
मुंबई। 2005 के दंगों से जुड़े एक पुराने मामले में सांसद रवींद्र वायकर और तत्कालीन अविभाजित शिवसेना के 28 अन्य सदस्यों को विशेष अदालत ने सबूतों के अभाव में बरी कर दिया है। यह मामला जुलाई 2005 में उस समय की राजनीतिक हलचल से जुड़ा था, जब नारायण राणे को बाल ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना से निष्कासित कर दिया गया था और उन्होंने कांग्रेस में शामिल होने की घोषणा की थी। उसी के बाद मुंबई के कुछ हिस्सों में हिंसा भड़क उठी थी। सांसदों और विधायकों के खिलाफ मामलों की सुनवाई करने वाले विशेष न्यायाधीश सत्यनारायण नवंदर ने 7 नवंबर को दिए गए आदेश में रवींद्र वायकर, शिवसेना नेता महेश सावंत, विशाखा राउत सहित सभी 29 आरोपियों को दंगा, गैरकानूनी सभा और अन्य संबंधित धाराओं से बरी कर दिया। अदालत का यह आदेश बुधवार को सार्वजनिक हुआ। न्यायाधीश ने अपने निर्णय में कहा, “यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता कि आरोपी उस गैरकानूनी सभा का हिस्सा थे जिसने दंगा किया था। भले ही वे शिवसेना के सदस्य रहे हों, लेकिन उनकी मौजूदगी या हिंसक गतिविधियों में भागीदारी के पर्याप्त साक्ष्य उपलब्ध नहीं हैं। अदालत ने आगे कहा कि “दो राजनीतिक गुटों के बीच प्रतिद्वंद्विता के कारण पूरे मुंबई शहर की स्थिति तनावपूर्ण हो गई थी, और पुलिस बल की व्यापक तैनाती के बावजूद कई लोग घायल हुए तथा सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुँचा। अभियोजन पक्ष के अनुसार, उस समय निषेधाज्ञा लागू होने के बावजूद करीब 100 से 150 शिवसेना कार्यकर्ता दादर के जाखा देवी चौक क्षेत्र में ‘रास्ता रोको’ प्रदर्शन के लिए इकट्ठा हुए थे। आरोप था कि प्रदर्शन के दौरान भीड़ हिंसक हो गई, पुलिस पर हमला किया गया, पत्थरबाजी की गई और बेस्ट बसों जैसी सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुँचाया गया। हालाँकि, अदालत ने पाया कि अभियोजन पक्ष आरोपियों की पहचान को ठोस सबूतों से साबित नहीं कर सका। न्यायाधीश ने कहा, “यह घटना भले ही दुर्भाग्यपूर्ण रही हो, लेकिन न्यायालय के समक्ष पेश किए गए साक्ष्य आरोपियों की भागीदारी स्थापित नहीं कर पाते।” परिणामस्वरूप, अदालत ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया।




