
स्वतंत्र लेखक- इंद्र यादव
मुंबई। वो सुबह की चहल-पहल, जहां हॉर्न की ध्वनि और इंजनों की गर्जना एक साथ मिलकर शहर की धड़कन बनाती है। ठाणे के उत्सव होटल के ठीक सामने, कैडबरी ब्रिज के निकास पर, नासिक की ओर जाने वाले चैनल पर, अचानक सब कुछ थम सा गया। अशोक लेलैंड का वो विशाल कंटेनर, नंबर डीडी 01 एम 9905, जो कलंबोली से गुजरात की ओर लदा हुआ था, अचानक डगमगा गया। चालक कामता पाल ने स्टीयरिंग पर पकड़ बनाए रखने की कोशिश की, लेकिन नियति ने कुछ और लिखा था। वाहन डिवाइडर से टकराया, धातु की चीखें गूंजीं, और सड़क पर खून की लकीरें खिंच गईं। मालिक श्री रमेश पांडे का ये ट्रक, जो रोजाना सैकड़ों किलोमीटर निगलता है, आज खुद निगला गया। कामता पाल, उम्र महज 50 साल। एक आम चालक, जिसकी जिंदगी ट्रक की सीट और सड़क की धूल में कैद है। परिवार का सहारा, सपनों का बोझ ढोता हुआ। सिर पर गहरी चोट, खून से लथपथ शरीर। घटनास्थल पर पहुंची राबोडी पुलिस की टीम, हाइड्रा मशीन लिए यातायात पुलिस के जवान, आपदा प्रबंधन के कर्मी और अग्निशमन दल के बहादुर – सब ने मिलकर उसे बाहर निकाला। सिविल अस्पताल की एम्बुलेंस में ले जाया गया, जहां डॉक्टरों की लड़ाई शुरू हुई। लेकिन वो दर्द! वो कराह जो ट्रक की टक्कर में नहीं, दिल में उतर गई। कामता की आंखों में क्या था! डर! पछतावा! या बस थकान भरी जिंदगी का अंतिम सवाल– क्यों! मुंबई से नासिक जाने वाला मार्ग धीमा पड़ गया, गाड़ियां रेंगती रहीं, लोग बेचैन। कोई ऑफिस जा रहा था, कोई घर लौट रहा, कोई सपनों की तलाश में। लेकिन सड़क ने सबको रोक लिया। वो डिवाइडर, जो सुरक्षा का प्रतीक है, आज खून से सना। क्या ये सिर्फ एक दुर्घटना थी, या हमारी लापरवाही की कहानी! सोचिए, कामता जैसे हजारों चालक रोज सड़कों पर दांव पर लगाते हैं। नींद की कमी, खराब सड़कें, ओवरलोडिंग– ये सब मौत का न्योता। पुलिस और बचाव दल ने तुरंत काम किया, यातायात बहाल किया, लेकिन वो घाव! वो सिर की चोट जो कामता को अस्पताल पहुंचा गई, वो परिवार की चिंता जो घर में बैठी रो रही होगी। शहर की रफ्तार में हम भूल जाते हैं इन चेहरों को। ट्रक नहीं, इंसान ढोते हैं ये लोग। गुजरात का माल, कलंबोली का बोझ– सब कुछ रुक गया एक पल में। ये दर्द सिर्फ कामता का नहीं, हम सबका है। सड़कें जो जोड़ती हैं, कभी-कभी तोड़ भी देती हैं। काश, हम जागें। काश, सुरक्षा के नियम सख्त हों, चालकों की नींद पूरी हो, सड़कें मजबूत बनें। कामता जल्दी ठीक हो, ये दुआ है। लेकिन अगली दुर्घटना! वो कब रुकेगी? शहर की नींद टूटी है आज, शायद अब जागने का वक्त है। वरना, हर मोड़ पर ऐसी कराह गूंजती रहेगी।



