Monday, August 4, 2025
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शिवसेना (यूबीटी) नेता अंबादास दानवे का आरोप: महाराष्ट्र सरकार की वित्तीय स्थिति खराब, कल्याणकारी योजनाओं पर संकट

मुंबई। महाराष्ट्र में भाजपा के नेतृत्व वाली महायुति सरकार की वित्तीय स्थिति को लेकर शिवसेना (यूबीटी) के नेता अंबादास दानवे ने शुक्रवार को गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं को रोकने का प्रयास कर रही है क्योंकि महाराष्ट्र पर 8 लाख करोड़ रुपये का कर्ज हो चुका है।
महाराष्ट्र की आर्थिक स्थिति बेहद खराब- अंबादास दानवे
मुंबई में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए दानवे ने कहा, “विधानसभा चुनाव से पहले महायुति सरकार ने ‘लड़की बहिन’ और ‘लड़का भाऊ’ जैसी कई योजनाओं की घोषणा की थी। तब हमने चेतावनी दी थी कि ये योजनाएं राज्य की अर्थव्यवस्था को बर्बाद कर देंगी और आज वही हो रहा है। उन्होंने आगे कहा कि राज्य सरकार अब वित्तीय संकट के चलते कई कल्याणकारी योजनाओं को रद्द करने या उनके लाभार्थियों की संख्या में कटौती करने का प्रयास कर रही है।कल्याणकारी योजनाओं पर संकट?
‘मुख्यमंत्री माझी लड़की बहिन’ योजना के तहत, 21 से 65 वर्ष की आयु की महिलाओं को, जिनकी पारिवारिक आय 2.5 लाख रुपये प्रति वर्ष से कम है, 1,500 रुपये प्रति माह की वित्तीय सहायता मिलती है। पिछले साल अगस्त में शुरू की गई इस योजना को विधानसभा चुनाव के दौरान 2,100 रुपये प्रति माह करने का वादा किया गया था। हालांकि, विपक्ष ने इसकी वित्तीय व्यवहार्यता पर सवाल उठाए हैं। इसके अलावा, ‘लड़का भाऊ’ योजना, जिसका उद्देश्य राज्य के युवाओं और छात्रों को मुफ्त व्यावसायिक प्रशिक्षण देना था, अब संकट में बताई जा रही है।
“लड़का भाऊ योजना बंद, किसानों को पैसा नहीं”
दानवे ने कहा, राज्य सरकार के पास लाभार्थियों को भुगतान करने के लिए धन नहीं है। ‘लड़का भाऊ’ योजना बंद हो गई है। किसानों को देने के लिए भी पैसे नहीं हैं। उन्होंने यह भी दावा किया कि फसल बीमा योजना, जिसमें किसान महज 1 रुपये का प्रीमियम देकर अपनी फसल का बीमा करवा सकते थे, अब बंद होने की कगार पर है। दानवे के इन आरोपों से महाराष्ट्र की राजनीति में नया विवाद खड़ा हो गया है। विपक्ष ने राज्य की आर्थिक नीतियों और कर्ज प्रबंधन को लेकर सरकार को घेरा है, जबकि सरकार की ओर से अभी इस पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। महाराष्ट्र में अगले कुछ महीनों में विधानसभा चुनाव संभावित हैं और ऐसे में कल्याणकारी योजनाओं की समीक्षा और उनकी वित्तीय स्थिति एक बड़ा चुनावी मुद्दा बन सकता है।

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