
आजकल बीजेपी नेहरू को हिंदू विरोधी, मंदिर विरोधी बताकर उन्हें हिंदुओं का शत्रु साबित करना चाहती है, जो बेबुनियाद है। नेहरू न तो मंदिर विरोधी थे और न हिंदू विरोधी। सिद्धांतप्रिय व्यक्ति थे नेहरू। चूंकि भारत धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र था, अतः वे नहीं चाहते थे कि सरकार सोमनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार सरकारी पैसे से करे। उनका मानना था कि सरकार का काम जनहित के कार्य करना है, न कि धर्म–मंदिर आधारित। मंदिर जनता के रोजगार नहीं देते। नेहरू जानते थे कि यदि उन्होंने सरकार यानी जनता के पैसे से सोमनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार कराया तो फिर कांग्रेस मंदिर और धर्म के नाम पर राजनीति शुरू कर देगी। उनके अनुसार धर्म और आस्था व्यक्तिगत विषय है। सरकार को किसी भी धर्म के प्रति लगाव या तिरस्कार नहीं करना चाहिए। यही संविधान का विषय बना।
नेहरू ने उजड़ और कंगाल हो चुके भारत के नव निर्माण के कार्य किए। शिक्षा के लिए प्राथमिक से लेकर यूनिवर्सिटी तक, बांध बनाकर खेतों की सिंचाई और बिजली उत्पादन लक्ष्य रखा। भाखड़ा नंगल बांध को उन्होंने मंदिर कहा। नेहरू ने विकास और राष्ट्र के नवनिर्माण को प्रमुखता दी। इसलिए उन्होंने वैज्ञानिक शोध केंद्र बनाए। इसरो, डीआरडीओ बनाए। कल–कारखाने खुलवाए ताकि जनता को रोज़ी–रोटी मिले। IIT और IIM बनवाए, जहां से उच्च कोटि के इंजीनियर निकलें। नहरें खुदवाने, ट्यूबवेल लगवाने को प्राथमिकता दी। सोमनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार कराकर वे मंदिर–धर्म की राजनीति नहीं करना चाहते थे। सरकार जनता के पैसे से कोई मंदिर बनवाकर उस पर राजनीति करते हुए वोट मांगे- यह नेहरू को मंजूर नहीं था, जैसा आज बीजेपी राम मंदिर के नाम पर राजनीति करती, हिंदू खतरे में बताकर हिंदुओं में डर फैलाती और हिंदू मतों का ध्रुवीकरण करती है। हिंदू और हिंदुत्व के नाम ही नहीं, मंदिर–मस्जिद, हिंदू–मुस्लिम के नाम पर देश में नफरत और डर फैलाकर हिंदुओं को खतरे में बताने और वोट मांगने का काम करती है। नेहरू ने सरकारी पैसे से सोमनाथ मंदिर जीर्णोद्धार का इसीलिए विरोध किया था कि सरकार का काम मंदिर–मस्जिद बनाना नहीं है। स्वतंत्रता आंदोलन में ही यह तय हो चुका था कि भारत का नवनिर्माण कैसे किया जाए। मंदिर विरोधी बताकर उन्हें हिंदुओं का शत्रु बताने की कोशिश गलत और अनैतिक है। नेहरू ने सोमनाथ मंदिर के ध्वंस के बाद जीर्णोद्धार न किए जाने का समर्थन कभी नहीं किया था, बल्कि सरकार द्वारा मंदिर जीर्णोद्धार की राजनीति से परहेज अवश्य किया था। नेहरू नहीं चाहते थे कि देश की आजादी में एक साथ लड़े हिंदू–मुस्लिम में किसी भी तरह का भेदभाव दिखे, जिससे मुस्लिम खुद को ठगा हुआ समझें। नेहरू के लिए हिंदू–मुस्लिम दोनों आँखें थे। एक आँख की रक्षा दूसरी आँख फोड़कर करने के जरूर विरोधी थे। दरअसल, जब 1025 में महमूद गजनवी ने हमला कर सोमनाथ मंदिर का अपार सोना निकालकर मंदिर तोड़ दिए थे, उसके बाद 1706 में औरंगज़ेब द्वारा सोमनाथ मंदिर का विध्वंस कर दिया गया था। तब जूनागढ़ सियासत पर अंग्रेजों के समय मुसलमान शासक थे। उसने जीर्णोद्धार नहीं कराया, जबकि बहुमत में हिंदू जनता थी। भारत को आजादी मिलने के बाद सरदार वल्लभभाई पटेल ने जूनागढ़ सियासत को भारत में मिला लिया। तब सोमनाथ मंदिर के जीर्णोद्धार की बात सामने आई। अंतरिम सरकार में तात्कालिक गृहमंत्री रहे सरदार पटेल ने 1947–48 में मंदिर जीर्णोद्धार का प्रस्ताव सदन में रखा, क्योंकि जूनागढ़ के भारत में विलय के बाद सोमनाथ मंदिर भारत के कब्जे में आया था। पटेल चाहते थे कि मंदिर निर्माण सरकारी पैसे से किया जाए, क्योंकि यह राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक था। अपनी मृत्यु तक 15 दिसंबर 1950 तक वे कार्य आगे बढ़ाते रहे। नेहरू का मत था कि भारत सेक्युलर स्टेट था, इसलिए किसी हिंदू मंदिर अथवा मस्जिद निर्माण का काम सरकारी पैसे से नहीं किया जाए। कैबिनेट की बैठक में इसी कारण नेहरू ने प्रस्ताव का विरोध किया। सरदार पटेल और के. एम. मुंशी के समर्थन के कारण यह काम आगे बढ़ा। 1951 में सोमनाथ मंदिर के प्राणप्रतिष्ठा में भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने हिस्सा लिया। नेहरू ने विरोध किया कि राष्ट्रपति को हिस्सा नहीं लेना चाहिए, क्योंकि राष्ट्रपति का इस तरह धार्मिक आयोजन में जाना उचित नहीं। व्यक्तिगत आस्था के कारण राष्ट्रपति गए और संबोधित भी किया। कुल मिलाकर, नेहरू के शासन में ही सोमनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया, जिसमें सरकारी धन नहीं, बल्कि धन्नासेठों से चंदा लिया गया। नेहरू चाहते तो मंदिर निर्माण ही नहीं होने देते, परंतु चंदे से निर्माण होने से नहीं रोका। ठीक उसी तरह जैसे विवादित बाबरी मस्जिद जब तोड़ी गई, तब भले उत्तर प्रदेश में बीजेपी सरकार रही हो, लेकिन केंद्र में सरकार कांग्रेस की रही। यदि कांग्रेस चाहती तो बाबरी मस्जिद के चारों ओर आर्मी लगा देती, लेकिन ऐसा नहीं करके मस्जिद तोड़े जाने दिया। उसी तरह नेहरू ने भी सोमनाथ मंदिर बनने दिया। किसी तरह की रोक नहीं लगाने का अर्थ है- मूक सहमति। इसलिए, अपनी हर असफलता के लिए नेहरू–कांग्रेस को दोष देने वाली बीजेपी, नेहरू को हिंदू और धर्म विरोधी होने का दुष्प्रचार करती रहती है। वह यह भूल जाती है कि राम मंदिर का ताला राजीव गांधी ने ही खुलवाया। मूर्ति भी राजीव गांधी ने रखवाकर हिंदुओं से पूजा–अर्चना शुरू कराई। यही नहीं, राम मंदिर निर्माण हेतु शिलान्यास खुद राजीव गांधी ने ही कराया। इसलिए कांग्रेस को हिंदू–मंदिर विरोधी कहना कुत्सित राजनीति के अलावा और कुछ भी नहीं है।




