Sunday, December 22, 2024
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संपादकीय: आंबेडकर अपमान आक्रोशित हिंदुस्तान!

‘दैव दैव आलसी पुकारा! गोस्वामी तुलसीदास का यह कथन उन अकर्मण्य लोगों के लिए है जो बैठे बिठाए खाना चाहते हैं। छीनकर खाने वाले मनुष्य नहीं दैत्य होते हैं। धूर्तता फ़रेब और गुंडागर्दी कर कोई भी ऊंचे पद पर पहुंच सकता है लेकिन शालीनता सहिष्णुता सम्मान आदर भाव सुसंस्कार में मिलते हैं। बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर ।पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर।।कोई बड़े पद पर हो। ऊंचा रुतबा हो। शक्तिशाली हो लेकिन उसमें यदि विनम्रता और शालीनता नहीं हो तो इंसान कहने योग्य भला कैसे हो सकता है? विद्वान भी यदि दंभी कुचक्री दुष्ट क्रूर कपटी हो जाए तो उसका मनुष्य होकर जन्म लेना भी व्यर्थ होता है। फलदार वृक्ष फल आने पर झुक जाते हैं। वैसे ही प्रभुत्व प्राप्त श्रीमान व्यक्ति में विनम्रता नहीं हो तो वह अप्रिय और त्याज्य होता है।उसका आदर भी कोई नहीं करता क्योंकि वह सम्मान का पात्र भी नहीं होता। इसलिए विशेष रूप में ऊंचे ओहदे और पद से मिली शक्ति पर कभी भी दंभ नहीं करना चाहिए।तीन लोक जीतने वाला महान नायक, शक्तिशाली योद्धा, महापंडित लंकापति दशानन या लंकेश से देव, दानुज, दानव और मानव भी इसलिए भयभीत रहते थे क्योंकि रावण अहंकारी और महाक्रूर व्यक्ति था। साधु संतों, ऋषियों को वह अपने गणों से त्रस्त करता था। जहां कही यज्ञ हवन होते थे रावण के गण जाकर उत्पात मचाते थे। विघ्न डालते थे।कंश भी बलवान प्रतापी राजा था परंतु उसने अपनी बहन और बहनोई को कैदी बना रखा था। यहां तक कि जन्म लेने वाले भांजों की हत्या करता रहा। हिटलर भी शक्तिशाली था।यह अलग बात है कि जर्मनी की सत्ता में वह अपनी धूर्तता और छल कपट के बूते पहुंचा और तानाशाह बन बैठा। स्वर्ग में आज वही हैं जो जनता का लहू चूस रहे। भव्य अट्टालिकाएं। मंहगी-मंहगी गाड़ियों के काफिले, प्राइवेट हेलीकॉप्टर और हवाई जहाज हैं। बैंक बैलेंस हैं। बेनामी संपत्तियों के मालिक हैं। जिनकी जेब में सरकार है। न्यायालय हैं।जांच एजेंसियां हैं। चुनाव आयोग और तमाम आईएएस सेवा में हैं। जो जनसेवा का ढोंग करते हैं मगर जनता को पीड़ित करते रहते हैं। जनता के हित में काम नहीं करके पूंजीपतियों के विस्तार और धनवान बनाने में लगे होते हैं। स्वर्ग में वे हैं जो बैंकों से हजारों करोड़ कर्ज लेकर विदेश में जाकर मौज करते हैं। स्वर्ग में वे पूंजीपति हैं जिनके लाखों करोड़ रुपयों के कर्ज सरकार माफ करती है। स्वर्ग में वे व्यापारी और उद्योगपति हैं जो सरकार को चंदा देकर धंधा लेते हैं। 25 रूपये का प्रोडक्ट 300 रुपए में जनता को बेचकर खूब मुनाफा कमाते हैं। स्वर्ग में वे हैं जो मजदूरों के साथ अन्याय औरशोषण करते हैं। स्वर्ग में तो माफिया डॉन बलात्कारी लुटेरे भ्रष्ट नेता हैं। स्वर्ग में तो वे भ्रष्ट सरकारी अधिकारी हैं जो लाखों रुपए वेतन पाकर भी चार हजार महीने कमाने वालों से पांच दस हजार घूस मांगते हैं। स्वर्ग में तो वे जज हैं जो सत्ता की चापलूसी करते हुए रिटायर होने पर कोई मलाईदार ओहदा पा जाते हैं। स्वर्ग में रहने वालों की संख्या मुश्किल से दो से पांच प्रतिशत ही है। शेष 95 प्रतिशत मध्यम वर्ग निम्न वर्ग आदिवासी मजदूर बेरोजगार युवा हैं जो सरकार द्वारा दया दिखाते और प्रचार करते हुए मुफ्त दिए जाने वाले पांच किलो अनाज पर जिंदा हैं। जो अनपढ़ हैं। गंवार हैं। मेहनत कश होते हुए भी बेजार हैं। ब्राह्मणवाद कहकर विरोध करने वाले मूर्ख क्या जानें कि देश के 97 प्रतिशत ब्राह्मण सुदामा जैसे ही हैं। दयनीय हालत में भिक्षाटन को विवश हैं।
भारतीय संविधान के शिल्पी आंबेडकर को सत्तर प्रतिशत लोग भगवान मानकर पूजते हैं। शेष पच्चीस प्रतिशत के लिए आंबेडकर प्रेरणास्रोत और आदर्श हैं। बीजेपी के लिए गांधी, नेहरू, आंबेडकर की कोई कद्र भले न हो परंतु जिन दलितों वंचितों पिछड़े गरीबों को भी देश में सम्मानजनक जीवन जीने के लिए सतत प्रयास किए। समानता और व्यक्तिगत अधिकार दिए। उनका अपमान भले 95 प्रतिशत लोग कैसे सहन कर सकते हैं? देश भर में आंबेडकर का अपमान करने वाले अमित शाह केंद्रीय गृहमंत्री का पुतला फूंक कर रोष प्रकट कर रहे। जगह जगह सभाएं गोष्ठियों के आयोजन किए जा रहे। आंबेडकर की लगाई गई मूर्तियों पर माला फूल चढ़ाकर सम्मान दे रहे हैं। चंद बुद्धिजीवी इस डर से चुप हैं कि गांधीजी के हत्यारे नाथूराम गोडसे, माफीवीर सावरकर, तानाशाह हिटलर और मुसोलिनी को आदर्श मानने वालों से देश के महापुरुषों के सम्मान की आशा कैसे की जा सकती है सोचकर डरे हुए मौन बैठे हैं कि कहीं उन्हें जेल नहीं भेज दिया जाए। बीजेपी के ग्रह नक्षत्र शायद खराब चल रहे हैं। हर मस्जिद के नीचे मंदिर ढूंढने वालों को सुप्रीम कोर्ट के सम्मानित जजों की बेंच ने झटका देते हुए निचली अदालतों को आगे किसी भी कार्रवाई से साफ रोक दिए हैं। आरएसएस के सुप्रीमों मोहन भागवत ने बड़े दुखी मन से बीजेपी के मस्जिद के नीचे मंदिर ढूंढने और हिंदू-मुस्लिम करने को अत्यंत दुखद बताते हुए कहते हैं हमेशा से एक साथ सुख दुख में साथ देते हुए सांझी संस्कृति और देश की एकता के विरुद्ध कार्य करने वालों की निंदा की है। बेहतर होगा कि बीजेपी भले ही कोर्ट की अवमानना करे लेकिन कम से कम आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के हृदय को पीड़ा तो न पहुंचाएं। राष्ट्रीय एकता अक्षुण्णता के लिए ऐसा करना अपरिहार्य है।

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