Thursday, November 27, 2025
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26/11 हैंडलर अबू जिंदल केस की सुनवाई में देरी, प्रशासनिक अड़चनों के कारण प्रक्रिया धीमी

संवाददाता
मुंबई।
26/11 आतंकी हमले के हैंडलर सैयद ज़बीउद्दीन अंसारी उर्फ अबू जिंदल के खिलाफ जारी मुकदमे पर बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा लगी रोक हटाए जाने के बावजूद, सुनवाई फिर से शुरू होने में समय लग सकता है। इसकी वजह प्रशासनिक प्रक्रियाएं बताई जा रही हैं। पहले यह मामला जिस विशेष अदालत में चल रहा था, उसे अब सांसद-विधायकों के मामलों के लिए विशेष अदालत घोषित कर दिया गया है, जिसके चलते केस को भ्रष्टाचार मामलों की एक अन्य विशेष अदालत में स्थानांतरित किया गया है। सोमवार को हुई सुनवाई के दौरान विशेष लोक अभियोजक उज्ज्वल निकम ने अदालत को बताया कि यह मामला गैरकानूनी गतिविधि (निवारण) अधिनियम (UAPA) से जुड़ा है और इसकी जांच राज्य एजेंसियों ने की थी, इसलिए राज्य सरकार ने अब विशेष UAPA अदालत के गठन के लिए अधिसूचना मांगी है। इस प्रक्रिया के चलते अदालत ने मामले की सुनवाई 8 दिसंबर तक के लिए स्थगित कर दी। इस मुकदमे पर पहले हाईकोर्ट ने रोक लगाई थी, जब दिल्ली पुलिस, नागरिक उड्डयन मंत्रालय और विदेश मंत्रालय ने ट्रायल कोर्ट के 2018 के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें आरोपियों को जिंदल को गोपनीय दस्तावेज सौंपने का निर्देश दिया गया था। जिंदल, जिसे 2012 में सऊदी अरब से प्रत्यर्पित किए जाने का दावा है, ने अपनी गिरफ्तारी और भारत लाने से जुड़े दस्तावेज़ों की मांग की थी, ताकि यह साबित कर सके कि उसे सऊदी अरब के दम्माम में हिरासत में लिया गया था। सुनवाई के दौरान पासपोर्ट अधिकारी ने गवाही दी कि 2006 में जिंदल का पासपोर्ट रद्द कर दिया गया था, क्योंकि वह हथियारों की बड़ी खेप से जुड़े मामले के बाद देश छोड़कर भाग गया था। हालांकि, जिरह के दौरान अधिकारी ने यह भी स्वीकार किया कि 2012 में उसे एक आपातकालीन पासपोर्ट जारी किया गया था। बचाव पक्ष ने तर्क दिया कि आपात पासपोर्ट केवल किसी व्यक्ति को वापस लाने के लिए जारी किया जाता है, जिससे यह संकेत मिलता है कि उसे दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार नहीं किया बल्कि किसी एजेंसी द्वारा भारत लाया गया। दिल्ली पुलिस ने इस दावे को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने आरोपी की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि एक बार आरोपी कानूनी तरीके से न्यायिक हिरासत में आ जाता है तो उसकी गिरफ्तारी का स्थान अधिक महत्वपूर्ण नहीं रह जाता। अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि इस प्रकार के दस्तावेज़ों की मांग देर से की गई और यह एक रणनीतिक कदम लगता है, जिसका कोई ठोस आधार नहीं है।

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