
मुंबई। ओबीसी आंदोलन के प्रमुख नेता और एनसीपी (अजित पवार गुट) के वरिष्ठ नेता छगन भुजबल ने मराठा आरक्षण को लेकर जारी दो सरकारी प्रस्तावों (जीआर) पर महाराष्ट्र सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया है। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के उन बयानों का खंडन करते हुए भुजबल ने शुक्रवार को कहा कि उन्हें विश्वास में लिए बिना यह निर्णय दबाव में लिया गया है। उन्होंने बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शनों की चेतावनी दी और जीआर को अदालत में चुनौती देने का एलान किया। भुजबल ने कहा, “मैंने मंडल आयोग के मुद्दे पर भी बालासाहेब ठाकरे का साथ छोड़ा था। अब भी यदि कुछ गलत हो रहा है तो चुप नहीं रह सकता। यह लड़ाई जारी रहेगी। गुरुवार को फडणवीस और शिंदे ने दावा किया था कि जीआर जारी करने से पहले भुजबल, अजित पवार और अन्य संबंधित नेताओं से चर्चा की गई थी। जीआर हैदराबाद गजेटियर के आधार पर ग्राम-स्तरीय समितियां बनाकर मराठा समुदाय के उन लोगों को कुनबी जाति प्रमाण पत्र देने से संबंधित है, जो अतीत में खुद को कुनबी के रूप में दर्ज करवा चुके थे। भुजबल ने आरोप लगाया कि सरकार ने मराठा आरक्षण समर्थक मनोज जरांगे पाटिल के दबाव में आकर ये निर्णय लिए हैं। उन्होंने कहा कि नए सरकारी आदेश में “योग्य” शब्द हटा दिया गया है, जिससे मराठों के आवेदनों की नए सिरे से जांच कर उन्हें जाति प्रमाण पत्र दिए जाने का रास्ता खुल जाएगा। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, भुजबल का यह रुख सरकार के सामूहिक जिम्मेदारी सिद्धांत पर सवाल खड़ा करता है। एक वरिष्ठ नौकरशाह ने कहा कि कोई मंत्री यदि सरकार के फैसलों से असहमत है, तो उसे कैबिनेट छोड़ना पड़ सकता है। हालांकि मौजूदा परिस्थितियों में न सत्ता पक्ष और न ही विपक्ष इस विवाद को भड़काने के मूड में दिख रहा है, क्योंकि भुजबल के खिलाफ उठने वाली कोई भी आवाज ओबीसी वर्ग के खिलाफ मानी जा सकती है, जो राज्य का बड़ा वोट बैंक है।