Tuesday, July 1, 2025
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क्या ममता बचा पाएंगी बंगाल की सत्ता?

पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में वक्फ कानून के विरोध को कब, कैसे हिंसात्मक रूप दे दिया गया, ममता बनर्जी के लिए मुश्किल पैदा करने वाली घटना है। जिस हिंसा के चलते हिंदुओं को भगाना पड़ा, यदि इसकी तुलना कश्मीर के पंडितों के पलायन की मजबूरी के साथ किया जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। ममता बनर्जी एकमात्र मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने प्रदेश में वक्फ लागू करने से मना कर दिया। यह बयान मुस्लिमों को खुश करने के लिए माना जा सकता है। पीटीआई की खबरों में मुर्शिदाबाद के दंगे में बांग्लादेशियों का हाथ संभव है, कहा गया। शिक्षक भर्ती घोटाले में लिस्ट बनाने में धोखा किया गया। रिक्तियों से अधिक लोगों को नौकरियां देने, मेरिट बिना बहुतेरे लोगों को शिक्षक नियुक्त करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाकर हाई कोर्ट के फैसले पर मुहर लगा दी। लेकिन ममता बनर्जी ने उसे नहीं माना। चुनाव आयोग द्वारा वोटर लिस्ट को आधार से जोड़ने की प्रक्रिया के कारण टीएमसी के वोटरों की संख्या कम हो सकती है, जिसके विरुद्ध राष्ट्रपति को ज्ञापन देने वाले सांसदों में महुआ मोइत्रा के हस्ताक्षर नहीं लिए गए थे। जबकि दुनिया जानती है, मोइत्रा के संसद में सवाल सत्ता को विचलित करने वाले होते हैं। वास्तविकता यह है कि ममता बनर्जी और उनके भतीजे में शीत युद्ध चल रहा है। पार्टी दो गुटों में बुरी तरह बंट गई है। यहां तक कि प्रशासन पर भी पकड़ ढीली पड़ गई है। अगर पुलिस तैयार रहती, तो निश्चित ही मुर्शिदाबाद में दंगे करने की हिम्मत न होती। सवाल उठता है कि देश भर का मुस्लिम समुदाय वक्फ कानून को लेकर विरोध जता रहा है। देश में अन्य किसी राज्य में दंगा क्यों नहीं भड़का? तय है कि दूसरे प्रदेश की सरकारों ने पहले ही आशंकित होकर प्रशासन को तैनात कर दिया था, लेकिन ममता बनर्जी के शासन ने दंगा भड़कने दिया। खुफिया रिपोर्ट बताती है कि यदि समय रहते व्यवस्था नहीं की गई तो बंगाल को बांग्लादेश-2 बनने से कोई रोक नहीं पाएगा।
अब केंद्र सरकार को चाहिए कि वह तत्काल ही बंगाल में राष्ट्रपति शासन लागू करके बंगाल को सेना के हाथों सौंप दे। सेना की उपस्थिति में ही वोटर लिस्ट को आधार कार्ड से जोड़ने की प्रक्रिया भी शुरू कर दे। यद्यपि यह सच है कि बांग्लादेशियों को वामपंथी मोर्चा की सरकार के रहते ही बसाया गया और उनके कागजात तैयार किए गए थे। ममता बनर्जी के शासन में बांग्लादेशियों के आधार कार्ड, राशन कार्ड और डीएल सहित संभव है पासपोर्ट भी बनवाए गए। केंद्र सरकार से बांग्लादेशियों के तीन पीढ़ी पूर्व के कागजात दिखाने को अनिवार्य बना दिया जाए। वोटर कार्ड को आधार कार्ड से जोड़ने की सारी प्रक्रिया सेना की उपस्थिति में संपन्न कराई जाए। साथ ही जिनकी पहचान बांग्लादेशियों के रूप में की जाए, उन्हें तत्काल बांग्लादेश भेजने की व्यवस्था भी करनी होगी। यही कार्य समूचे देश में करना होगा।
बांग्लादेश सहित रोहिंग्या मुसलमानों के भी कागजात चेक किए जाने चाहिए, ताकि बांग्लादेशियों सहित रोहिंग्या मुसलमानों को भी देश निकाला दिया जाए। जहां तक वक्फ संपत्तियों का मामला है, आज़ादी के पूर्व के कागज तो मिलेंगे नहीं। भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद सारी वक्फ जमीनों के कागजात लिए जाएं। शत्रु संपत्तियों को भी सरकार वक्फ से बाहर कर दे और हिंदू-मुसलमानों में जितने गरीब तबके के लोग हों, उन्हें पट्टा दिया जाए ताकि गरीब मुसलमानों के साथ न्याय हो — न कि वक्फ संपत्तियों को जब्त कर पूंजीपतियों को बांट दिया जाए, जैसा अयोध्या में फौज के लिए रिजर्व जमीन के साथ किया गया।
जहां तक वोटर लिस्ट की बात है, आधार कार्ड जोड़ने के लिए विपक्षी कार्यकर्ताओं की उपस्थिति जरूरी हो, ताकि बीजेपी अपनी मनमानी करके विपक्षी वोट ही गायब न कर दे। इस कार्य में सभी विपक्षी दलों का भी सहयोग लेने पर कोई विवाद नहीं हो सकता। लेकिन मनमाने ढंग से वोटर लिस्ट में वोटर कार्ड के नंबर दो जगहों पर रखकर उन्हें बीजेपी वोटरों में बढ़ाया न जा सके, जैसा आरोप हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली में वोटर लिस्ट को लेकर विपक्ष लगा रहा है। वोटर लिस्ट फाइनल करके सभी प्रतियों को भी उसकी कॉपी दे दी जाए, ताकि फिर किसी तरह की गड़बड़ी की आशंका ही न रहे।
किसी भी संगठन या प्राइवेट सेना द्वारा खुलेआम हथियार लहराने की छूट नहीं मिलनी चाहिए। ऐसा न हो कि कोई संगठन उत्पात और मनमाने ढंग से बीजेपी के पक्ष में हथियार लहराते हुए रैलियां करे — यह उचित नहीं। पहले सुधार अपने घर से करना पड़ेगा। ऐसा नहीं कि किसी विशेष संगठन को हथियार लहराने की छूट दी जाए। ऐसे में किसी विपक्षी संगठन को हथियार लहराने से आप कैसे रोकने के अधिकारी होंगे?
महात्मा गांधी और गौतम बुद्ध की धरती प्रेम और न्याय की है। यहां किसी ढोंगी बाबा को भी उन्माद बढ़ाने वाला कोई प्रवचन और नारा देने पर पूरी तरह से रोक लगानी पड़ेगी, क्योंकि अधिकांश बाबाओं को जनहित और राष्ट्रहित की चिंता नहीं रहती — इसलिए वे अपने भक्तों को हिंसा का पाठ पढ़ाया करते हैं। ऐसे ढोंगी बाबाओं को गिरफ्तार कर लेना ही न्याय होगा।

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