
मुंबई। बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) ने सेवानिवृत्त मुख्य क्लर्क सुजाता जाधव को 25 लाख रुपये का भुगतान किया है, जिसमें 16 लाख रुपये ग्रेच्युटी और 9 लाख रुपये ब्याज शामिल हैं। जाधव की सेवानिवृत्ति के बाद विभागीय जांच का हवाला देकर बीएमसी ने ग्रेच्युटी के भुगतान में देरी की थी। सेवानिवृत्ति के दस साल बाद न्याय की तलाश में जाधव ने श्रम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। मामला हाई कोर्ट तक पहुंचा, जहां अदालत ने बीएमसी को ग्रेच्युटी और ब्याज का भुगतान करने का आदेश दिया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सेवानिवृत्ति के 30 दिनों के भीतर ग्रेच्युटी दी जानी चाहिए और किसी भी देरी की स्थिति में 10 प्रतिशत ब्याज अनिवार्य है। साथ ही, अदालत ने यह भी कहा कि लंबित जांच का हवाला देकर भुगतान रोका नहीं जा सकता। जाधव की ओर से वकील प्रकाश देवदास और विदुला पाटिल ने अदालत में मजबूत पैरवी की। देवदास ने तर्क दिया कि बीएमसी की लापरवाही से न केवल कर्मचारियों के अधिकारों का हनन हुआ है, बल्कि सरकारी खजाने पर भी अनावश्यक बोझ पड़ा है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि गलत कानूनी सलाह देकर ग्रेच्युटी रोकने वाले अधिकारियों से ब्याज की वसूली की जानी चाहिए। देवदास ने कहा कि यह मामला केवल एक कर्मचारी का नहीं है, बल्कि बीएमसी के कई अन्य सेवानिवृत्त कर्मचारी भी इसी तरह की परेशानियों का सामना कर रहे हैं। उन्होंने समय पर भुगतान और स्पष्ट नियम पालन की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि भविष्य में सरकारी संसाधनों के दुरुपयोग को रोकने के लिए कानूनों की गलत व्याख्या को सुधारा जाना जरूरी है। उन्होंने यह भी कहा कि सेवानिवृत्त कर्मचारियों के अधिकारों की रक्षा करना बीएमसी में जवाबदेही और वित्तीय प्रबंधन की मजबूती के लिए आवश्यक है।




