
पुणे। शहर के जैन बोर्डिंग जमीन प्रकरण को लेकर महायुति में घमासान मच गया है। इस विवाद में अब भाजपा की सहयोगी शिंदे शिवसेना के नेता और विधायक रवींद्र धंगेकर खुलकर सामने आ गए हैं। उन्होंने केंद्रीय राज्य मंत्री और पुणे के सांसद मुरलीधर मोहोल पर गंभीर आरोप लगाते हुए इस जमीन सौदे को “भ्रष्टाचार और साजिश” का परिणाम बताया है। धंगेकर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर मामले की जांच कराने की मांग की है और मोहोल से केंद्रीय मंत्री पद से इस्तीफा देने को कहा है। मीडिया से बातचीत में रवींद्र धांगेकर ने कहा कि “मुरलीधर मोहोल इस प्रकरण में बुरी तरह फंसे हुए हैं, उनके हालिया बयानों से स्पष्ट है कि वे हताशा में हैं। उन्होंने कहा कि जैन बोर्डिंग ने वर्ष 1958 में गरीब विद्यार्थियों के लिए छात्रावास के रूप में जमीन खरीदी थी, लेकिन अब उसी जमीन को बेचे जाने की प्रक्रिया संदिग्ध है। कुछ ट्रस्टियों की मदद से यह सौदा पहले से तय कर लिया गया था। चुनाव के बाद से ही इस जमीन को हड़पने की साजिश चल रही थी। धंगेकर ने आरोप लगाया। धंगेकर ने बताया कि 21 नवंबर 2023 को श्रीराम जोशी ने एक चैनल को दिए इंटरव्यू में कहा था कि इस जमीन के बदले लगभग 230 करोड़ रुपए मिल सकते हैं। टेंडर जारी होने से पहले ही यह तय कर लिया गया था कि रकम 15 किश्तों में दी जाएगी। इसके बाद 13 दिसंबर 2024 को ट्रस्ट की बैठक में जमीन बेचने का प्रस्ताव पारित किया गया, और 16 दिसंबर को निविदा प्रक्रिया शुरू की गई। हालांकि तीन कंपनियों- लांजेकर, बाडेकर और गोखले ने ही आवेदन किया, जो सभी मोहोल के करीबी बताए जाते हैं, धंगेकर ने दावा किया। उनके अनुसार, इन कंपनियों ने क्रमशः 180 करोड़ रुपए, 200 करोड़ रुपए और 230 करोड़ रुपए की बोली लगाई, जो टेंडर की प्रक्रिया को एक “नाटक” साबित करती है। धांगेकर ने कहा- मुरलीधर मोहोल इस जमीन सौदे में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से शामिल हैं। उन्होंने शिक्षा और सेवा की जगह को लूट का अड्डा बना दिया है। उन्होंने आगे कहा कि जब कांग्रेस सांसद सुरेश कलमाडी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे, तो कांग्रेस पार्टी ने नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए उनसे इस्तीफा मांगा था। भाजपा को भी यही करना चाहिए। ईडी से इस मामले की जांच कराई जानी चाहिए और सभी ट्रस्टियों तथा संबंधित लोगों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए, धांगेकर ने मांग की। उन्होंने कहा कि अगर मोहोल निर्दोष हैं, तो उन्हें खुद मंत्री पद से इस्तीफा देकर जांच का सामना करना चाहिए। जनता के सामने सच्चाई आनी चाहिए। इस प्रकरण के राजनीतिक मायने गहराते जा रहे हैं क्योंकि यह विवाद न केवल पुणे के भीतर महायुति की साझेदारी को झटका दे सकता है, बल्कि भाजपा और शिंदे शिवसेना के बीच अविश्वास की रेखा को और चौड़ा कर सकता है।