Saturday, February 22, 2025
Google search engine
HomeUncategorizedसंपादकीय: हिंदू कब जाग कर मानेंगे सनातन धर्म?

संपादकीय: हिंदू कब जाग कर मानेंगे सनातन धर्म?

कभी धर्म प्राण रहा भारत, धर्म भीरू कब बना दिया गया, हिंदुओं को पता ही नहीं चल पाया, क्योंकि धर्म के ठेकेदारों, धर्माधिकारियों ने सनातन धर्म की व्याख्या अपने फायदे के लिए करते हुए अनेकानेक मान्यताएं, परंपराएं बना दीं, जिनका कोई वैज्ञानिक आधार ही नहीं रहा। हिंदुओं का शोषण जितना धर्म के नाम पर आडंबरों ने किया, उतना किसी ने नहीं किया। विश्व में सनातन धर्म ही स्थापित था। व्यक्ति सत्यनिष्ठ और सत्यानुशासित रहते। परिवार में प्रेमभाव था। समाज में किसी तरह का भेदभाव नहीं होकर न्याय होता था। स्मरण होगा, महान कहानीकार मुंशी प्रेमचंद की कथा ‘पंच परमेश्वर’, जब मित्र ने अपने ही मित्र के अपराध के लिए दोषी करार दिया। अर्थात, समाज में न्याय होता रहा, जिससे लड़ाई-झगड़े, फसाद, आतंकवाद और युद्ध की स्थिति नहीं आती थी। समष्टि में पुण्य पूर्ण रूप से व्याप्त था। लोग नदियों, पहाड़ों, वृक्षों की देखभाल करते। पशु-पक्षियों को भोजन और रक्षण करते थे। कालांतर में धूर्त और स्वार्थी लोगों ने अपने निहित स्वार्थ के लिए सनातन धर्म में विकृतियां ला दीं। जिसमें गलत मान्यताएं और परंपराएं जोड़ दिए जाने से विकृतियां आ गईं। जिस कारण विसंगतियों के विरोध में महावीर, गौतम बुद्ध, ईसा मसीह, जारथ्रुश्ट और मोहम्मद साहब के साथ ही गुरु नानक देव ने अलग-अलग पंथ बना लिए। आज प्रायः सभी पंथों में वे ही बुराइयां धूर्त और दुष्ट जनों ने निहित स्वार्थ के लिए लाने की कोशिशें कीं और सफल हो गए।
आज कथित हिंदू, हिंदुत्व के बाद सनातन धर्म के नाम पर हिंदुओं के बीच परस्पर जातीय आडंबर फैला दिया गया। ऐसे ही अन्य पंथों में जड़ता आई और विकृत रूप ले लिया। हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, वहाबी बनकर सभी दुख झेलने लगे हैं। धूर्त सत्ताओं ने धर्म का बेजा इस्तेमाल अपने फायदे के लिए करना शुरू कर दिया। भगवा विषधारी अज्ञानी और ढोंगी बाबाओं को अपना एजेंट बनाकर हिंदुओं को कभी भाग्य तो कभी धर्म के नाम पर, ईश्वर या देवी-देवताओं के नाम पर डराने का ठेका ले लिया ढोंगी बाबाओं ने। जो हिंदुओं के अधिकारों के हनन में सत्ता के फायदे किए, कथित परंपराओं, मान्यताओं के द्वारा हिंदुओं को धर्म परायण करने के स्थान पर धर्म भीरू बना दिया है। हिंदू समाज आज जड़ हो चुका है। उसे इतना भयभीत कर दिया गया है कि वह अपने मानवीय और संवैधानिक अधिकार जानने की कोशिश करना ही भूल गया। देवता कभी दंड नहीं देते। देवता अर्थात देने वाले, भला किसी को दंड क्यों और कैसे देंगे? उदाहरण के लिए सत्यनारायण की कथा को ही ले लें। रेवा खंड, जिसे शेष खंड कहा जाता है, उसमें सत्यनारायण की कथा का उल्लेख ही नहीं है। हमें स्मरण है, लब्ध प्रतिष्ठित ‘नवभारत टाइम्स’ में सन 1976 में विद्वानों में सत्यनारायण की कथा पर गंभीर बहस चली थी। कथा नहीं सुनने पर देवता के द्वारा दंडित यानी व्यवसायी को नुकसान पहुंचाने की कहानी कही जाती है, जबकि स्कंद पुराण के शेष खंड की कथा लुप्त है। कौन सी कथा थी, कोई नहीं जानता। हां, व्यापारी को नुकसान पहुंचाकर दंड का भय जरूर आज सत्यनारायण की कथा में ब्राह्मणों द्वारा सुनाई जाती है। जिस मनुस्मृति की आज चर्चा ही नहीं, बीजेपी सरकार द्वारा संविधान के स्थान पर लागू करने की जिद बताई जाती है, उसी मनुस्मृति की मूल प्रति में मात्र 64 श्लोक थे, जो आज बढ़ाकर बारह सौ कर वीभत्स बना दिया गया है। जिसमें शूद्रों को अन्य तीन वर्णों की सेवा का अधिकार बताया जाता है। जबकि चार वर्ण क्रमशः ब्राह्मण अपनी चेतनात्मक क्षमता, क्षत्रिय भावनात्मक, वैश्य या वणिक मानसिक क्षमता और शूद्र केवल शारीरिक क्षमता के अनुसार वर्गीकृत किए गए थे। जिसे पूर्ण रूप से आज के वैज्ञानिक पूरी तरह से वैज्ञानिक आधार पर निर्धारण मानते हैं। यह सिद्ध हो गया कि अपनी-अपनी क्षमताओं या गुणों के आधार पर ही ब्राह्मण, क्षत्रिय, वणिक और शूद्र चार वर्ण बने थे। ध्यान रहे, व्यवस्था बनती नहीं, स्वतः बन जाती है। सोचिए, जो केवल शारीरिक बल रखता हो, उसमें मानसिक, भावनात्मक और चेतनात्मक क्षमताएं नहीं हों, तो वह केवल श्रम का ही अधिकारी हो सकता है। गुण के आधार पर लोग कर्म करने लगे। यही वर्ण का आधार बना था। विकृति तब आई, जब विभिन्न काम करने के आधार पर जातियां अस्तित्व में आ गईं, जैसे बाल काटने वाला नाई, कपड़े धोने वाला धोबी, लोहे का यंत्र बनाने वाला लोहार, मिट्टी के बर्तन का निर्माता कुम्हार आदि की तरह जाति वाले बनते गए। याद रहे, सभी जातियां एक-दूसरे के परस्पर सहयोगी रहे। दुर्भाग्य से आज जातियों को वर्णों से जोड़ने और जनता को बांटने का काम धूर्तता की पर्याय बन चुकी राजनीति करने लगी है, अपने निहित स्वार्थ के लिए। जाति के आधार पर राजनीति करके सत्ता सुख के अभिलाषी जातीय नेता समाज की समरसता खत्म करने में सफल भी हो रहे हैं। जातीय जनगणना उसी का निकृष्ट प्रतिफलन है, जो केवल क्षुद्र नेताओं द्वारा वोट बैंक बनाकर सत्ता सुख लेना चाहते हैं। हिंदू जनमानस को जागना होगा। उठ खड़ा होना होगा। शिक्षा निशुल्क और समान रूप से सभी को उपलब्ध कराने के लिए सत्ता पर दबाव बनाना होगा। रोजगार, आवश्यक आवास, बिजली, पानी, सड़क निशुल्क मांगना होगा। सबको रोजगार के संसाधन जुटाने के लिए सरकार को विवश करना होगा। चिकित्सा निशुल्क, बैंकिंग निशुल्क, बीमा निशुल्क और जनसुरक्षा की व्यवस्था करना सत्ता का संवैधानिक दायित्व है। यही जनता के अधिकार भी हैं। सत्ता द्वारा हिंदू-मुस्लिम के खेल को समझना होगा देश के हिंदुओं को।तुम राजनीति सत्ता के गुलाम बना दिए गए हो। अपने अधिकार मांग न करो, इसीलिए हिंदू-मुस्लिम कहकर तुम्हें बलि का बकरा बना दिया गया है। जो धूर्त मुगलों को विदेशी बताते हैं, उन्हें ज्ञान नहीं कि मुगल अफगान से आए थे, जो भारतवर्ष का ही भूभाग था, लुटेरे नहीं थे। विदेशी तो सिकंदर, तुर्क, यवन, हूण और अंग्रेज थे। भारत के मुसलमान, भारत के हिंदू ही हैं। चार-छह पीढ़ी पहले जाइए, आपकी गोत्र के ही हैं। याद रहे, सरकारी स्कूल बंद किए जा रहे हैं। शिक्षा को माफिया व्यापारियों के हाथों में सौंप दिया, ताकि तुम्हें लूटा जा सके। सारे सरकारी संसाधन चंद पूंजीपतियों के हाथों में देकर तुम्हें बेरोजगार बनाने की साजिश की जा रही है। ध्यान रहे, अगर अभी न चेते तो तुम्हारा ही नहीं, तुम्हारी आने वाली पीढ़ियां भी तुम्हारी तरह सत्ता की गुलामी करती रहेंगी।

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -
Google search engine

Most Popular

Recent Comments