
मुंबई। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को न्यू इंडिया कोऑपरेटिव बैंक से जुड़े 122 करोड़ रुपये के बैंक धोखाधड़ी मामले में जेल में बंद आठ आरोपियों के बयान दर्ज करने की अनुमति मिल गई है। ये आरोपी पहले से ही मुंबई पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा (EOW) द्वारा गिरफ्तार किए जा चुके हैं और वर्तमान में आर्थर रोड जेल में बंद हैं। अप्रैल 2025 में ईडी ने इस मामले में मनी लॉन्ड्रिंग की जांच शुरू की थी। अब एजेंसी को 16 जून से 10 जुलाई के बीच इन आठ आरोपियों – हितेश मेहता, धर्मेश जयंतीलाल पौन, अभिमन्यु भोआन, मनोहर मारुतवार, कपिल देढिया, उलाहनाथन मारुतवार, जावेद आजम और राजीवरंजन पांडे उर्फ पवन गुप्ता– के बयान दर्ज करने की अनुमति दी गई है। आर्थिक अपराध शाखा की जांच के अनुसार, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की एक औचक जांच में बैंक के खातों में गंभीर अनियमितताएं उजागर हुईं। बैंक की तिजोरियों में स्वीकार्य नकद सीमा 20 करोड़ रुपये थी, जबकि कई मौकों पर 100 करोड़ रुपये से अधिक नकदी पाई गई, जिसे कथित रूप से वरिष्ठ बैंक अधिकारियों ने गबन किया था। इसके अलावा, ऋण वितरण में भी बड़े पैमाने पर गड़बड़ी सामने आई, जहां अयोग्य उधारकर्ताओं को ऋण दिए गए और बाद में इन ऋणों को बेहद कम कीमत पर एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनियों (ARCs) को बेच दिया गया, जिससे बैंक को भारी आर्थिक नुकसान हुआ। प्रारंभिक जांच में 2,000 संदिग्ध ऋण और लगभग 400 करोड़ रुपये की गैर-निष्पादित संपत्ति (NPA) की पहचान हुई, जिनके पीछे रिश्वतखोरी का संदेह है। अब ईडी की जांच इस दिशा में आगे बढ़ेगी कि आखिर मनी लॉन्ड्रिंग की इस व्यापक साजिश में कौन-कौन शामिल था, कितनी राशि कहां ट्रांसफर की गई, और क्या इसमें किसी राजनीतिक या बाहरी प्रभाव की भी भूमिका रही। ईडी की इस जांच से न केवल बैंकिंग क्षेत्र की पारदर्शिता पर उठे सवालों को हल करने में मदद मिलेगी, बल्कि भविष्य में ऐसी धोखाधड़ी रोकने की दिशा में भी सख्त कदम उठाए जा सकते हैं।