मुंबई। बंबई उच्च न्यायालय ने कहा है कि विचाराधीन कैदियों को उपयुक्त होने पर वीडियो-कॉन्फ्रेंस के माध्यम से अदालतों के समक्ष पेश किया जाना चाहिए, क्योंकि हर सुनवाई के लिए उन्हें अदालतों में प्रत्यक्ष रूप से लाने में बहुत तामझाम है। न्यायमूर्ति भारती डांगरे की एकल पीठ ने महाराष्ट्र सरकार को यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक धन उपलब्ध कराने का निर्देश दिया कि प्रत्येक अदालत को स्क्रीन और अन्य वीडियो-कॉन्फ्रेंस सुविधाएं प्रदान की जाएं। अदालत का 10 नवंबर का आदेश शुक्रवार को उपलब्ध कराया गया। यह मुद्दा त्रिभुवनसिंह यादव द्वारा दायर जमानत याचिका में उठाया गया था, जिसने दावा किया था कि निचली अदालत में जमानत के लिए उसकी अर्जी 23 मौकों पर स्थगित कर दी गई, क्योंकि उसे अदालत में प्रत्यक्ष रूप से या वीडियो-कॉन्फ्रेंस के माध्यम से पेश नहीं किया गया। पीठ ने कहा कि सितंबर में जेल और सुधारात्मक सेवाओं के निरीक्षक द्वारा प्रस्तुत एक रिपोर्ट के अनुसार, महाराष्ट्र की 39 जेलों में 329 स्वीकृत वीडियो-कॉन्फ्रेंस इकाइयाँ हैं, जिनमें से 291 कार्यात्मक हैं। अदालत ने अपने आदेश में कहा कि यदि यह सुविधा राज्य की सभी अदालतों को उपलब्ध कराई जाती है, तो कार्यवाही के विभिन्न चरणों में आरोपी व्यक्तियों को पेश करना आवश्यक नहीं होगा। उच्च न्यायालय ने कहा यह (कैदियों को प्रत्यक्ष रूप से पेश करना) एक बोझिल प्रक्रिया है, जिसमें समय, धन और संसाधन खर्च होते हैं। इसने कहा कि सुरक्षा चिंताओं, पुलिसकर्मियों की अनुपलब्धता आदि कारणों से कैदियों को वीडियो-कॉन्फ्रेंस के जरिए पेश किया जाना चाहिए। अदालत ने कहा कि सुविधा को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए सभी अदालतों में स्क्रीन की आवश्यकता होगी। पीठ ने कहा, ‘यह आवश्यक है कि विचाराधीन कैदी के रूप में जेल में बंद प्रत्येक व्यक्ति को दी गई तिथि पर या तो प्रत्यक्ष रूप से या वीडियो-कॉन्फ्रेंस के माध्यम से अदालत में पेश किया जाना चाहिए। इसने यह भी कहा कि अदालत को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि जेल अधिकारियों को वीडियो-कॉन्फ्रेंस लिंक पहले से उपलब्ध करा दिया जाए। पीठ ने राज्य सरकार को संबंधित कार्य के लिए धन उपलब्ध कराने का निर्देश दिया। अदालत मामले में अगली सुनवाई चार दिसंबर को करेगी।