सनातन धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है।
प्रत्येक माह में दो एकादशी व्रत रखे जाते हैं।
इस व्रत को 'देवव्रत' भी कहा जाता है क्योंकि सभी देवता, दानव, नाग, यक्ष, गन्धर्व, किन्नर, नवग्रह आदि अपनी रक्षा और श्रीविष्णु की कृपा पाने के लिए एकादशी का व्रत करते हैं।
धर्मग्रंथों की कथा के अनुसार श्री श्वेतवाराह कल्प के प्रारंभ में देवर्षि नारद की विष्णु भक्ति देखकर ब्रह्माजी बहुत प्रसन्न हुए।
द्वापर युग में महर्षि व्यासजी ने पांडवों को निर्जला एकादशी के महत्व को समझाते हुए उनको यह व्रत करने की सलाह दी।
इस दिन जो व्यक्ति स्वयं निर्जल रहकर "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" का जप करता है वह जन्म जन्मांतर के पापों से मुक्त होकर श्री हरि के धाम जाता है।