदल का आरोप लगाते हुए अयोग्यता याचिकाएं दायर की थीं। दरअसल, बीआरएस ने कुल 10 विधायकों पर पार्टी छोड़कर सत्तारूढ़ कांग्रेस के समर्थन में जाने का आरोप लगाया था। इनमें से आठ विधायकों के मामलों की जांच प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। बुधवार को स्पीकर ने इन्हीं आठ मामलों में से पांच पर फैसला सुनाया। शेष तीन विधायकों—चेवेल्ला से काले यादैया, बानसवाड़ा से पोचाराम श्रीनिवास रेड्डी और जगतियाल से डॉ. संजय कुमार—के मामलों में फैसला गुरुवार को सुनाए जाने की संभावना है। वहीं, खैरताबाद से विधायक दानम नागेंद्र के खिलाफ दायर अयोग्यता याचिका पर जांच अभी पूरी नहीं हुई है। बीआरएस नेताओं का आरोप है कि इन विधायकों ने व्यवहारिक रूप से कांग्रेस का दामन थाम लिया है और सरकार के पक्ष में काम कर रहे हैं, जो संविधान की दसवीं अनुसूची (दल-बदल विरोधी कानून) का उल्लंघन है। इसी आधार पर उन्होंने विधानसभा स्पीकर के समक्ष शिकायत दर्ज कराई थी। जब लंबे समय तक कोई फैसला नहीं हुआ, तो बीआरएस नेताओं ने तेलंगाना हाई कोर्ट का रुख किया। हाई कोर्ट ने स्पीकर को याचिकाओं पर जांच करने और निर्णय लेने के निर्देश दिए थे।
इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। शीर्ष अदालत ने 31 जुलाई को विधानसभा स्पीकर को 10 विधायकों के खिलाफ दायर अयोग्यता याचिकाओं का तीन महीने के भीतर निपटारा करने का स्पष्ट आदेश दिया था। तय समयसीमा में फैसला न होने पर नवंबर में सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी नाराजगी जताते हुए इसे अदालत की अवमानना मानने तक की चेतावनी दी थी। अदालत ने कहा था कि स्पीकर को बिना देरी किए निर्णय लेना होगा, अन्यथा गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। इस दबाव के बाद स्पीकर गद्दाम प्रसाद कुमार ने जांच प्रक्रिया में तेजी लाई। आठ विधायकों का क्रॉस-एग्जामिनेशन पूरा किया गया और उनके बयान दर्ज किए गए। आरोपों का सामना कर रहे विधायकों ने अपनी सफाई में कहा कि उन्होंने कांग्रेस पार्टी की सदस्यता नहीं ली है और वे अब भी बीआरएस के विधायक हैं। उन्होंने यह भी दलील दी कि मुख्यमंत्री या कांग्रेस नेताओं से उनकी मुलाकातें केवल अपने निर्वाचन क्षेत्रों से जुड़े विकास कार्यों के सिलसिले में थीं, न कि दल-बदल के उद्देश्य से। अब इस पूरे मामले पर राजनीतिक और कानूनी नजरें सुप्रीम कोर्ट पर टिकी हैं। 19 दिसंबर को शीर्ष अदालत में बीआरएस की याचिका पर दोबारा सुनवाई होनी है, जिसमें शेष विधायकों के खिलाफ अयोग्यता याचिकाओं पर जल्द फैसला लेने के निर्देश देने की मांग की गई है। यह विवाद न सिर्फ तेलंगाना की राजनीति में सत्ता और विपक्ष के बीच टकराव को दर्शाता है, बल्कि दल-बदल कानून की व्याख्या और विधानसभा स्पीकर की भूमिका को लेकर भी एक महत्वपूर्ण संवैधानिक बहस के रूप में देखा जा रहा है।




