
मुंबई। हिंदू धर्म, संस्कृति और परंपरा में गोमाता एवं गोवंश का स्थान सर्वोच्च और पूजनीय रहा है। वेदों, रामायण और महाभारत जैसे धर्मग्रंथों में गाय का विशेष उल्लेख मिलता है। भगवान शिव का वाहन नंदी बैल है, और छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवन का भी एक बड़ा उद्देश्य गोरक्षा से जुड़ा बताया गया है। कवि परमानंद ने लिखा था कि म्लेच्छ धर्म के प्रसार और गायों के वध को रोकने के लिए ही शिवाजी का जन्म हुआ। इतिहास और परंपरा से लेकर स्वतंत्रता संग्राम तक, गोरक्षा हमेशा एक केंद्रीय मुद्दा रही। 1857 के विद्रोह में गोवंश की चर्बी एक बड़ा कारण बनी और करपात्री महाराज के नेतृत्व में अनेक साधुओं ने गोरक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। आज भी भारतीय गोवंश की वैज्ञानिक उपयोगिता सिद्ध है। गोबर खाद का कोई विकल्प नहीं है, और भारत से इसका निर्यात भी होता है। गोमूत्र और गोबर के औषधीय महत्व पर कई शोध-पत्र प्रकाशित हुए हैं और आठ से अधिक पेटेंट दर्ज किए गए हैं। सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय भी देशी गोवंश की उपयोगिता और महत्व को स्वीकार कर चुके हैं। संविधान ने हर नागरिक को गोरक्षा के अधिकार की मान्यता दी है। इसके बावजूद, आज गोरक्षकों को बदनाम करने की साजिशें हो रही हैं और गलत आरोप लगाकर उनकी छवि धूमिल करने का प्रयास किया जा रहा है। महाराष्ट्र में करीब 1080 गोशालाएं हैं, जिनमें संचालक अपने निजी खर्च से गोवंश का पालन-पोषण करते हैं। सरकार भी सहायता देती है, लेकिन गोरक्षकों पर लगे झूठे आरोप इन सच्चाइयों को अनदेखा कर देते हैं। गोहत्या प्रतिबंध कानून से कसाई वर्ग में बेचैनी है और कई बार पुलिस व गोरक्षकों पर हमले भी हुए हैं। बावजूद इसके, गोरक्षक अपनी जान जोखिम में डालकर, कानून के दायरे में रहकर गोवंश की रक्षा कर रहे हैं। इस संघर्ष से गैरकानूनी धंधे पर रोक लगी है और कसाइयों में डर फैल गया है, इसी कारण सुनियोजित तरीके से हिंदू संगठनों और गोरक्षकों को बदनाम किया जा रहा है। कुरेशी समाज को लेकर भी गहरी नाराजगी व्यक्त की जा रही है, क्योंकि उनका धंधा गोहत्या से जुड़ा है। वहीं खटीक समाज हिंदू है और गोहत्या का समर्थन नहीं करता। किसान वर्ग को भी आगाह किया जा रहा है कि वह झूठे प्रचार और राजनीतिक स्वार्थ का हिस्सा न बने। गोरक्षा का मुद्दा केवल धार्मिक भावनाओं से नहीं, बल्कि कृषि, पर्यावरण और मानव जीवन से भी जुड़ा है। समाज और हिंदू संगठनों ने आह्वान किया है कि जिस गोवंश को गोपालकृष्ण ने पाला और जो सम्पूर्ण जीवसृष्टि, विषमुक्त खेती और मानव जीवन के लिए वरदान है, उसके संरक्षण, पालन और संवर्धन के लिए हर व्यक्ति को आगे आना चाहिए। गोरक्षकों को बदनाम करने की कोशिशें तत्काल बंद हों और गोवंश को राजनीति और षड्यंत्र से दूर रखकर उसके संरक्षण पर ध्यान केंद्रित किया जाए। यही आज के समाज और आने वाली पीढ़ियों के लिए वास्तविक चेतावनी और संदेश है।